Panna News: शारीरिक, पारिवारिक और मानसिक वेदना को भुलाया नहीं जा सकता: शिवबिहारी श्रीवास्तव

शारीरिक, पारिवारिक और मानसिक वेदना को भुलाया नहीं जा सकता: शिवबिहारी श्रीवास्तव
  • आपातकाल की कहानी मिशाबंदी की जुबानी
  • शारीरिक, पारिवारिक और मानसिक वेदना को भुलाया नहीं जा सकता: शिवबिहारी श्रीवास्तव

Panna News: देश में ५० वर्ष से पहले २५ जून १९७५ को लागू किए गए आपातकाल के गवाह बने लोग आज भी उस दौर को याद करके सहम उठते है उनके लिए यह किसी जंग से कम नही था। पन्ना जिले में आपातकाल लागू होने के बाद देशव्यापी विरोध को रोकने के लिए विपक्षियों के साथ राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सक्रिय स्वयं सेवकों की गिरफ्तारियां हुई और इस दौरान उन्होंने चुनौतियां का सामना किया। आपातकाल के दौरान शारीरिक, पारिवारिक और मानसिक वेदना को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आपाकल से जुडी यादों एवं हुए घटनाक्रम को तरोताजा करते हुए ८७ वर्षीय बुजुर्ग अधिवक्ता एवं मिशाबंदी शिव बिहारी श्रीवास्तव बताते है कि जिस समय आपातकाल लागू हुआ उस समय मैं छतरपुर अस्पताल में अपने स्वर्गीय पिता लालता प्रसाद की बीमारी का उपचार में व्यस्त था। बस स्टैण्ड में आया तो पता चला कि देश बडे-बडे जनसंघ नेताओं और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के व्यक्तियों को मिशा के तहत निरूद्ध कर लिया गया है। उस समय मैं जन संघ का सचिव था उम्र लगभग ३५ वर्ष की थी पता चला कि पन्ना के स्वर्गीय बद्री प्रसाद गुप्ता, मूलचंद्र, अवध किशोर चौबे सहित करीब २० लोगों को पन्ना में गिरफ्तार कर लिया गया है उसी दिन एक परिचित के सीआईडी इंस्पेक्टर ने मुझे बताया कि पन्ना नहीं जाओ गिरफ्तार हो जाओगे तो मैं उसी रात को अपनी ससुराल चला गया।

जहां १५ दिन रहा इसी दौरान मेरी तलाश में लगी पुलिस की एक ५० सदस्यीय टीम डीएसपी राम सिंह व टीआई वेदप्रकाश श्रीवास्तव के नेतृत्व में मेरे घर पहुंच गई। घर की रात्रि ०३ बजे तलाशी ली किन्तु उस वक्त भय इतना था कि पडोसी रात में हो रही तलाशी के बाद भी मदद करने का साहस नहीं जुटा पाए जब मेरे घर में पुलिस तलाशी ले रही थी उस समय मेरी धर्मपत्नी प्रभा के अलावा तीन पुत्र जिनकी उम्र ०७ वर्ष, ०५ वर्ष व ०३ वर्ष तथा एक पुत्री ०८ माह ही घर में मौजूूद थे बच्चे सो रहे थे पत्नी ने पुलिस टीम से इतना ही कहा कि आप तलाशी ले सकते है लेकिन बच्चे छोटे है उन्हें जागना नहीं चाहिए इसके बाद पुलिस ने पूरे घर की तलाशी ली और पत्नी से कष्ट के लिए क्षमा मांगी। मिशाबंदी श्री श्रीवास्तव बताते है कि हमारे वरिष्ठ नेता कैलाश सारंग का संदेश प्राप्त हुआ था कि गिरफ्तारी नहीं देना है। कार्यकर्ताओ की सहायता करना है तब मैं बडी हुई दाढ़ी के साथ छिपते हुए पन्ना आया उस समय बच्चे सो रहे थे तो मंैने पत्नी को समझाया कि ऊपर वाले कमरे में रहंूगा और बच्चो को मालूम न हो।

देश में पहली बार पन्ना के दो अधिवक्ताओं की सम्पत्ति हुई कुर्क

मिशाबंदी श्री श्रीवास्तव ने बताया कि गिरफ्तारी न देने पर देश में प्रथम बार की दो अधिवक्ताओं मेरी और शंकर प्रसाद मिश्रा की सम्पत्ति कुर्क की गई। इसकी घोषणा आल इंडिया रेडियो सहित अन्य समाचार पत्रो में प्रकााशित हुई। समाचार मंैने अमृत बाजार पत्रिका में छपा देखा। लगातार परिवार के सदस्यों के साथ हो रहे अत्याचार के बाद पुलिस से मजबूर को होकर ०१ अगस्त १९७५ को मैंने अधिवक्ता शंकर प्रसाद मिश्रा को सूचित किया वह मेरे घर आए और हम दोनों ०२ अगस्त १९७५ को आत्मसमपर्ण कर दिया। जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष तत्कालीन एसपी ने गिरफ्तारी के बाद हमें जबलपुर जेल भेजन की सिफरिश की गई। जिस पर मजिस्ट्रेट के आदेश पर पुलिस ने हमें जबलपुर जेल भेज दिया जहां पर हम दोनों को सेग्रीगेसन बैरक में रखा गया जहां पर पन्ना के अन्य मीशांबदी सहित कई बडे नेता मौजूद थे। जेल में जीवन बहुत कठिन था सादे भोजन और सीमित सुविधाओं में रहना पडता था। जेल में दीपावली उमडे की सब्जी खाकर मनाई। जब मैं जेल में बंद था तो पत्नी व परिवार के बच्चों को बहुत ही वेदना और कष्ट सहने पडे परंतु इन सबके बीच कुछ ऐसे लोग भी सामने आए जिन्होंने मेरी पत्नी को ढंाढस बंधाया और मदद भी की। जेल में मंैने अपने परिवार और बच्चों को मिलने के लिए आने के लिए मना किया तथा परंतु एक बार सात साल का बेटा रिश्तेदार के साथ पहुंच गया तो उसे देखकर जो पीडा हुई थी वह भूल नहीं सका। आज भी जब मैं उस समय को याद करता हूं तो मेरे आंखो में आंसू आ जाते है लेकिन मुझे गर्व है कि आपातकाल के खिलाफ देश के लिए लडाई लडी।

Created On :   25 Jun 2025 12:25 PM IST

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