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प्रदेश में आयुर्वेदिक औषधि के माध्यम से खुलेंगी शराब फैक्ट्री
दैनिक भास्कर न्यूज़ डेस्क, भोपाल। प्रदेश में वर्तमान शराबनीति और नई दुकानें और फैक्ट्रियां नहीं खुलने के विकल्प के बतौर द्राक्षासव के माध्यम से शराब बनाने की तैयारी की जा रही है। शराब के विकल्प के रूप में उद्योगपतियों की इस पेशकश को मुख्यमंत्री द्वारा स्वीकारे जाने के बाद उद्योग एवं वाणिज्य विभाग की बैठक में इस विषय को रखे जाने के निर्देश दिये गए हैं।
ज्ञातव्य है कि द्राक्षासव आयुर्वेदिक औषधि है तथा इसमें शराब की तरह अल्कोहल मिलाया जाता है। द्राक्षासव में अल्कोहल की निर्धारित मात्रा हो इसके लिये वाणिज्यिक कर विभाग का आबकारी कार्यालय लायसेंस जारी करता है। प्रदेश के दतिया आदि जिलों में आयुर्वेद कंपनियों को आबकारी कार्यालय ने लायसेंस दिये हुये हैं। अब रीवा में द्राक्षासव निर्माण की फैक्ट्री लगाये जाने का प्रस्ताव राज्य सरकार के पास आया है जिस पर सीएम ने वाणिज्यिक कर विभाग को इस बारे में अभिमत देने के लिये कहा है। इसके बाद वाणिज्यिक कर विभाग के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव ने नोटशीट भेजकर अपने विभाग से द्राक्षासव के बारे में शराब नीति में प्रावधानों के बारे में पूछा है। द्राक्षासव को नोटशीट में उन्होंने अंगूर की शराब यानी वाईनरी माना है।
विभाग ने स्पष्ट कर दिया है कि अंगूर की शराब बनाने का तो नीति में प्रावधान है लेकिन सीएम की घोषणा है कि नई शराब फैक्ट्रियां नहीं खोली जायेंगी, लिहाजा इस मामले में आपत्ति दर्ज कराई गई है। अब उद्योग एवं वाणिज्य विभाग की आगे होने वाली बैठक में इस अभिमत को रखेगा जिसपर मुख्यमंत्री को निर्णय लेना है। यदि यह प्रस्ताव मंजूर हुआ तो प्रदेश में द्राक्षासव के माध्यम से अल्कोहोलिक पदार्थों के निर्माण का रास्ता खुल जायेगा।
अंगूर की शराब के निर्माण के बारे में नीति में प्रावधान है परन्तु सीएम की घोषणा भी है कि नई शराब की फैक्ट्रियां नहीं खोली जायेंगी। इसलिये जो क्योरी विभाग से की गई है, उसे सीएम के पास भेज दिया जायेगा। द्राक्षासव में अल्कोहल होता है तथा इसके निर्माण हेतु आबकारी विभाग लायसेंस जारी करता है।
-एसडी रिछारिया उप सचिव वाणिज्यिक कर विभाग
Created On :   30 Jun 2017 10:48 AM IST