Shukra Pradosh Vrat: सितंबर में कब रखा जाएगा शुक्र प्रदोष व्रत, जानिए मुहूर्त व व्रत पारण का समय

- यह व्रत देवों के देव महादेव भगवान शिव को समर्पित है
- हर महीने में दोनों त्रयोदशी तिथि पर यह व्रत रखा जाता है
- विवाहित जोड़ों के दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति रहती है
डिजिटल डेस्क, भोपाल। हिन्दू धर्म में कई सारे व्रत औ त्योहार अलग- अलग देवी- देवता को समर्पित हैं। इनमें से एक है प्रदोष व्रत जो देवों के देव महादेव भगवान शिव को समर्पित है। प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर इस व्रत को रखा जाता है। ऐसा माना जाजा है कि, प्रदोष व्रत को करने से जीवन से नकारात्मकता समाप्त होती है और सफलता मिलती है।
शुक्र प्रदोष को भुगुवारा प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव की आराधना से सौभाग्य प्राप्त होता है। विवाहित जोड़ों के दाम्पत्य जीवन में सुख-शान्ति रहती है।
महत्व
प्रदोष व्रत का अत्यंत धार्मिक महत्व है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार प्रदोष व्रत त्रयोदशी तिथि यानी प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष एवं कृष्ण पक्ष के तेरहवें दिन रखा जाता है। इस दिन भगवान शंकर की पूजा काफी फलदायी होती है और शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि शुक्र प्रदोष व्रत
त्रयोदशी तिथि कब से कब तक
त्रयोदशी तिथि आरंभ: 18 सितंबर 2025, गुरुवार की रात 11 बजकर 24 मिनट से
त्रयोदशी तिथि समापन: 19 सितंबर 2025, शुक्रवार की रात 11 बजकर 36 मिनट तक
प्रदोष व्रत सामग्री
प्रदोष व्रत पर भगवान की पूजा के लिए सफेद पुष्प, सफेद मिठाइयां, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र, जनेउ, जल से भरा हुआ कलश, धूप, दीप, घी,कपूर, बेल-पत्र, अक्षत, गुलाल, मदार के फूल, धतुरा, भांग, हवन सामग्री आदि, आम की लकड़ी की आवश्यकता होती है।
व्रत और पूजा विधि
शुक्र प्रदोष व्रत के दिन व्रती को प्रात:काल उठकर नित्य क्रम से निवृत हो स्नान कर शिव जी का पूजन करना चाहिए। पूरे दिन मन ही मन “ॐ नम: शिवाय ” का जप करें। पूरे दिन निराहार रहें। त्रयोदशी के दिन प्रदोष काल में यानी सुर्यास्त से तीन घड़ी पूर्व, शिव जी का पूजन करना चाहिए। शुक्र प्रदोष व्रत की पूजा संध्या काल 4:30 बजे से लेकर संध्या 7:00 बजे के बीच की जाती है।
शाम के समय फिर से स्नान कर सफेद कपड़े पहनें और फिर पूजा स्थल अथवा पूजा गृह को शुद्ध करें। आप चाहें तो शिव मंदिर में भी जा कर पूजा कर सकते हैं। पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें। पूजन की सभी सामग्री एकत्रित कर लें। कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिव जी की पूजा विधि-विधान से करें। “ऊँ नम: शिवाय ” कहते हुए शिव जी को जल अर्पित करें।
डिसक्लेमरः इस आलेख में दी गई जानकारी अलग अलग किताब और अध्ययन के आधार पर दी गई है। bhaskarhindi.com यह दावा नहीं करता कि ये जानकारी पूरी तरह सही है। पूरी और सही जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ (ज्योतिष, वास्तुशास्त्री) की सलाह जरूर लें।
Created On :   17 Sept 2025 6:28 PM IST














