भोपाल: संस्कृति की घनी छाँव हैं गुरूदेव; टैगोर जयंती पर 'प्रणति पर्व' की बहुरंगी गतिविधियाँ

भोपाल: संस्कृति की घनी छाँव हैं गुरूदेव; टैगोर जयंती पर प्रणति पर्व की बहुरंगी गतिविधियाँ

डिजिटल डेस्क, भोपाल। जीवन आनंद का उत्सव है और कलाओं में इसकी सुन्दर छवियों को देखा जा सकता है। गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का महान सृजन इसी मंत्र का संदेश देता प्रेम, प्रकृति और करूणा की पुकार बन गया। विश्व मानवता ही उनके लिए सबसे बड़ा मूल्य था। वे संस्कृति की घनी छांव थे।




टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र के परिसर में इस भावभीने उद्गार के बीच गुरूदेव टैगोर को श्रद्धापूर्वक याद किया गया। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कथा सभागार में टैगोर जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित 'प्रणति पर्व' को कुलाधिपति और विश्वरंग के महानिदेशक श्री संतोष चौबे ने संबोधित किया। 'टैगोर और हम' विषय पर व्याख्यान में उन्होंने कहा कि रबीन्द्र बाबू जीवन को समग्रता में देखने के हिमायती थे। साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, दर्शन, अध्यात्म और विज्ञान में उनकी गहरी रूचि थी। वे संस्कृति की घनी छाँव की तरह याद आते हैं। चौबे ने कहा कि टैगोर विवि में गुरूदेव के संपूर्ण साहित्य को संग्रहित करने के साथ ही एक अध्ययन केन्द्र की स्थापना की जा रही है।




टैगोर कला केन्द्र के निदेशक, कला समीक्षक श्री विनय उपाध्याय ने अपने संबोधन में टैगोर के रचनात्मक कौशल और उनके विश्वव्यापी सांस्कृतिक विस्तार को रेखांकित किया। विनय ने कहा कि टैगोर कला केन्द्र द्वारा स्थापित पुस्तकालय और संदर्भ केन्द्र की बहुमूल्य सौगात टैगोर की विरासत को जानने-समझने की नई दिशा मे महत्वपूर्ण कदम है। कुलपति श्री ब्रह्मप्रकाश पेठिया, कुलसचिव श्री विजय सिंह और भाषा तथा मानविकी विभाग की डीन सुश्री संगीता जौहरी सहित विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के प्राध्यापक और छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।


इस मौके पर गुरूदेव के सांस्कृतिक व्यक्तित्व की जीवन छवियों को संजोती फि़ल्म 'विश्व मानवता की पुकार' का प्रदर्शन किया गया। इस फि़ल्म का निर्देशन युवा फि़ल्मकार आदित्य उपाध्याय ने किया है। टैगोर केन्द्र की ही प्रतिष्ठित सांस्कृतिक पत्रिका 'रंग संवाद' के विशेषांक का लोकार्पण भी हुआ। इस नए संस्करण में गुरूदेव के सृजन और चिंतन के विभिन्न पक्षों पर विशेषज्ञ लेखकों की सामग्री संकलित है। कुलाधिपति श्री चौबे ने टैगोर के प्रेरक विचारों के बहुरंगी लघु पोस्टर भी जारी किये। पोस्टर का संयोजन 'रंग संवाद' के सह संपादक, युवा लेखक मुदित श्रीवास्तव ने किया है। गतिविधियों के दौरान प्रसिद्ध सिने पटकथाकार-रंगकर्मी श्री अशोक मिश्रा और नाट्य निर्देशक श्री संजय उपाध्याय तथा श्री अमिताभ श्रीवास्तव विशेष रूप से उपस्थित थे।



