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मंडे पॉजिटिव - वोकल फॉर लोकल की मांग से उम्मीदों की लौटी चमक
दीपक, थैले और पूजन सामग्र्री के बाजार में चार करोड़ रुपए की खरीदारी के आसार
डिजिटल डेस्क बाकल/ कटनी । दीपोत्सव पर्व पर वोकल फॉर लोकल की ओर ग्राहकों के रुझान से बाजार नई उम्मीदों से भरा हुआ है। स्थानीय स्तर पर बनने वाला उत्पाद लोगों की पहली पसंद है। बाजार का रुख देखते हुए दुकानदार भी इसके लिए तैयार हैं। खासतौर पर दिया और मूर्ति बनाने वाले स्थानीय कलाकार कोरोना संक्रमण काल में इसे एक अच्छा अवसर मान रहे हैं। इसके साथ स्थानीय स्तर पर बनने वाली मिठाईयों और रोशनी के लिए स्थानीय स्तर पर तैयार किए झालरों की भी मांग बाजार में है। इसे देखते हुए ग्रामीण आजीविका विभाग भी स्व-सहायता समूहों को आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश में जुटा हुआ है, ताकि दीपावली के बाजार में स्थानीय उत्पादों को उतराकर सदस्य अपने लिए एक प्लेटफार्म तैयार कर लें। पूजन सामग्री में लाई और बताशे की मांग को देखते हुए गांव में छोटे-छोटे दुकानदार इसकी तैयारी में लगे हुए हैं। दुकानदार, व्यवसाई, उद्योगपति के साथ आम ग्राहकों का कहना है कि यदि इसी तरह का ट्रेंड बाजार में बना रहता है तो निश्िचित ही सभी वर्ग के लोगों के लिए दीपों का पर्व एक नई रोशनी लेकर आएगा। स्थानीय व्यापारियों की मानें तो इस दौरान दिये, झालरा और पूजन सामग्री में करीब तीन करोड़ रुपए का व्यापार होता है।
कोरोना के चलते बदला रुप
औद्योगिक क्षेत्र के लोग कहते हैं कि कोरोना के चलते इस बार बाजार का एकाएक रुप बदला है। जिसका फायदा स्थानीय व्यापारियों को मिलेगा। कटनी खासतौर पर लघु और कुटीर उद्योग के लिए जाना जाता है। इससे लोगों को त्यौहार में ठीक-ठाक आमदनी होगी। युवा उद्योगपति अनुराग जैन बताते हैं कि बाजार का स्वरुप बदलने से सभी लोगों को कई तरह की उम्मीदें हैं। ग्राहक राजेश गुप्ता कहते हैं कि निश्चित ही जिस तरह से कोरोना काल में स्थानीय लोग एक-दूसरे के साथ खड़े होकर मदद करते आ रहे हैं। उससे सभी लोगों ने इस बार मन बना लिया है कि पहली प्राथमिकता में स्थानीय उत्पाद ही शामिल रहेंगे।
समूहों के चार आर्थिक अवसर
बहोरीबंद तहसील में 332 स्वसहायता समूह वर्तमान समय में सक्रिय हैं। जिसमें तीन हजार पांच सौ महिला सदस्य काम कर रही हैं। यहां पर वर्तमान समय में मिट्टी और गोबर के दिए पर समूहों ने फोकस किया है। छपरा में बाजार समझौता समूह का साल भर में टर्न ओवहर पांच लाख रुपए है। दीपावली में थैलों की अधिक आवश्यकता पड़ती है। जिसके लिए बंधी और मटवारा में 13-13 समूह थैला बनाने का काम कर रही हैं। आजीविका परियोजना अधिकारी आशीष पाण्डेय बताते हैं कि निश्चित ही जिस तरह से स्थानीय सामग्री की मांग बाजार में है। उसका फायदा समूहों को मिलेगा। विभाग के अधिकारियों की कोशिश है कि ऐसे उत्पादों को बाजार में उतरा जाए ताकि आगामी समय तक इनकीधाक बनी रही।
चार करोड़ रुपए का कारोबार
पूजन, दीपक और अन्य छोटी सामग्री से ही दीपावली में करीब चार करोड़ रुपए का कारोबार होता है। अप्रैल माह से बाजार बंद होने के कारण कई तरह की आर्थिक परेशानियों का सामना छोटे दुकानदार किए। खासतौर पर मिट्टी के काम करने वाले कलाकारों के पास कोई काम नहीं रहा। नवरात्र में जरुर उनके चेहरों में चमक तब आई, जब सरकार ने पंडालों में प्रतिमा बनाने की छूट दी। मूर्तिकार रामचंद्र बताते हैं कि इस बार लोग विदेशी सामग्रियों से दूरी बनाए हुए हैं। जिसके चलते उनके दुकान की पूछ-परख बढ़ी है। यदि इसी तरह से ग्राहकों का रुझान छोटे दुकानदारों के प्रति बना रहा तो निश्चित ही दीपक बनाने वाले छोटे कलाकारों के घरों में उम्मीदों की रोशनी जगमगाएगी।
Created On :   9 Nov 2020 6:33 PM IST