Jabalpur News: उपकरणों के अभाव में अधूरी बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट, टेस्टिंग के लिए दूसरे शहर पर निर्भर मरीज

उपकरणों के अभाव में अधूरी बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट, टेस्टिंग के लिए दूसरे शहर पर निर्भर मरीज
  • तीन माह पहले हुई थी शुरुआत, अब भी नहीं फ्लो टेस्ट की सुविधा, मानव संसाधन की भी दरकार
  • फ्लाे साइटोमेट्री जैसी जांच न होने से मरीज दूसरे शहर पर निर्भर हैं।
  • आज भी उपकरणों के अभाव में यूनिट अधूरी है।

Jabalpur News: नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज में स्थापित बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट में पहला सफल प्रत्यारोपण तीन माह पहले हुआ था। जैसे-तैसे मशीनरी और संसाधन अरेंज कर यूनिट की शुरुआत तो हो गई, लेकिन आज भी उपकरणों के अभाव में यूनिट अधूरी है। फ्लाे साइटोमेट्री जैसी जांच न होने से मरीज दूसरे शहर पर निर्भर हैं।

इससे उपचार में लगने वाला वक्त तो बढ़ ही रहा है, साथ आर्थिक भार भी पड़ रहा है। जरूरी उपकरणों को लेकर बार-बार पत्र लिखे जाने के बाद भी प्रदेश की दूसरी बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट उपेक्षा का शिकार हो रही है। उपकरणों एवं अन्य संसाधनों के अभाव में आज भी सिकलसेल जैसी बीमारी से पीड़ित मरीजों का बीएमटी नहीं हो रहा है, केवल हाई रिस्क पर चल रहे कैंसर पीड़ित बच्चों के लिए ही प्रयास हो रहे हैं।

बार-बार पत्राचार करने के बाद भी नहीं मिल रहा बजट

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बोन मैरो ट्रांसप्लांट यूनिट का निर्माण के लिए डायरेक्टर मेडिकल एजुकेशन द्वारा राशि स्वीकृत की गई थी, जिसमें एक हिस्से का उपयोग अलग से भवन न बनाकर स्टेट कैंसर इंस्टीट्यूट में इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में हो गया। इसके बाद भी उपकरणों के लिए राशि शेष है। बार-बार पत्राचार करने के बाद भी बजट न होने का हवाला भोपाल स्तर से दिया जा रहा है। यहां उपकरणों के अभाव में यूनिट अधूरी है।

एक नजर बीएमटी यूनिट पर

2 वर्ष पूर्व निर्माण की घोषणा

करीब 10 करोड़ की लागत से निर्माण

जनवरी में यूनिट बनकर तैयार

10 बिस्तरों वाला आईसीयू वार्ड

किन बच्चों के लिए जरूरी बीएमटी यूनिट

कैंसर पीड़ित प्रत्येक 10 में 4 बच्चों में कीमो थैरेपी कारगर नहीं, उनके लिए { थैलेसीमिया, सिकलसेल और एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित बच्चों के उपचार में

नागपुर समेत दूसरे शहर भेज रहे सैंपल { 3 माह पहले हुए बोन मैरो ट्रांसप्लांट में डोनर के ब्लड में स्टेम सेल की काउंटिंग देखने के लिए जरूरी फ्लो टेस्ट के लिए सैंपल नागपुर भेजा गया था। कुछ अन्य मामलों में सैंपल बाहर भेजा गया जिसके चलते 1000 रुपये में हो जाने वाले टेस्ट की लागत 15 हजार तक पड़ रही है।

मरीज पर आर्थिक भार न आए, इसलिए प्रबंधन ने अपने खर्च पर यह जांच कराई, लेकिन बार-बार ऐसा कर पाना संभव नहीं है, इसलिए जांच सुविधा यूनिट में ही होनी चाहिए।

बीएमटी में जरूरी कुछ उपकरण आ गए हैं, कुछ आने शेष हैं। एफेरिसिस मशीन आ चुकी है, वहीं फ्लो साइटोमेट्री के लिए जरूरी मशीन उपलब्ध हो इसके लिए डीएमई को पत्र लिखा है। यह मशीन करीब 50 लाख लागत की है। इसकी उपलब्धता भी शीघ्र ही सुनिश्चित की जाएगी।

-डॉ. नवनीत सक्सेना, अधिष्ठाता, एनएससीबी मेडिकल कॉलेज

Created On :   23 Jun 2025 2:02 PM IST

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