गूँजा टैगोर के गीतों का वृन्दगान

नाटक 'ताशेर देश' में उमड़े दर्शक

टैगोर विश्व कला एवं संस्कृति केन्द्र द्वारा परिकल्पित 'प्रणति पर्व' की शाम गुरूदेव के गीतों से महकी तो दूसरी ओर रबीन्द्र भवन में टैगोर के ही नाटक 'ताशेर देश' को देखने शहर के रंगप्रेमियों का रेला उमड़ा। इस नाटक का मंचन टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के छात्र कलाकारों ने किया। श्री मनोज नायर के निर्देशन में खेले गया यह नाटक स्वतंत्र विचारों के साथ जीवन में आशावाद की प्रेरणा देता है।



नाटक से पूर्व रबीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर रेनीवृंद के कलाकारों ने टैगोर के चुनिंदा तरानों का सुरीला गायन किया।



रबीन्द्र संगीत पर आधारित गीतों की धुनों का महकता गुलदस्ता लिए पेश आयीं रंगकर्मी सुश्री रीना सिन्हा। रेनीवृंद के लिए उन्होंने गुरूदेव की उन रचनाओं का चयन किया जिन्हें बरसों से पीढियाँ गाती रही है। इस संगीत रूपक में "ओ आमार देशेर माटी, जाग बिताई मैंने विभावरी, पगली हवा बदराया दिन, जोदी तोर डाक और एवार तोर मॅरा गांगे" जैसे प्रेम, प्रकृति और प्रार्थना के गीत शामिल थे।



नाटक 'ताशेर देश' टैगोर का मूल बांग्ला में लिखा नाटक है जिसका हिन्दी अनुवाद रणजीत साहा ने किया है। अपनी संपूर्ण प्रस्तुति में यह नाटक निर्देशन, आकल्पन, अभिनय और रंग संगीत के बेहद सार्थक तथा सुथरे शिल्प को प्रदर्शित करता है। 'ताशेर देश' का हिन्दी अर्थ है- ताश का देश। नियमों की बेडि़यों से निकलकर अपनी चाल चलने और जीत के प्रति आशावादी होने की प्रवृत्ति ही मनुष्य का मनोबल बनाए रखती है। इस संदेश के आसपास टैगोर ने नाटक का रोचक कथानक बुना है।




यह नाटक एक ऐसे राजकुमार की कहानी है जो अपने एकरस जीवन से ऊब चुका है और अपने सौदागर मित्र के साथ एक यात्रा पर निकल पड़ता है। सब कुछ नियमों से बंधा पूर्वनिर्धारित थोपे गए नियमों और पाबंदियों को ढ़ोते राजपुत्र और सौदागर से उस वंश के लोग अचंभित भी हैं, प्रभावित भी। राजा नियमों की पाबंदी के चलते राजपुत्र की चंचलता के लिए उसके बेबाक प्रवृत्ति के लिए निर्वासन की घोषणा करता है परंतु रानियाँ और अन्य दरबारी के मना करने पर निर्वासन दंड टल जाता है। धीरे-धीरे राजपूत्र के स्वतंत्र विचार, नवाचार चेष्टाएँ ताश्वंशियों में खासकर वहाँ की रानियों में एक नव संचार और आशा की लहर फैलाते हैं। निरर्थक नियमों के अनुकरण की जगह स्वच्छंद विचार को रख पाने का अधिकार ही मानव और समाज को एक सुखद अनुभव प्रदान करता है। सकारात्मक परिणाम भी सामने आते है।

धेन्द्र कावड़े की प्रकाश परिकल्पना नाटक के दृश्यों को अनुकूल वातावरण देती है। अलैय स्वान और अभि श्रीवास्तव का संगीत रोचक बन पड़ा। स्मिता नायर ने पात्रों के अनुरूप वस्त्र विन्यास किया है। विक्रांत भट्ट का प्रबंधन सुचारू था।




टैगोर विश्वविद्यालय के मानविकी एवं भाषा विभाग, टैगोर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तथा स्टुडियो आरएनटीयू के सहयोग से होने वाला 'प्रणति पर्व' 'विश्वरंग' श्रृंखला की ही एक महत्वपूर्ण गतिविधि है।

Created On :   6 May 2023 6:29 PM GMT

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