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लीव लेने की वजह प्रायवेसी के दायरे में, राज्य सूचना आयोग का फैसला
डिजिटल डेस्क, भोपाल। एमपी राज्य सूचना आयोग ने एक अहम फैसले में अभिनिर्धारित किया है कि सूचना के अधिकार के तहत लोक सेवकों के अवकाश और उपस्थिति संबंधी जानकारी दी जानी चाहिए, लेकिन अवकाश आवेदनों की नकलें देना बाध्यकारी नहीं है। निजता के मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए अवकाश के व्यक्तिगत कारणों का खुलासा, तब तक नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि कोई अपरिहार्य स्थिति या व्यापक लोकहित की परिस्थिति उत्पन्न न हो ।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने एक जज की अपील खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। फैसले में कहा गया है कि अपीलार्थी जज ने सभी जजों के अवकाश आवेदनों की प्रमाणित प्रतिलिपियां नहीं दिए जाने के लोक सूचना अधिकारी /कोर्ट अधीक्षक एवं अपीलीय अधिकारी/जिला व सत्र जज के निर्णय को चुनौती दी है और उक्त प्रतिलिपियां दिलाने की मांग की है। इसे इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि जजों द्वारा अपने अवकाश आवेदन पत्रों में अवकाश लेने के व्यक्तिगत कारणों का उल्लेख किया गया है। इनकी जानकारी देने से उन व्यक्तिगत कारणों का सार्वजनिक प्रकटन होगा जिससे जजों की निजता/एकांतता का हनन होगा। अवकाश आवेदनों की जानकारी न तो लोक क्रियाकलाप या लोकहित से संबंधित है और न ही यह जानकारी चाही जाने का औचित्य स्वीकार किए जाने योग्य है।
यह है मामला
मेहगांव के व्यवहार जज ने सूचना के अधिकार के तहत दि. 16/02/16 को जिला व सत्र कोर्ट , भिण्ड के लोक सूचना अधिकारी से जानकारी मांगी थी कि अप्रैल 15 से फरवरी 16 तक मासिक मीटिंग में उपस्थित जजों का हस्ताक्षर पत्रक। अप्रैल 15 से फरवरी 16 तक जिला भिण्ड में पदस्थ सभी जजों के अवकाश आवेदनों एवं उनमें किए गए आदेशों की प्रतियां। कोर्ट अधीक्षक ने अपीलार्थी को मासिक मीटिंग में उपस्थित हुए जजों के हस्ताक्षर पत्रक की जानकारी दे दी। किन्तु सभी जजों के अवकाश आवेदनों व उनमें किए गए आदेश की जानकारी देने से यह कहकर इंकार कर दिया कि धारा 8 (1) (जे) के प्रावधानों के अंतर्गत सूचना, जो व्यक्तिगत सूचना से संबंधित है, जिसका प्रकटन किसी लोक क्रियाकलाप या लोकहित से संबंध नहीं रखता है, की जानकारी प्रदान नहीं की जा सकती ।
Created On :   29 Aug 2017 7:05 PM IST