पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति का उद्देश्य
हरियाली अमावस्या जैसा कि नाम से ही पता लगता है, ये पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति के उद्देश्य से हर साल मनाई जाती है। इस दिन नदियों और जलाशयों के किनारे स्नान के बाद भगवान का पूजन-अर्चन करने के बाद शुभ मुहूर्त में वृक्षों को रोपा जाता है। इसके अनुसार शास्त्रों में विशेषकर आम, आंवला, पीपल, वटवृक्ष और नीम के पौधों को रोपने का विशेष महत्व बताया गया है। भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। श्रावण के दिनों में हरियाली अमावस्या को बहार के समान माना जाता है, जो धरती को हरा-भरा कर देती है।
हिन्दू संस्कृति और ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय से ही पेड़-पौधों में भगवान के अस्तित्व को मानकर उनकी पूजा करने का महत्व बताया गया है। अतः हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधों को रोपित करने और उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। आज के समय में विशेष रूप से हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में बढ़ रहे प्रदूषण और गंदगी की समस्या को हल करना भी है। पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूप को स्थान देकर उनकी पूजा का विधान बताया गया है। जल में वरुण देवता की परिकल्पना कर नदियों व सरोवरों को स्वच्छ व पवित्र रखने की बात कही गई है। वायुमंडल की शुचिता के लिए वायु को देवता माना गया है।