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शिक्षकों ने बच्चों को तराश कर बदल दी विद्यालय की तस्वीर - अभिभावकों को बनाया साक्षर, फिर बच्चों पर दिया ध्यान
डिजिटल डेस्क कटनी । जिले में आज भी कई शासकीय स्कूल ऐसे हैं, जो अध्यापन के मामले में प्राइवेट स्कूलों को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। शिक्षकों की इसे कोशिश ही कहें कि माध्यमिक स्कूल खड़ोला का नाम उन विद्यालयों में शामिल हैं। जहां पर बच्चों के लिए यह स्कूल ज्ञान प्राप्त करने का मंदिर है। दो वर्ष के अंतराल में स्कूल का शैक्षणिक स्तर इस तरह से सुधरा है कि अब सत्तर से अस्सी प्रतिशत विद्यार्थी कक्षानुरुप दक्ष हासिल कर चुके हैं। वर्ष 2004 में जब प्रधानाध्यापक के पद पर युवा शिक्षक राकेश सिन्नरकर पहुंचे तो तभी से उन्होंने इस स्कूल को उस मुंकाम तक पहुंचाने का सपना संजोया। जिसकी इच्छा प्रत्येक अभिभावक को होती है। साक्षर भारत अभियान से जुड़े होने के कारण सबसे पहले तो अभिभावकों को साक्षर बनाया। इसके बाद स्कूल स्टाफ के साथ बच्चों को तराशने का काम शुरु कर दिया।
स्टाफ की कोशिश से सुधरा स्तर
स्टाफ की कोशिश से बच्चों का भी स्तर सुधरा। दो वर्ष पहले लर्निंग ट्रेकर से कसावट आई और स्कूल में साठ से सत्तर प्रतिशत कक्षानुरुप दक्षता हासिल किए। गणित विषय में पहले सिर्फ 12 प्रतिशत बच्चे ही कक्षानुरुप सवालों को हल कर पाते थे। अब 60 प्रतिशत बच्चे दक्षता हासिल कर चुके हैं। इसी तरह से हिन्दी विषय में भी 40 प्रतिशत से बढ़कर दक्षता 72 प्रतिशत बच्चों में पहुंच चुका है।
राज्य स्तर में हुई है सराहना
प्रधानाध्यापक की यह कोशिश ही रही कि पिछले वर्ष कटनी और खड़ोला स्कूल ने प्रदेश भर में अपनी पहचान बनाई। शिक्षक ने बताया कि शैक्षणिक सत्र 2019-20 में कहानी प्रतियोगिता में उन्होंने जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया। इसके बाद राज्य स्तर की प्रतियोगिता मेें भी उन्हें कहानी सुनाने का मौका मिला। जिसमें जिले ने 48 जिलों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। शिक्षक का कहना है कि बच्चों के साथ-साथ हमें भी अपडेट रहने की आवश्यकता है।
अभिभावकों को किया साक्षर
शुरुआती दौर में जब शिक्षक यहां पदस्थ हुए और राष्ट्रीय पर्व को लेकर अभिभावकों के बीच जब रजिस्टर में सूचना पहुंचाते थे तो करीब नब्बे प्रतिशत अभिभावकों के अंगूठे के निशान देखकर शिक्षक ने यह सपना संजोया कि बच्चों के साथ अभिभावकों को भी पढऩा-लिखना आना चाहिए, तभी बच्चों का स्तर सुधरेगा। उस समय वे साक्षर भारत अभियान से जुड़े हुए थे। ऐसे में अभिभावकों को साक्षर करने के लिए जुट गए और अन्य ग्रामीणों की मदद लिए। जिसका सार्थक परिणाम है कि आज सत्तर से अस्सी प्रतिशत लोग पढऩा-लिखना जानते हैं।
जिम्मेदारियों का ही किया निर्वहन
इस संबंध में प्रधानाध्यापक राकेश सिन्नरकर बताते हैं कि उनके साथ पूरा स्टाफ अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन किया। जिसके सार्थक परिणाम सामने आए। इन्होंने बताया कि उनकी माता स्वयं शिक्षिका रही। जिसके बाद वे स्कूल से ही शिक्षक बनने का सपना संजोए थे। खासतौर पर गणित विषय का जिस तरह से क्रेज रहा। उसी विषय में इन्होंने कैरियर बनाया और शासकीय सेवा में आने का अवसर मिला। हर कार्य को अच्छी तरह से करना चाहिए।
Created On :   4 Sept 2020 6:29 PM IST