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फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम: रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा "सतत कृषि उत्पादन में नवीनतम प्रगति" विषय पर पाँच दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन संपन्न

भोपाल। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेनिंग, डेवलपमेंट एंड पॉलिसी रिसर्च (आई.टी.डी.पी.आर.), ए.जी.यू. एवं कृषि संकाय के संयुक्त तत्वावधान में "सतत कृषि उत्पादन में नवीनतम प्रगति" विषय पर पाँच दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एफ.डी.पी.) आयोजित की गई। उद्घाटन सत्र में डॉ. एच. डी. वर्मा डीन, कृषि संकाय, आरएनटीयू ने स्वागत भाषण दिया। डॉ. वर्मा ने अपने स्वागत भाषण में सभी विशिष्ट अतिथियों, वक्ताओं, प्रतिभागियों एवं स्वयंसेवकों का अभिनंदन किया। उन्होंने मध्यप्रदेश में सोयाबीन उत्पादन की महत्ता, इसके सतत उत्पादन की दिशा में प्रयास, और जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभावों पर चर्चा की।
प्रो. अमिताभ सक्सेना, कार्यकारी निदेशक, आई.टी.डी.पी.आर., ए.जी.यू.ने प्रतिभागियों से शोध, प्रकाशन, पेटेंट, शिक्षण गतिविधि बढ़ाने की प्रेरणा दी।समापन सत्र में डॉ. संगीता जोहरी, रजिस्ट्रार, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल ने आई.टी.डी.पी.आर.-ए.जी.यू. के इतिहास, नीति निर्माण में अनुसंधान की भूमिका और करियर उन्नयन की बात रखी। डॉ. आर. पी. दुबे, कुलपति, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल का सारगर्भित वक्तव्य में कहा कि कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। उन्होंने जापान, हॉलैंड जैसे देशों की विदेशी कृषि तकनीकों, चारा उत्पादन, दुग्ध उत्पादन, और खाद्य सुरक्षा के संदर्भ में सतत कृषि प्रणाली की आवश्यकता को समझाया। डॉ. पूजा चतुर्वेदी (सहायक निदेशक, अकादमिक, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय एवं कार्यकारी निदेशक, आई.टी.डी.पी.आर., ए.जी.यू.)ने आईसेक्ट समूह की स्थापना से लेकर वर्तमान तक की यात्रा पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कौशल आधारित शिक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में Highly Qualified से Well Qualified Teachers की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
डॉ. संजीव कुमार गुप्ता (प्रो-वाइस चांसलर, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय)ने शोध, शिक्षा और कृषि में प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण (Technology Transfer) की आवश्यकता पर बल दिया। साथ ही, उन्होंने कृषि प्रसंस्करण, कृषि आधारित उद्यमिता को युवाओं के लिए आवश्यक बताया। तकनीकी सत्रों के प्रथम सत्र में डॉ. मनोजित चौधरी, वैज्ञानिक , के.वी.के., आई.सी.ए.आर.-सी.आई.ए.ई., भोपाल ने सतत कृषि उत्पादन के लिए उन्नत कृषि यंत्रों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने प्राथमिक व द्वितीयक जुताई, बीजारोपण, रोपाई, खरपतवार प्रबंधन, फसल कटाई हेतु यंत्रों जैसे MB हल, डिस्क हल, रोटावेटर, लेजर लैंड लेवलर, हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, ड्रोन, रीपर बाइंडर, कंबाइन हार्वेस्टर आदि की जानकारी दी। द्वितीय सत्र में प्रो. एम. एल. केवट, पूर्व प्रोफेसर, जे.