ब्रह्मलीन हुए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य महाराज, दोपहर साढ़े तीन बजे ली अंतिम सांस

Swami Swaroopanand Saraswati Shankaracharya Maharaj became Brahman, took his last breath at 3.30 pm
ब्रह्मलीन हुए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य महाराज, दोपहर साढ़े तीन बजे ली अंतिम सांस
परमहंसी गंगा आश्रम में समाधि कार्यक्रम 12 सितंबर को, सुबह से कर सकेंगे पारि्थव शरीर के दर्शन ब्रह्मलीन हुए स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य महाराज, दोपहर साढ़े तीन बजे ली अंतिम सांस


नरसिंहपुर ।  दि्वपीठाधीश्वर जगदगुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती शंकराचार्य महाराज 99 वर्ष की आयु में ब्रह्मलीन हो गए। रविवार दोपहर करीब साढ़े तीन बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनका अंतिम संस्कार, समाधि कार्यक्रम सोमवार शाम 4 बजे परमहंसी गंगा आश्रम में होगा। उनके पारि्थक शरीर को मणिद्वीप सि्थत नया पार्क में समाधि दी जाएगी। रविवार शाम से सोमवार दोपहर तक श्रद्धालु महाराजश्री के पारि्थक शरीर के अंतिम दर्शन कर सकेंगे। आश्रम के स्वामी अचलानंद ने बताया कि रविवार दोपहर को महाराजश्री को अटैक आया था। जिसके बाद आश्रम में मौजूद 18 चिकित्सकों की टीम ने उनका इलाज शुरू किया, लेकिन उन्हें नहीं बचाया जा सका। दोपहर तीन बजकर 21 मिनट पर उन्होंने अंतिम सांस ली। ये खबर जैसे ही आश्रम से बाहर निकली, वैसे ही देशभर में शोक की लहर व्याप्त हो गई। सोशल मीडिया पर दुख जताया जाने लगा। स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिष उत्तराखंड व शारदापीठ द्वारका, ज्योतिषपीठ बदि्रका आश्रम के पीठाधीश्र्वर थे।
गंगा कुंड तक पालकी में विराजित पारि्थव शरीर
ब्रह्मलीन होने के बाद शंकराचार्यजी के पारि्थव शरीर को सिंहासन पर विराजित किया गया। पालकी सजाई गई और शोभायात्रा परमहंसी गंगा आश्रम सि्थत गंगा कुंड तक निकाली गई। भक्त, श्रद्धालु अश्रुपूरित होकर महाराजजी के जयकारे लगाते रहे।
मात्र 9 वर्ष की आयु से धर्म प्रचार
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 को मध्य प्रदेश के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी थीं। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्राएं शुरू कर दी थीं। इस दौरान वे काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह क्रांतिकारी साधु के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक दल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाए गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में शारदा पीठ शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-संन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।
12 दिन पूर्व ही 100वें वर्ष में प्रवेश  
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने 12 दिन पूर्व यानी 30 अगस्त को अपने जीवनकाल के 99 वर्ष पूरे कर 100वें वर्ष में प्रवेश किया था। इस दौरान देशभर से राजनीतिक, समाजसेवा, धर्म के क्षेत्र से जुड़ी नामचीन हसि्तयां परमहंसी गंगा आश्रम में पहुंची थीं। यद्यपि महाराजश्री के स्वास्थ्य को देखते हुए ये अवतरण दिवस सादगीपूर्ण रहा था।
चातुमरस के बाद नहीं कर सके सीमा उल्लंघन
चातुमरस के दौरान स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती परमहंसी गंगा आश्रम में ही रहे। भादपक्ष की पूरि्णमा पर 10 सितंबर को ही चातुमरस पूरा हुआ था। इसके बाद उन्हें सनातन नियमों के अनुसार सीमा उल्लंघन यानी नदी पार करना था, लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के कारण वे ऐसा नहीं कर सके।
शिवराज-योगीनाथ समेत दिग्गजों ने दी श्रद्धांजलि
शंकराचार्यजी महाराज के ब्रह्मलीन होने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने टि्वटर पर अपने संदेश में कहा कि पूज्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्राणांत की सूचना अत्यंत दुखद है। पूज्य स्वामीजी सनातन धर्म के शलाका पुरुष एवं संन्यास परंपरा के सूर्य थे। योगी आदित्यनाथ ने इसे अपूर्णनीय क्षति बताया। इसी तरह राष्ट्रीय कांग्रेस की दिग्गज नेता पि्रयंका गांधी ने भावुक शब्दों मंे लिखा कि इस देहावसान का समाचार पाकर मन को बहुत कष्ट पहुंचा। मेरी दादी व पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनसे आशीवरद लेने जाया करती थीं। एक संस्मरण उन्होंने लिखा कि 1990 की बात है, मैं बहुत छोटी थी जब वे पापा के बुलाने पर गृहप्रवेश के दौरान आशीवरद देने के लिए आए थे। तभी पहली बार मैंने उनका दर्शन किया था। पिछले साल मैं भी उनसे मिलने गई तो शंकराचार्य जी ने आशीवरद स्वरूप मुझे एक साड़ी भेंट की थी। वे ऐसे धर्मगुरु थे जो तर्क और न्याय पर भरोसा करते हुए ईश्र्वर तक पहुंचने का मार्ग सुझाते थे। स्वामी जी ने धर्म और परमार्थ के लिए अपना पूरा जीवन समरि्पत कर दिया। उनके जाने से समस्त समाज को अपूर्णीय क्षति हुई है। पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शमर ने भी अपना शोक टि्वटर पर व्यक्त किया है।

Created On :   11 Sep 2022 1:57 PM GMT

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