ज्योतिषपीठ के नये शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर विवाद

Controversy regarding appointment of new Shankaracharya of Jyotishpeeth
ज्योतिषपीठ के नये शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर विवाद
नरसिंहपुर ज्योतिषपीठ के नये शंकराचार्य की नियुक्ति को लेकर विवाद

डिजिटल डेस्क, नरसिंहपुर। ज्योतिष बद्रिकाआश्रम पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने वसीयत के आधार प उनकी नियुक्ति को गलत बताते हुए कहा कि ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति सदैव ही अखाड़ों की सहमति से की जाती रही है। ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के शुक्रवार को परमहंसी गंगा आश्रम (गोटेगांव) में हुए समाराधना कार्यक्रम के दौरान उपजे इस विवाद के बीच नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपनी नियुक्ति को शास्त्र, परम्परा और विधि सम्मत बताया।

उन्होंने कहा, ‘शंकराचार्यजी के मठ की प्रक्रिया मठों को पता है। अखाड़ों की प्रक्रिया अलग होती है। जरूरी नहीं कि अखाड़ों की प्रक्रिया ही शंकराचार्य के मठ में लागू की जाए।’ यहां बता दें कि समाराधना कार्यक्रम के दौरान देश भर से आए महंतों व संत समाज की उपस्थिति में नए शंकराचार्यो के निज सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद ने वसीयत पढ़ी थी लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया गया था। इसी तरह से नए शंकराचार्यों के पट्टाभिषेक की तिथि भी शुक्रवार को घोषित नहीं की गई थी। बताया जाता है कि ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद ने ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती वसीयत पढ़ते हुए ज्योतिषपीठ के नए शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम लिया तो अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने ज्योतिषपीठ के नए शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति पर सवाल खड़े करते हुए, नया शंकराचार्य मानने से इंकार कर दिया था। 

न चर्चा की न विश्वास में लिया

इस मामले में शनिवार को जब दैनिक भास्कर ने महंत रवींद्र पुरी से उनके विरोध की वजह पूछी तो उन्होंने कहा ‘वसीयत के आधार पर शंकराचार्य की नियुक्ति नहीं की जा सकती है और न ही वसीयत इसका आधार बन सकती है।’ उन्होंने कहा, ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की नियुक्ति सदैव ही अखाड़ों की सहमति से और उनके बीच ही की जाती है। और यहां तो नए शंकराचार्य की नियुक्ति से पहले न तो अखाड़ों से चर्चा की गई और न ही विश्वास में लिया गया। महंत पुरी ने कहा , चर्चा होती तो सामंजस्य बनाने की पहल होती तो शायद सर्वमान्य नियुक्ति होती। 

विरोध की बड़ी वजह यह भी

महंत रवींद्र पुरी ने 1941 में ब्रह्मलीन स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी नियुक्ति जूना व अन्य अखाड़ों की अध्यक्षता में हुई थी। जल्दबाजी में की गई शंकराचार्य की नियुक्ति का विरोध इसलिए भी है कि उत्तराखंड में गिरी संन्यासियों की संख्या सबसे ज्यादा हैं। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य की जब पेशवाई होती है तो उसका नेतृत्व जूना अखाड़ा करता है। उनका दावा है कि वसीयत के आधार पर शंकराचार्य की नियुक्ति नहीं होती है, यह बात स्वयं स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने कही थी। 

इस पर भी अखाड़ों को ऐतराज

महंत रवींद्र पुरी ने षोडशी परंपरा का निर्वहन नहीं करने का भी आरोप लगाते हुए कहा कि शंकराचार्य के समाधिस्थ होने पर षोडशी पाठ होता है। 16 वें दिन भंडारे का आयोजन किया जाता है, लेकिन परमहंसी में तेरहवीं मनाई गई और इस दिन भंडारा का आयोजन किया गया, जो सनातनी परंपरा के अनुकूल नहीं है। उन्होंने यह दावा भी किया कि जूना, अग्नि, आह्वान, निरंजनी व आनंद अखाड़ा इस विरोध में उनके साथ हैं। 

Created On :   26 Sep 2022 11:23 AM GMT

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