वन्यजीव: आज वर्ल्ड फॉरेस्ट डे : अतिक्रमण के चलते कम हो रहा जंगल, बढ़ रहे बाघ, तेंदुए

आज वर्ल्ड फॉरेस्ट डे : अतिक्रमण के चलते कम हो रहा जंगल, बढ़ रहे बाघ, तेंदुए
  • मानव-वन्यजीव संघर्ष को मिल रहा बढ़ावा
  • जंगलों के जतन के लिए कोई खास उपाय योजना नहीं
  • बाघ व तेंदुओं की संख्या में गत पांच साल में काफी इजाफा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य सरकार की ओर से वन्यजीवों की जतन के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं के बदौलत वन्यजीवों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन जंगलों के जतन के लिए कोई खास उपाय योजना नहीं है। इस कारण आए दिन जंगलों में अतिक्रमण हो रहे हैं। वही ग्रीष्म में आग से जंगल खाक भी होते जा रहे हैं। ऐसे में वन्यजीव ज्यादा और जंगल कम की स्थिति बन रही है। खासकर बाघ व तेंदुओं की संख्या में गत पांच साल में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में हालत यह हो रहे हैं कि बाघों को जंगल के बाहर निकलना पड़ रहा है, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष के मामले सामने आ रहे हैं। यही नहीं बाघों में क्षेत्र के लिए होने वाली लड़ाई में बाघों की मौत भी हो रही है।

एक बाघ के लिए बस 9.5 किमी : नागपुर से जुड़ा बोर व्याघ्र प्रकल्प एक छोटा क्षेत्र है, जिसमें बोरधरण, न्यू बोर, कवडस, बांगडापुर, हिंगणी वाइल्ड लाइफ व नागपुर का कुछ क्षेत्र आता है। यहां पूरे जंगल का दायरा 138 किमी तक है। जानकारों की मानें तो एक बाघ को अपने क्षेत्र के लिए 25 किमी का दायरा जरूरी होता है। लेकिन यहां कुल 14 बाघ हैं और 15वां नया बाघ आने की तैयारी में है। ऐसे में एक बाघ को 9.5 किमी के दायरे में रहना पड़ रहा है। नतीजा आये दिन बाघों की आपस में क्षेत्र के लिए लड़ाई होती रहती है, जिसमें बाघ घायल हो जाते हैं। कई बार तो चोट गंभीर रहने पर कमजोर बाघ की मौत भी हो जाती है। यही नहीं कई बार हारने वाला बाघ क्षेत्र की तलाश जंगल के बाहर निकल जाता है।

उमरेड करांडला के हाल : नागपुर जिले के उमरेड़ करांडला की बात करें तो यहां 189 वर्ग किमी का जंगल फैला है, जहां 5 से 7 बाघ रह सकते हैं। लेकिन ताडोबा, ब्रम्हपुर आदि जगहों से लगातार बाघों के आने से यहां गत वर्ष 13 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। ऐसे में जगह कम व बाघ ज्यादा की स्थिति से बाघों की क्षेत्र के लिए संघर्ष होना शुरू हुआ है।

पेंच में 50 से ज्यादा बाघ : पेंच का जंगल कभी 789 वर्ग किमी में फैला था। अभी यह 749 वर्ग किमी दायरा है। ऐसे में यहां बाघों को जगह कम पड़ रही है। वर्तमान स्थिति में यहां 43 बाघ हैं, जबकि कुछ साल पहले इनकी संख्या 50 को पार कर गई थी। क्षेत्र छोटा होने के कारण बाघों की लड़ाई के बाद बाघ परिसर को छोड़ बाहर क्षेत्र की तलाश में जा रहे हैं।

प्रादेशिक में 13 बाघ : वन विभाग के प्रादेशिक में आमतौर पर बहुंत कम बाघ रहते हैं, लेकिन नागपुर के प्रादेशिक में वर्तमान स्थिति में 13 बाघों की मौजूदगी है। गत 3 साल पहले यहां 5 से 8 बाघों को गिना जाता था। उमरेड करांडला के कई बाघों के शावक बढ़े होने के बाद क्षेत्र की तलाश में प्रादेशिक में घुस गये हैं। वहीं, अतिक्रमण के कारण हर साल प्रादेशिक जंगल का दायरा कम होते जा रहा है। ऐसे में बाघ इंसानी इलाके तक पहुंच रहे हैं। हाल ही में रामटेक परिसर में मानव-वन्यजीव के बीच कई हिंसक घटनाएं हुई हैं।

महाराष्ट्र में बढ़ी तेंदुओं की संख्या : महाराष्ट्र में 5 साल में 3 सौ से ज्यादा तेंदुओं की संख्या बढ़ी है। वर्तमान स्थिति में वाइल्ड लाइफ इंन्स्टीट्युट ऑफ इंडिया के अनुसार 1 हजार 9 सौ 85 तेंदुए मौजूद हैं, जबकी इनकी संख्या वर्ष 2028 में 17 सौ के करीब थी। ऐसे में 3 सौ से ज्यादा तेंदुओं की संख्या बढ़ने का चित्र साफ है। बाघों की तुलना यह संख्या चार गुना ज्यादा है। उक्त सभी क्षेत्र के वाइल्ड लाइफ एरिया में तेंदुओं की जो मौजूदगी है, उससे कई ज्यादा घूमते हैं। पेंच में 70 से 73 की मौजूदगी है। बोर में 37 से 39 तक मौजूदगी है, मेलघाट में 181 से 185 तक है, 233 से 243 करते हैं। ताड़ोबा में 130 तेंदुए है, लेकिन बाहर के तेंदुए आने से 148 से 155 तक इस क्षेत्र में विचरण करते हैं।

पेंच में बढ़े मगरमच्छ : नागपुर जिले के पेंच व्याघ्र प्रकल्प में न केवल बाघ, बल्कि मगरमच्छों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है। यह हम नहीं हाल ही में हुई गणना के आंकड़े बया कर रहे हैं। नएआंकड़ों के अनुसार दूसरी बार हुई गणना प्रक्रियां में 52 मगरमच्छों का दीदार हुआ है। पहली गणना में 30 मगरमच्छ दिखे थे। इसमें 22 मगरमच्छ की संख्या बढ़ते दिख रही है। इसके अलावा सॉफ्टशेल कछुए के अंडे भी मिले हैं।

Created On :   21 March 2024 6:30 AM GMT

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