मंगलसूत्र गिरवी रखकर डेढ़ लाख रू. की में बस तब कहीं लौट पाए अपने गांव -सूरत में फंसे हैं जिले के हजारों श्रमिक

One and a half lakh rupees by mortgaging Mangalasutra I could only return to my village in Ki
 मंगलसूत्र गिरवी रखकर डेढ़ लाख रू. की में बस तब कहीं लौट पाए अपने गांव -सूरत में फंसे हैं जिले के हजारों श्रमिक
 मंगलसूत्र गिरवी रखकर डेढ़ लाख रू. की में बस तब कहीं लौट पाए अपने गांव -सूरत में फंसे हैं जिले के हजारों श्रमिक

डिजिटल डेस्क उमरिया। मैंने सूरत में रहते हुए लॉकडाउन के दौरान जिन कठिन दिनों को झेला है। वह मेरे जीवन के सबसे बुरे
दिन होंगे। हालात यहां तक पहुंच चुके थे कि हम लोगों ने केवल एक टाइम का खाना करना शुरू कर दिया था। क्योंकि लॉक डाउन में फंसने के कारण काम बंद था। पास में रखी जमा पूंजी खत्म हो गई थी। डेढ़ लाख रुपए में सूरत से लौटने के लिए बस मिलती थी। मंगलसूत्र गिरवी रखकर, परिजनों से उधार लेकर हम लोगों ने 50 हजार जुटाए तब जाकर घर लौटने का रास्ता साफ हो पाया। रूंधते हुए गले से यह पीड़ा जय प्रकाश मिश्रा निवासी मझगवां ने बयां की।
अन्य श्रमिकों की भांति करकेली जनपद के मझगवां 63 से 35 श्रमिकों का दल सूरत गुजरात गया हुआ था। ये लोग हर साल की भांति खेती बाड़ी करने के बाद रोजगार की तलाश में यहां से पलायन करते हैं। इस बार भी  दिसंबर-जनवरी माह में सूरत जिला के सरोली इलाके में पहुंचे थे। दल के सदस्यों में कोई चूना गारा, होटल, मिस्त्री, कारपेंटर व कंपनियों में दैनिक वेतनभोगी के रूप में जीविकोपार्जन कर रहे थे। सब कुछ ठीक चल रहा था इसी दौरान मार्च 21 को वहां लॉक डाउन घोषित हो गया।  बस तभी से बुरे दिन शुरू हो गए। वे लोग निजी बस में 5-10 हजार रुपए किराया चुकाकर कटनी तक पहुंच पाए। तब गांव की मिट्टी नसीब हुई।

कहीं नहीं हुई सुनवाई -श्रमिकों का कहना है लॉकडाउन के बाद पहला माह तो किसी कदर गुजर गए। जैसे ही दूसरा चरण प्रारंभ हुआ ज्यादातर लोगों का राशन पानी व रुपए खत्म हो गया। जयप्रकाश मिश्रा ने बताया उन्होंने खुद 4-5 बार श्रमिक ट्रेन से लौटने के लिए बुकिंग कराई। रजिस्ट्रेशन के बाद टिकट की स्थिति ही स्पष्ट नहीं हो पाती थी। उनका कहना है अप्रैल पहुंचते ही  खाने के लाले पडऩे लगे। समूह में कई लोग छोटे बच्चों के साथ रहते थे। लिहाजा उन्होंने उमरिया व सूरत में अफसर व जनप्रतिनिधियों के सामने मदद की गुहार लगाना प्रारंभ किया। श्रमिक नरेश विश्वकर्मा, राहुल, प्रकाश, मुकेश, सुशील का कहना है जिले के आला अफसर, विधायक, मंत्री हर कोई भी न बचा था जिनसे विनती न की। हर किसी ने आश्वासन देकर झांसा तो दिया लेकिन मदद को कोई न आगे आया। लिहाजा उन्होंने भूखों मरने की बजाए घर लौटना प्रारंभ किया। पहले तो पैदल ही निकल रहे थे लेकिन परिवार में छोटे बच्चों को देखकर वाहन के लिए चक्कर काटने शुरू किए। 3-4 दिन बाद नंबर लग पाया। सूरत से बस एक लाख 60 हजार रुपए में कटनी तक आती थी। हम लोगों ने परिजनों से रुपए मंगवाकर 4-5 के दलों में वहां से निकलना प्रारंभ किया। कटनी से पिकअप कर उमरिया पहुंचे। सबसे पहले जिला अस्पताल में जागरुक का परिचय देते हुए स्क्रीनिंग व जांच करवाई। वहां से हरी झंडी मिलने के बाद 17 मई को घर क्वारेंटीन हुए। 

अभी भी फंसे हैं सैकड़ो लोग
गुजरात से लौटे इन श्रमिकों का कहना है सूरत में हजारों की संख्या में यहां के श्रमिक फंसे हुए हैं। रुपए का इंतजाम न होने से लौट नहीं पा रहे। न  तो स्थानीय प्रशासन कोई मदद कर रहा न ही मप्र. का। श्रमिक जयप्रकाश ने बताया ट्रेन, बसें केवल नेताओं के मुंह तक सीमित है। जितनी कठिनाई फंसे लोगों को हो रही है इसका दर्द इसी बात से समझा जा सकता है कि लोग पैदल सैकड़ों किमी. का जानलेवा सफर खड़ी दोपहर में करने मजबूर हैं। दूसरे प्रदेशों से मजदूरों के परिवहन व्यवस्था को व्यापक स्तर पर सुधार की जरूरत है।
 

Created On :   20 May 2020 1:50 PM GMT

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