- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- वर्धा
- /
- संयुक्त परिवार में आपसी सूझबूझ से...
संयुक्त परिवार में आपसी सूझबूझ से समस्या होती हैै हल
डिजिटल डेस्क, वर्धा। संयुक्त परिवार में आपसी प्रेम और एकदूसरे के साथ संवाद जरूरी है। यही स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है। कभी कोई समस्या आने पर एकजुट होकर उस समस्या का आसानी से हल निकल आता है। यही है संयुक्त परिवार की ताकत। यह कहना है शहर के समता नगर स्थित सावरकर लेआउट निवासी 73 वर्षीय विट्ठल नामदेव भित्रे का।
आपकी जिंदगी का महत्तवपूर्ण वह कौन सा पल था, जिसमें आपने सफलता पाई और यह पल किस तरह आने वाली पीढ़ी को मार्गदर्शन करता है?
हम पहले आंजी पेठ में रहते थे। रोज मजदूरी के कार्य के लिए सेलू में स्थानांतरित हुए। उसके बाद 70 रुपये महीने से रेलवे में नौकरी लग गई। मैंने रेलवे में नौकरी कर अपने परिवार की हर जरूरत को पूरा किया। साथ ही बच्चों को पढ़ाया लिखाया और उनकी पढ़ाई में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होने दी। रेलवे की नौकरी होने से स्थानांतरण होता रहा और वर्धा में पिछले 31 साल से रह रहे हंै। 1978 में मुझे जब रेलवे में नौकरी लगी और मैंने शराब का सेवन छोड़ दिया। उसके बाद मुझे जीवन में सफलता हासिल हुई। हम पति-पत्नी ने अपने बच्चों को कोई भी कार्य करने से नहीं रोका। आज मेरे तीनों बेटे अपना-अपना कार्य कर रहे हैं और एक साथ रहकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
आपने जो जिंदगी में अनुभव प्राप्त किए हैं, वे किस तरह भविष्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं?
मेरा मानना है कि कोई भी कार्य छोटा नहीं होता। किसी भी कार्य को कम न समझते हुए उसे पूरी लगन के साथ करना चाहिए। आज मेरे तीनों बेटों के पास बड़ी नौकरी न होते हुए वह पूरी ईमानदारी से अपना व्यवसाय कर रहे हैं। पहले हम ईंट भट्टी पर कार्य करते थे। दयनीय स्थिति में तीनों बच्चों की परवरिश की। उस समय काफी संघर्ष करना पड़ा था जिसके चलते उस परिस्थिति को देखते हुए आज मेरे तीनों बेटों ने अपना व्यवसाय स्थापित कर जीवन को सुगम बनाया। जो संस्कार दिए थे आज वही संस्कार मेरे बच्चों में हैं। जिस कारण मेरे तीनों बेटे अपने-अपने क्षेत्र में कामयाब हैं। किसी भी तरह के काम में शर्म न रखना यही मंत्र भविष्य को बेहतर बनाने में मदद करता है, यह मेरा मानना है।
अपने शहर, समाज और देश के लिए अब क्या करना चाहते हंै, आज की पीढ़ी को क्या करने की जरुरत है?
पहले से ही सामाजिक कार्यों में हम आगे रहे हैं। जब भी किसी को किसी प्रकार की कोई आवश्यकता पड़ी, हमने उनकी मदद की। यही संस्कार मेरे तीनों बेटों में आए हैं। हमारे बेटे इस समय भी किसी की भी मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। लॉकडाउन में बहुत से ऐसे नागरिक थे जो मीलों दूर से पैदल सफर कर अपने गांव जा रहे थे। भूखे प्यासे वे सफर कर रहे थे। उस समय हमने उन नागरिकों को भोजन दिया और यथाशक्ति मदद कर उनकी समस्याओं का निवारण किया। मेरा मानना है कि हमें समाज के दायित्वों का पालन करना चाहिए। एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए। आखिर जीवन का सार दूसरों की मदद करने में है।
Created On :   28 Dec 2021 6:30 PM IST