चैत्र नवमी को शुभ मुहूर्त में इस विधि से करें जवारे विसर्जन, जानें महत्व

Navami should be done this auspicious time by  immersion Jaware
चैत्र नवमी को शुभ मुहूर्त में इस विधि से करें जवारे विसर्जन, जानें महत्व
चैत्र नवमी को शुभ मुहूर्त में इस विधि से करें जवारे विसर्जन, जानें महत्व

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि नवरात्रि का अंतिम दिन होता है। इस दिन माता के जवारे पूर्ण विधि-विधान के अनुसार विसर्जन किए जाते हैं। नवरात्रि के प्रथम दिन बोए गए जवारों के विसर्जन के पूर्व माता भगवती तथा जवारों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। आइए जानते हैं जवारे विसर्जन की पूजा विधि...

जवारे विसर्जन की पूजा विधि इस प्रकार है :-
जवारे विसर्जन के पहले मां भगवती का अक्षत, पुष्प, गंध, हल्दी, सुहाग श्रृंगार सामग्री  आदि से पूजा की जाती है। जवारे विसर्जन करते समय इस दिन इस मंत्र से देवी की आराधना करें :-

रूपं देहि यशो देहि भाग्यं भगवति देहि मे। पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे।।

महिषघ्नि महामाये चामुण्डे मुण्डमालिनी। आयुरारोग्यमैश्वर्यं देहि देवि नमोस्तु ते।।

इस मंत्र से प्रार्थना करने के बाद हाथ में अक्षत पुष्प लेकर जवारे का इस मंत्र के साथ विसर्जन करना चाहिए।  

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि। गपूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

इस प्रकार विधिवत पूजा करने के बाद जवारे का विसर्जन कर देना चाहिए, लेकिन जवारों को फेंकना नहीं चाहिए। उसको परिवार में बांटकर सेवन करना चाहिए। इससे नौ दिनों तक जवारों में व्याप्त उर्जा हमारे भीतर प्रवेश करती है। जिस पात्र में जवारे बोए गए थे उसे तथा इन नौ दिनों में उपयोग की गई पूजन सामग्री का श्रृद्धापूर्वक विसर्जन कर दें।

जवारे विसर्जन करने का शुभ मुहूर्त 

सुबह 09:40 से 10:55 तक

दोपहर 02:10 से 03:25

दोपहर 03:40 से शाम 6:00 बजे तक

विसर्जन का सनातन धर्म में महत्व  
हमारी सनातन परंपरा में विसर्जन का विशेष महत्व है। विसर्जन अर्थात् पूर्णता फिर चाहे वह जीवन की हो, साधना की हो या प्रकृति की। जिस दिन कोई वस्तु पूर्ण हो जाती है, तो उसका विसर्जन अवश्यंभावी हो जाता है। आध्यात्मिक जगत में विसर्जन समाप्ति की निशानी नहीं, अपितु पूर्णता का संकेत है। देवी विसर्जन के पीछे भी यही गूढ़ उद्देश्य निहित है। विसर्जन सनातन धर्म में ही दिखाई देता है, क्योंकि सनातन धर्म इस तथ्य से परिचित है कि आकार तो केवल प्रारंभ है और पूर्णता सदैव निराकार होता है।

यहां निराकार से आशय आकारविहीन होना नहीं अपितु समग्ररूपेण आकार का होना है। निराकार अर्थात जगत के सारे आकार उसी परामात्मा के हैं। मेरे देखे निराकार से आशय है किसी एक आकार पर अटके बिना समग्ररूपेण आकारों की प्रतीति। जब साधना की पूर्णता होती है तब साधक आकार-कर्मकांड इत्यादि से परे हो जाता है। नवरात्र के ये 9 दिन इसी बात की ओर संकेत हैं कि हमें अपनी साधना में किसी एक आकार पर रुकना या अटकना नहीं है अपितु साधना की पूर्णता करते हुए हमारे आराध्य आकार को भी विसर्जित कर निराकार को अंतरआत्मा में साकार करना है। 

साधना की ऐसी स्थिति में उपनिषद का यह सूत्र अनुभूत होने लगता है।

"सर्व खल्विदं ब्रह्म" 

और यही परमात्मा का एकमात्र सत्य है। 

Created On :   10 April 2019 8:56 AM GMT

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