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जंगली क्षेत्रों की आबो हवा भी अब सुरक्षित नहीं रही
डिजिटल डेस्क उमरिया,। जंगल से लगे हुए क्षेत्रों को कभी शुद्ध हवा के लिए पहिचाना जाता रहा है किंतु बढ़ते प्रदूषण ने इस धारणा को भी गलत सिद्ध कर दिया है । जंगल से लगे हुए उमरिया की आबोहवा में धूल, गर्द व धातु के छोटे लेकिन खतरनाक कण वातावरण को प्रदूषित कर रहे हैं। ठण्ड बढ़ते ही धूल का गुबार ऊपर उठने की बजाय आसपास फैल रहा है। खुले पर्यावरण में निर्माण एजेंसियों की लापरवाही से मिट्टी व निर्माण सामग्री प्रदूषण फैलाने का जरिया बन चुकी है। न तो चौक चौराहों में नियमित सफाई हो रही है न ही पानी का छिड़काव। रही सही कसर सड़क किनारे जमी धूल पूरी कर देती हैं। हाल ये हैं कि शहर के भीतर ही इन मार्गों से गुजरने पर शाम को आंखों के सामने प्रदूषण का अंधेरा छा जाता है।
हरे से लाल हो गये पेड़ पौधे
शहर के भीतर धूल का सर्वाधिक कहर चंदिया चौराहे में है। शाम ढलते ही एनएच 78 में चार पहिया से लेकर बड़े ट्रकों की आवाजाही बढ़ जाती है। 16-22 पहिये के वाहन निर्माणधीन सगरा रोड से गुजरते ही पीछे धूल का बवंडर उठता है। प्रदूषण का स्तर इतने खतरनाक की पीछे वाले राहगीर को नग्न आंखों से रास्ता भी नहीं दिखता। ट्रक चालकों के मुताबिक हेडलाइट में प्रदूषण के आगे बबेश हो जाती है। उल्लेखनीय है कि चंदिया चौक से बस स्टैण्ड तक एनएच का चौड़ीकरण शुरू हुआ है। हाईवे के एक छोर को खोदकर मिट्टी आवासीय क्षेत्र समीप डंप कर दी गई है। बड़े वाहन गुजरते ही आसपास के घरों में वहीं मिट्टी समा रही है। धावड़ा कॉलोनी में तकरीबन 4-5 सौ की आबादी प्रदूषण की जद में है।
चौक चौराहे भी नहीं सुरक्षित
वर्तमान में उखड़ी, अधूरी सड़कों से प्रदूषण के मामले में शहर के सभी चौक चौराहे ग्रसित है। इसके अलावा रेत ढोने वाले ट्रेक्टरों से गिरने वाले कणों से मुख्य मार्ग किनारे मोटी परत जमी हुई है। सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में चंदिया चौराहा का क्षेत्र बेहद खतरनाक है। इसी तरह घंघरी नाका, खलेशर नाका में किनारे व उखड़ी सड़कों में धूल का बवंडर हादसे को आमंत्रण दे रहा है। वहीं शहर भीतर के मार्गों में जय स्तंभ से स्टेशन रोड, गांधी चौक वाला एरिया ज्यादा प्रभावित है।
50 के नीचे होना चाहिए
पर्यावरण विशेषज्ञों के मुताबिक शहर के भीतर आबादी तथा मुख्य मार्गों में अलग-अलग प्रदूषण का पैमाना होता है। सिटी में तो 50 माइक्रोग्राम से अधिक प्रदूषण खतरनाक दुष्प्रभाव छोड़ता है। इसके अलावा उमरिया में एनएच 78 के निर्माणाधीन क्षेत्र तथा शहर भीतर मलबे वाले इलाकों में इसका स्तर घातक है। इसलिए प्रदूषण का लेबल 50 माइक्रोग्राम या कम होना चाहिए। नियमानुसार पर्यावरण प्रदूषण विभाग हर माह नियमित चिन्हित क्षेत्रों में पैमाने की जांच भी करते हैं। पूर्व में करकेली, नौरोजाबाद तथा चंदिया में एनएच निर्माण के चलते प्रदूषण की मात्रा बढ़ी थी।
ऐसा होता है एयर क्वालिटी इंडेक्
1-अच्छा (0-50)
2-संतोषजनक (50-100) )फेफड़ो, दमा, हार्ट, मरीज के लिए खतरनाका)
3. हल्की प्रदूषित (101-200) (बीमार लोगों को सांस लेने में तकलीफ)
4. बुरी तरह प्रदूषित (201-300) (बीमार लोगों को सांस लेने में तक.)
.5. बहुत बुरी प्रदूषित (301-400) आम लोगों को सांस लेने की बीमारी
6. घातक रूप में प्रदूषित (401-500)(हेल्दी और बीमारी दोनों ही तरह के लोगों के लिए खतरनाक)
एक्सपर्टव्यू
वाहनों से कार्बन मोनो डाईऑक्साइड निकलती है। नाइट्रोजन, सल्फर कार्बन गैस के रूप में होते हैं। डीजल की गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं इसका कारक होता है। अधिक धूल वायुमंडल में होने से खतरनाक तत्वों के घुलने में समय लगता है।
डॉ. प्रमोद द्विवेदी, स्वास्थ्य विशेषज्ञ
Created On :   25 Nov 2017 2:11 PM IST