dindori: मिट्टी से बने प्राकृतिक रंगों से पेरिस में सजी गोंडी पेंटिंग्स ने सभी का मन जीता

मिट्टी से बने प्राकृतिक रंगों से पेरिस में सजी गोंडी पेंटिंग्स ने सभी का मन जीता
लाखों में बिकी डिंडोरी के आदिवासी कलाकार मयंक श्याम की पेंटिंग्स

डिंडोरी न्यूज, । गोंड कला व चित्रकारी के लिए मशहूर डिंडोरी जिले के छोटे से गांव पाटनगढ़ से निकले आदिवासी कलाकार मयंक श्याम अब अपने पिता जनगण श्याम के बाद दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ रहे हैं। परधान गोंड समुदाय के जन्म से लेकर मृत्यु तक के रीति-रिवाजों और परंपराओं पर आधरित चोलामाटी नाम से पेरिस की प्रतिष्ठित एस्पेस सिंकोष गैलरी में सोलो एग्जीबिशन में उनकी 35 पेंटिंग्स सजाई गई। इनमें से ज्यादातर पेंटिंग्स वहीं बिक गईं। मंयक श्याम ने बताया कि यहां उनकी एक पेंटिंग करीब 2 लाख रुपए में बिकी।

रामरज मिट्टी व फूलों से बनाया कलर

मंयक श्याम ने बात करते हुए बताया कि 2021 में उन्होंने बड़ा फैसला लिया। इसके लिए एक्रेलिक ऑयल छोड़कर पूरी तरह प्राकृतिक रंगों को अपनाया। उन्होंने अपना खुद का कलर बैंक बनाया है। इसके लिए उन्होंने अमरकंटक की रामरज मिट्टी ली, जिसे रोस्ट करने पर लाल बन गई तो वही गांव की छूही मिट्टी से सफेद रंग बनाया। इसके अलावा फूल-पत्तों से पीला, हरा, गहरा नीला, जामुनी रंग बनाया। मयंक कहते हैं कि लगा कि जो हमारे पूर्वज घरों की लिपाई-पुताई में इस्तेमाल करते थे, उनसे रंग बनाऊं। आज मैं उसी से पेंटिंग बनाता हूं। पेरिस में बनाई गई मेरी सारी पेंटिग इन्हीं प्राकृतिक रंगों से सजी थीं। उसी में से एक सिंगल शीट की पेंटिंग लगभग दो लाख रुपए में बिकी।

एमपी की सभ्यता और संस्कृति

मयंक का कहना है कि मैं जो भी बनाता हूं, वो हमारा समाज, हमारी लोककथाएं, देव, आदिवासी संस्कृति और प्रकृति की वास्तविक छवि होती है। कागज पर सिर्फ रंग नहीं लगाता, बल्कि हमारी पूरी परंपरा उतार देता हूं। अपनी पेरिस की यात्रा के बारे में मयंक ने बताया कि मेरी एक बहुत अच्छी दोस्त पद्मजा श्रीवास्तव पेरिस की एक संस्था से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने मेरा काम देखा तो मेरी कुछ पेंटिंग्स दुपट्ट संस्था के पास पेरिस भेज दी। पेंटिंग्स संस्था को बहुत पसंद आईं। दिसंबर 2024 में उस संस्था ने मुझसे संपर्क किया और कहा कि हम आपकी पेंटिंग प्रदर्शनी अपने शहर पेरिस में लगाना चाहते हैं।

चोला माटी पुस्तक का भी विमोचन

अपनी फ्रांस की यात्रा और अनुभव के बारे में मयंक ने बतायाए पहली बार मैं इतनी लंबी इंटरनेशनल फ्लाइट में बैठा था। कई चीजों को लेकर डर और घबराहट थी। अलग देश है, अलग भाषा है। खान-पान भी बिल्कुल अलग है। धीरे-धीरे मुझे वहां अच्छा लगने लगा। इतना ही नहीं पेरिस में मयंक मोनालिसा पेंटिंग बनाने वाले लियोनार्डो द विंची की कलाकृतियां देखने गए। शहर घूमे। वहां की रंग-बिरंगी पत्तियां देखकर इतने आकर्षित हुए कि कई पत्तियां भारत लेकर आए, ताकि उनसे नए शेड्स तैयार कर सकें। इसी दौरान डिंडोरी जिले के आदिवासी गांव पर आधारित किताब चोला माटी का भी विमोचन हुआ। इस किताब में मयंक की पेंटिंग्स शामिल हैं। इस किताब की लेखिका पद्मजा श्रीवास्तव हैं।

गोंड आर्ट के जनक माने जाते हैं पिता

मयंक को यह हुनर विरासत में ही मिला है। उनके पिता जनगण सिंह श्याम गोंड आर्ट के जनक माने जाते हैं। जापान की रिसर्चर काउरी ने जनगण पर जापानी भाषा में किताब लिखी है, जिसका अंग्रेजी संस्करण जल्द आ रहा है। काउरी कहती हैं कि जनगण श्याम की पेंटिंग देखकर मैं मुंबई से भोपाल आई, फिर उनके परिवार से मिली। इतने प्यार से मिले कि हर बार इंडिया आने पर इन्हीं से मिलने आती हूं। जनगण श्याम का जापान से खास रिश्ता रहा। वहां उनकी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी लगती थी। वह दो बार जापान गए। हालांकि जापान में ही उन्होंने 2001 में सुसाइड कर लिया था। सुसाइड के कारण का पता नहीं चला, लेकिन जापान के कला प्रेमियों के मन में उनके लिए हमेशा से विशेष स्थान बना रहा। अमेरिका, फ्रांस, जापान सहित कई देशों में उनकी प्रदर्शनियां आयोजित हुई थीं।

Created On :   25 Nov 2025 10:45 PM IST

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