भोपाल: रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का हुआ समापन

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का हुआ समापन
  • शोध देश के लिए उपयोगी होना चाहिए: प्रो अमिताभ सक्सेना
  • अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा और रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्विद्यालय के बीच हुआ एमओयू

डिजिटल डेस्क, भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा भारतीय ज्ञान परम्परा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का समापन हुआ। समापन सत्र की अध्यक्षता प्रो. अमिताभ सक्सेना, पूर्व कुलपति सी.वी.आर.यू. खंडवा ने की। बतौर विशिष्ट अतिथि श्री रबीन्द्र कन्हेरे, पूर्व कुलपति भोज मुक्त विश्वविद्यालय, प्रो. राजकुमार आचार्य, कुलपति अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा, डॉ. अल्केश चतुर्वेदी, कुलसचिव साँची विश्वविद्यालय, डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, प्रो-चांसलर आरएनटीयू, प्रो. रमाकांत पाण्डेय, निदेशक केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, डॉ. अमित राय, सह आचार्य, दूरशिक्षा विभाग, वर्धा, डॉ. आशुतोष, सहायक प्राध्यापक हरिसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर विशेष रुप से उपस्थित थे। संगोष्ठी की समन्वयक एवं संयोजन डॉ. सावित्री सिंह परिहार थीं। जिनके संपादन में कार्यक्रम के दौरान धर्मपाल: स्वदेशी और स्वराज की अवधारणा पुस्तक का विमोचन भी हुआ। आभार प्रदर्शन विश्वविद्यालय की प्रति कुलपति डॉ. संगीता जौहरी द्वारा किया गया।

समापन सत्र की अध्यक्षता कर रहे सी वी रमन विश्वविद्यालय, खंडवा के पूर्व कुलपति प्रो. अमिताभ सक्सेना ने कहा, "भारत प्राचीन समय से ही हर क्षेत्र और विशेषज्ञता में अग्रणी रहा है। हमें यह आवश्यकता है कि हम जो भी शोध करें, वह देश के लिए उपयोगी हो। भारतीय ज्ञान परंपरा के विषयों को शोध में स्थान देने पर जोर देना चाहिए।"

रबीन्द्र कन्हेरे ने कहा कि आज, भारतीय ज्ञान परंपरा को बढ़ावा देने और अध्ययन क्षेत्र में सुधार करने की आवश्यकता है। देश के अनेक शिक्षा संस्थानों में भारतीय इतिहास और प्राचीन ज्ञान परंपरा के पाठ्यक्रमों को बदलना चाहिए।भारत में शोध क्षेत्र में एक ज्यादा गंभीर चर्चा की आवश्यकता है। आधुनिक विषयों को प्राचीन ग्रंथों में ढूंढकर समय के अनुकूल बनाने की आवश्यकता है।

प्रो. रमाकांत पाण्डेय ने कहा कि भारतीय ज्ञान के प्रसार के लिए अध्ययन करना, बोध करना और फिर आचरण करना चाहिए । पाश्चात्य की अवधारणा को त्यागना चाहिए और भारत को भारत के दर्पण से ही समझना चाहिए।

डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स ने कहा कि रबींद्रनाथ टैगोर विश्विद्यालय भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रसार में अग्रणी है। हम विज्ञान एवं तकनीक में कदम बढ़ाते हुए पृष्ठभूमि में भारतीय ज्ञान परंपरा को साथ में लेकर चलते हैं। वहीं राजकुमार आचार्य जी ने कहा जब हम बंधनों से मुक्त होते हैं वही सही ज्ञान है। जहां भी श्रेष्ठता, सम्यता और तप है वहां ज्ञान है भारत की यही विशेषता है

रबींद्रनाथ टैगोर विश्विद्यालय के कुलपति प्रो रजनीकांत ने अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा के कुलपति प्रो राजकुमार आचार्य के साथ एमओयू में हस्ताक्षर किए जिसमे दोनो विश्विद्यालय द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रसार एवं शोध पर कार्य किया जाएगा।

इससे पूर्व आज के सत्र में भारतीय ज्ञान प्रणाली, भाषाएं, कला और संस्कृति विषय पर शिक्षाविदों ने चर्चा की। सत्र की अध्यक्षता कर रहे कि श्री अवधेश मिश्र, सहायक आचार्य, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर उ.प्र. ने कहा कि हमारे देश में वेद के साथ ही श्रवण परंपरा भी रही और लोकगीतों की परंपरा भी, इन सभी ज्ञान का संयोजन भारतीय ज्ञान परंपरा है। वहीं अन्य वक्ताओं में डॉ. राकेश कुमार मिश्रा, सह आचार्य, अरुणेश शुक्ल सहायक प्राध्यापक, क्राइस्ट चर्च कॉलेज, कानपुर उ.प्र.ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

Created On :   28 Oct 2023 4:14 PM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story