दिव्यांग शंकर सिंह के जज्बें को सलाम "खुशियों की दास्तां" -

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दिव्यांग शंकर सिंह के जज्बें को सलाम "खुशियों की दास्तां" -

डिजिटल डेस्क, उमरिया। अक्सर लोग छोटी सी परेशानी आने पर ही हिम्मत हार जाते हैं, और अपनी किस्मत को कोसने लगते हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें देखकर जीने की प्रेरणा मिलती है, उन्हीं में से एक हैं मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के रहने वाले शंकर सिंह, जिनके जन्म से ही हाथ पैर नहीं हैं. फिर भी बिना हाथ पैर के अपने सारे काम खुद करते हैं। कुदरत की मार के बाद भी शंकर ने कभी जिंदगी में हार नहीं मानी, बल्कि जीवन में आने वाली हर परेशानी का डटकर सामना कर रहे है। शंकर के अदम्य साहस की कहानी शंकर सिंह का जन्म 2001 में उमरिया जिले में करकेली जनपद के ग्राम गहिराटोला में हुआ था। शंकर के पिता हजारी सिंह पेशे से किसान हैं, और मां मीरा सिंह एक गृहणी हैं। जब शंकर का जन्म हुआ तब वह जन्म से ही एक भयंकर बीमारी टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम (हाथ और पैरो का न होना) से ग्रसित थे। पूरी दुनिया में इस तरह के गिनती के लोग हैं। कुदरत की मार के बाद भी शंकर सिंह के उत्साह के सामने हाथ पैर वाले व्यक्ति का उत्साह फीका पड़ जाता है। जन्म के बाद जब शंकर के माता पिता ने उन्हें देखा, तो दुखी तो हुए, लेकिन कुछ समय बाद उनकी मां और पिता ने उनके इस स्थिति को स्वीकार कर उन्हें अपना लिया। दिव्यांग शंकर अपने मुंह में पेन रखकर शब्द गढ़ते हैं, और फोन भी चला लेते है। शंकर तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म मे काफी एक्टिव हैं, और एक सामान्य व्यक्ति के जैसे ही पोस्ट लाइक करते हैं। वीडियो साइट्स पर भी शंकर मोटिवेशनल वीडियो देखते हैं। शंकर का कहना है कि वो पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना चाहते हैं, इसके लिए उन्होंने शासन से एक स्वचालित वाहन दिलाने की मांग की है। प्राथमिक शाला नौसेमर में अपनी प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की है। जिन विषयों से सामान्य छात्र भागते हैं उनमें से गणित विषय में शंकर की विशेष रूचि है। शंकर सिंह अपने बड़े भाई के साथ विद्यालय जाते थे, पर बड़े भाई उच्च शिक्षा के लिए बाहर चले गए। शंकर को आने जाने में काफी समस्या होती है, शंकर का कहना है, अगर कोई स्वचालित चार पहिए वाहन की व्यवस्था हो जाए, तो आगे की पढ़ाई हो सकेगी। वे पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनना चाहते हैं। शासन से उन्हें स्व चलित वाहन की दरकार है। जिससे वे स्कूल जा सकें और आगे की पढ़ाई पूरी कर सकें। साथ ही स्कूल में बैठने की ऐसी व्यवस्था बने कि भवन में सीढि़या चढ़ने उतरने की समस्या न आए। शारीरिक कमी को बाधा न बनने दें। शंकर सिंह का कहना है कि शरीर मे कोई कमी रह गई हो, तो जरा भी घबराए नहीं, पूरे उत्साह और उमंग के साथ मेहनत करें और कुछ ऐसा कर जाइए जिससे देश और समाज का नाम रोशन हो। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने शासन द्वारा दिव्यांगों को दी जाने वाली हर सुविधा का लाभ दिलाने की बात कही है।

Created On :   5 Dec 2020 1:51 PM IST

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