एन.के.वी.वी., जबलपुर ने मृदा प्रकार, कृषि जलवायु क्षेत्र, बीज शैय्या निर्माण, फसल चयन, पोषण प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन पर चर्चा की। उन्होंने सतत कृषि, कंजरवेशन एग्रीकल्चर, बोरलॉग इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशिया (BISA), जीरो बजट फार्मिंग पर भी अपने अनुभव साझा किए। डॉ. राज किशोर भटनागर (वैज्ञानिक, जे.एन.के.वी.वी., जबलपुर ने जैविक और अजैविक खाद के एकीकरण, राइजोबियम, वर्मी कम्पोस्ट, NADEF कम्पोस्ट, पोषणीय प्रबंधन पर चर्चा की। उन्होंने मल्टी-न्यूट्रिएंट डेफिशियेंसी को दूर करने के लिए एकीकृत प्रबंधन पर जोर दिया।
दूसरे दिन के मुख्य सत्र में डॉ. पी.बी.एस. भदौरिया (आई.आई.टी. खड़गपुर) उन्होंने बंजर भूमि सुधार, धान की विभिन्न किस्मों (ललाट, स्वर्ण, केदार) पर शोध कार्य, ग्रामीण तकनीकी नवाचार (जूट मशीन, तसर रीलिंग मशीन, धूपबत्ती निर्माण मशीन आदि) की विस्तृत जानकारी दी। डॉ. शेखर सिंह बघेल (वरिष्ठ वैज्ञानिक, के.वी.के., सिवनी ने जैव उर्वरकों की सतत कृषि में भूमिका, मृदा कार्बनिक कार्बन, बायोमास उपलब्धता, एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन पर प्रकाश डाला। "जवाहर बायोफर्टिलाइजर" के उपयोग की जानकारी दी। तीसरे दिन के प्रमुख सत्र में डॉ. जी. डी. मिश्रा भूतपूर्व वैज्ञानिक, मौसम विभाग, भोपाल ने मौसम और कृषि, वर्षा, तापमान, मौसम बुलेटिन, जैविक व प्राकृतिक खेती पर प्रकाश डाला। डॉ. एस. सी. गुप्ता, प्रमुख वैज्ञानिक, आर.ए.के. कृषि महाविद्यालय, सीहोर ने लाभकारी सूक्ष्मजीवों, राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, एजोस्पिरिलम, साइनोबैक्टीरिया, कार्बन पृथक्करण, जैविक नियंत्रण एजेंट की उपयोगिता बताई। डॉ. पूजा चतुर्वेदी ने महिला सशक्तिकरण, शोध परियोजनाओं पर बल दिया। डॉ. संजीव कुमार गुप्ता ने तकनीकी अनुप्रयोग व कार्यक्रम के परिणाम पर चर्चा की। सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
इस कार्यक्रम का संचालन सुश्री श्रेया शर्मा (आई.क्यू.ए.सी.) द्वारा किया गया। उन्होंने सतत कृषि उत्पादन की आवश्यकता और आज की परिस्थितियों में कृषि के सामने आने वाली चुनौतियों को रेखांकित किया।
डॉ. अशोक कुमार (प्रमुख, कृषि संकाय ने सभी अतिथियों, विशेषज्ञों, सहभागी, स्वयंसेवकों का आभार व्यक्त किया। यह कार्यक्रम सतत कृषि की दिशा में शिक्षा, शोध और तकनीकी समाधान का अद्वितीय संगम सिद्ध हुआ। सतत फसल उत्पादन पर आयोजित पाँच फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम (एफडीपी) में डॉ. ऋषिकेश मंडलोई, सहायक प्राध्यापक, ने समन्वयक की भूमिका निभाई। कार्यक्रम के सफल संचालन में डॉ. बालकृष्ण नामदेव और डॉ. मुनेश कुमार ने सह-समन्वयक के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन एफडीपी का उद्देश्य कृषि में सतत उत्पादन के नवीन तरीकों, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, जल संरक्षण और स्मार्ट कृषि तकनीकों पर फैकल्टी को प्रशिक्षित करना था। इन कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षकों और शोधकर्ताओं को नई शोध विधियों और उन्नत कृषि तकनीकों की जानकारी प्रदान की गई। सभी प्रतिभागियों ने इन प्रयासों की सराहना की।
Created On :   6 May 2025 8:40 PM IST