जनजागरण: अंगदाताओं के परिजनों को किया सम्मानित, अंगदान का निर्णय लेना आसान नहीं : डॉ. सिंगल

अंगदाताओं के परिजनों को किया सम्मानित, अंगदान का निर्णय लेना आसान नहीं : डॉ. सिंगल
  • जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता
  • नागपुर विभाग में 10 साल में 135 अंगदान हुए
  • पिछले साल 35 दाताओं ने अंगदान किया

डिजिटल डेस्क, नागपुर। अंगदान का इंतजार करने वालों की संख्या काफी बड़ी है, इसलिए अंगदान के प्रति जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। यह काम केवल अकेले का नहीं है, बल्कि समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी है। ऐसा पुलिस आयुक्त डॉ. रवींद्र सिंगल ने कहा। वनामति सभागार में विभागीय अंग प्रत्यारोपण समन्वय समिति की ओर से अंगदाताओं के परिजनों का सत्कार किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ. सिंगल ने की। समिति के अध्यक्ष डॉ. संजय कोलते, सचिव डॉ. राहुल सक्सेना, पद्मश्री डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम, एम्स के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. मनीष श्रीगिरीवार प्रमुखता से उपस्थित थे।

ब्रेन डेड के बावजूद नहीं करते अंगदान : डॉ. सिंगल ने कहा कि, स्वजनों की मृत्यु के बाद माहौल गमगीन होता है। ऐसे में अंगदान जैसे विषय पर निर्णय लेना आसान नहीं होता। बावजूद अंगदाताओं के परिजनों ने अंगदान का निर्णय लेकर जरूरतमंदों को नया जीवन दिया है। यह बात अपने आप में महानता का परिचायक है। समिति के सचिव डॉ. संजय कोलते ने कहा कि, नागपुर विभाग में 10 साल में 135 अंगदान हुए हैं। पिछले साल 35 दाताओं ने अंगदान किया है। प्रतीक्षा सूची काफी लंबी है। अनेक जरूरतमंदों को समय पर अंग नहीं मिलने से उनकी मृत्यु होती है। दूसरी तरफ ब्रेन डेड के बावजूद लोग मृतदेह का दहन करते हैं। उनके अंग भी खाक हो जाते हैं, इसलिए अंगदान के क्षेत्र में जागरूकता व संख्या बढ़ाने की आवश्यकता है।

पता तो चले, किसका दिल किसमें धड़क रहा है : कार्यक्रम के दौरान अंगदाताओं के परिजनों ने अपना दर्द बयां किया कि, किन हालातों में अंगदान की हिम्मत जुटायी और औरों को जीवन दिया। आशीष जोशी ने अपना दर्द बताया कि, उनके 20 साल के बेटे की कार दुर्घटना से मृत्यु हुई थी। छह माह बीत चुके हैं, लेकिन कार व कार चालक का अब तक पता नहीं चल पाया है। एक अंगदाता की माता ने अपना दुख: व्यक्त करते हुए कहा कि, बेटे का अंगदान तो कर दिया, लेकिन उसके अंग किसे दिए गए हैं, इस बारे में अस्पताल या समिति ने आज तक नहीं बताया। कम से कम अंग प्राप्त करने वाले का नाम पता चले, तो उनसे मिला जा सकता है। पता तो चले कि, किसका दिल किसमें धड़क रहा है, किसकी आखें रोशन हुईं है। अनेक देशों में अंग प्राप्त करने वालों के नाम गोपनीय नहीं रखे जाते हैं, इसलिए उनकी जानकारी अंगदाताओं के परिजनों के साथ साझा करनी चाहिए। कार्यक्रम के दौरान श्रीमती रोंघे, शुभम लुटे, वैशाली पराते, सुप्रिया जोशी आदि ने अपने अनुभव बताया।

पद्मश्री डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम का सत्कार : कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री अलंकरण मिलने पर डॉ. चंद्रशेखर मेश्राम का सत्कार किया गया। संचालन डॉ. अंजलि भांडारकर ने किया। इस अवसर पर विविध अस्पतालों के अधिकारी, संचालक, डॉक्टर्स व अंगदाताओं के परिजन बड़ी संख्या में उपस्थित थे।

Created On :   30 March 2024 10:02 AM GMT

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