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डूब की भूमि को खेती में देने में हुई अनियमितताएं, सरकार ने जारी किए नए निर्देश

डिजिटल डेस्क, भोपाल। प्रदेश के बांधों को बनाने से डूब में आई भूमि को पानी उतरने पर कुछ समय के लिए उस डूब वाली भूमि को किसानों को सिंचाई हेतु दिया जाता है। इस काम में काफी अनियमितताएं हो रही थीं। इसलिए अब राज्य सरकार को नए सिरे से निर्देश जारी करने पड़े हैं और अब प्रति एकड़ दर का भी निर्धारण कर दिया गया है। जल संसाधन विभाग के सभी मुख्य अभियंताओं को भेजे अपने ताजा निर्देश में सरकार ने कहा है कि यह देखा जा रहा है कि बांध के डूब क्षेत्र से निकली भूमि को कृषि कार्य हेतु पट्टे पर दिए जाने में अनियमितताएं बरती जा रही हैं। इसलिए अब नए निर्देशों के तहत डूब से निकली भूमि को कृषि कार्य हेतु दिया जाए।
मुख्य अभियंताओं से कहा गया है कि वे हर एक किसान को पट्टे पर दी जाने वाली भूमि का क्षेत्रफल, अन्य भूमि सहित 5 एकड़ से अधिक एवं एक एकड़ से कम नहीं होना चाहिए। इस डूब वाली भूमि के पट्टों का आवंटन सभी पात्र व्यक्तियों को करने के पश्चात शेष बची भूमि का आवंटन खुली नीलामी से किया जाए एवं नीलामी की न्यूनतम दर एक हजार रुपए प्रति एकड़ निर्धारित किया जाए। यदि कोई पट्टेदार निर्धारित समय के अंदर पट्टे की राशि जमा नहीं करता है तो उसे भविष्य में भूमि पट्टे पर नहीं दी जाए। डूब से निकली भूमि कृषि कार्य हेतु पट्टे पर दिए जाने से राजस्व प्राप्ति की रसीद निर्धारित प्रपत्र एमपीटीसी-6 फार्म में ही दी जाए एवं प्राप्त राजस्व को तत्काल शासकीय खाते में जमा किया जाए। मुख्य अभियंताओं से यह भी कहा गया है कि डूब से निकली भूमि कृषि कार्य हेतु आवंटित किए जाने के लिए विज्ञापन जारी करते समय पर्याप्त सावधानी बरती जाना आवश्यक है।
वहीं इस मामले में प्रमुख अभियंता जल संसाधन मप्र राजीव कुमार सुकलीकर ने बताया कि बांध के निर्माण से बहुत सारी भूमि डूब में आती है तथा इन्हें सरकार मुआवजा देकर अधिगृहित करती है। पानी उतरने पर यह डूब वाली भूमि खाली हो जाती है तथा उपजाऊ होने इसे खेती हेतु दिया जाता है। प्राथमिकता उन किसानों को दी जाती है जिनसे यह भूमि अधिगृहित की गई है। इस कार्य में काफी अनियमितताएं देखने में आई थीं, इसलिए नए सिरे से इस संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं।
Created On :   28 Dec 2017 12:18 PM IST