एंपिरिकल डेटा के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को दी जाए निधि

Fund should be given to Backward Classes Commission for empirical data
एंपिरिकल डेटा के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को दी जाए निधि
वर्धा एंपिरिकल डेटा के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग को दी जाए निधि

डिजिटल डेस्क, वर्धा। राज्य सरकार के कारण राज्य के ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण नहीं मिला है। यह आरक्षण दोबारा अच्छे स्वरूप में मिलने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसर एंपिरिकल डेटा जमा करने  राज्य सरकार उपाययोजना नहीं कर रही है। राज्य सरकार ने ओबीसी को गुमराह करना बंद करें और राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को ओबीसी का एंपिरिकल डेटा जमा करने के लिए आवश्यक साढ़े चार सौ करोड़ रुपए की मदद की जाए, एेसी मांग भाजपा के प्रदेश सचिव राजेश बकाने ने पत्र परिषद में की। धंतोली स्थित भाजपा जिला कार्यालय में सोमवार को आयोजित पत्र परिषद में वे बोल रहे थे। 

विधायक डॉ. रामदास आंबटकर, भाजपा जिलाध्यक्ष सुनील गफाट, भाजपा जिला उपाध्यक्ष गुड्डू कावले, प्रवीण चोरे, गिरीश कांबले उपस्थित थे।इस समय विधायक डॉ. रामदास आंबटकर ने गत दो वर्ष में राज्य सरकार ने ओबीसी के साथ धोखाधड़ी करने का स्पष्ट किया। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकार ने अध्यादेश निकालकर ओबीसी का आराक्षण लागू करने का प्रयास किया। मात्र यह अध्यादेश सर्वोच्च न्यायालय की शर्तो के अनुसार नहीं है। राज्य चुनाव आयोग ने भी हाल ही में 86 नगरपालिकाओं में अध्यादेश के आधार पर ओबीसी आरक्षण का ड्रॉ घोषित किया। 

मात्र इस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि, इस अध्यादेश को उच्च न्यायालय के औरंगाबाद खंडपीठ में आवाहन दिया गया है। आयोग की ओर से किए जाने वाली सभी कार्रवाई उच्च न्यायालय के निर्णय के अधिन रहकर की जानी चाहिए। इस कारण ओबीसी पर हमेशा तलवार लटक रही है। फरवरी माह में राज्य के 85 फीसदी स्थानीय स्वराज्य संस्था के चुनाव हो रहे हैं। राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार ओबीसी को आरक्षण नहीं दिया तो समाज को राजनीतिक आरक्षण के अवसर को गंवाने का खतरा है।

इस समय राजेश बकाने ने कहा कि ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण बनाए रखने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने 13 दिसंबर 2019 को बताया था कि, राज्य पिछड़ावर्ग आयोग स्थापन कर एंपिरिकल डेटा जमा किया जाए। राज्य सरकार ने समय रहते इस आदेश का पालन किया होता तो स्थानीय स्वराज्य संस्थानों के ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण बचा होता। मात्र राज्य सरकार ने 15 माह में न्यायालय के 7 बार मिले तारिखों में केवल टाइमपास करने की भूमिका निभाई। अंत में मार्च 2021 में सर्वाेच्च न्यायालय ने यह आरक्षण रद्द किया। इस में केवल महाराष्ट्र राज्य में ही ओबीसी का राजनीतिक आरक्षण रद्द हुआ है, एेसा बताया गया है।

 

Created On :   30 Nov 2021 8:23 PM IST

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