रक्षाबंधन : इस शुभ मुहूर्त में बांधें भाई की कलाई पर राखी, जानें इस त्यौहार का महत्व

Raksha Bandhan 2019: This festival gives the message of love and affinity
रक्षाबंधन : इस शुभ मुहूर्त में बांधें भाई की कलाई पर राखी, जानें इस त्यौहार का महत्व
रक्षाबंधन : इस शुभ मुहूर्त में बांधें भाई की कलाई पर राखी, जानें इस त्यौहार का महत्व

डिजिटल डेस्क। भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुंबकम् की बात है। सारा विश्व हमारा परिवार है, हमारी संस्कृति जाति, देश, परिवेश, भाषा की सीमा को लांघकर हमें जुड़ने का संदेश देती है। ऐसे ही एक प्रेम और अपनत्व का भाव रक्षाबंधन के पर्व में होता है, जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन रक्षा सुरक्षा का अहसास लिए राखी को बहन अपने भाई की कलाई पर बांधती है। इस बार यह त्यौहार गुरूवार यानी 15 अगस्त को है। क्या होगा शुभ मुहूर्त और है इस त्याौहार का महत्व और इस पर्व से जुड़ी कथा आइए जानते हैं...

शुभ मुहूर्त  
पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री के अनुसार रक्षाबंधन में भद्रा का निषेध है। इस कारण भद्रा रहित समय में रक्षाबंधन करना चाहिए। मरू भूमी मान्यता अनुसार रक्षा बंधन के एक दिन पूर्व चतुर्दशी को सूण मांडने की प्रथा है। वह भी भद्रा रहित समय में की जाती है। चतुर्दशी तिथी बुधवार 14 अगस्त को भद्रा दोपहर 3.42 मिनिट से प्रारंभ होगी। इसके पूर्व सूण मांडने का कार्य कर लेना चाहिए। रक्षा बंधन श्रावण शुक्ल पूर्णिमा गुरूवार दि. 15 अगस्त 2019 को किसी भी समय किया जा सकता है क्योंकि इस दिन भद्रा नहीं है। 

संस्कृत की एक उक्ति है
जनेन विधिना यस्तु रक्षा बंधनमाचरेत् ! स सर्वदोश रहित, सुखी संवत्सरे भवेत् !! 
जिसका अर्थ है कि विधिपूर्वक एक बार रक्षासूत्र बांधने से व्यक्ति सारे दोषों से रहित हो जाता है और संपूर्ण संवत्सर तक सुखी रहता है।

सामाजिक संदेश
इस दशक की सबसे बड़ी समस्या लैगिंक असंतुलन है। कन्याओं की संख्या तेजी से घट रही है। इसका कारण कन्या भ्रूण हत्या है। रक्षा बंधन का पर्व बिना बहन के अधूरा है। यदि बहन ही नहीं रहेगी तो भाई की कलाई सूनी ही रह जाएगी। यदि रक्षा बंधन पर्व की सार्थकता को बनाए रखना है तो कन्या भ्रूण हत्या रोकने की दिशा में प्रयास करने होंगे। 

मंत्र - येन बध्दो बलि राजा दानवेन्द्रो महाबलः ! तेन त्वामनु बध्नामि रक्षे माचल माचल !!
सरल शब्दार्थ यह है कि जिस रक्षासूत्र से दानवराज बलि बंधे थे ,उसी से मैं तुम्हें बांधता हूं. 

 
गूढ़ार्थ में जिस प्रकार रक्षा सूत्र के बंधने से राजा बलि अपने धर्म मार्ग में प्रशस्त हुए थे उसी प्रकार आप भी अपने कर्तव्य , धर्म का पालन करो। बहन अपने भाई को, पुरोहित अपने यजमान को रक्षा सूत्र का बंधन बांधती है। या मंत्र नहीं भी कह सकते तो अपनी पवित्र भावना के साथ इस पर्व में राखी को अपने संबधों की डोर समझ कर मजबूती के साथ और इसमें प्रगाढ़ता आए इस विश्वास के साथ बांधें।

कथा- भविष्य पुराण के एक उपाख्यान के अनुसार एक बार असुरो ने 12 वर्ष तक देवताओ से युद्ध कर उन्हें परास्त कर दिया। देवराज इंद्र ने देवगुरू बृहस्पति को बुलाकर उन्हें अपनी समस्या बताई कि ‘ मैं न तो भाग सकता हूं न ही युध्द में उन असुरो के समक्ष ठहर सकता हूं अब आप ही मेरा मार्गदर्शन करें।’

इन्द्रपत्नी इंद्राणी उनका ये वार्तालाप सुनकर कहने लगी ‘आज चतुर्दशी हैं कल प्रातः मैं आपकी जीत की मनोकामना के साथ आप के हाथो में एक रक्षा पोटली बांध दूंगी’। अगले दिन सुबह इंद्राणी ने इंद्र के हाथ में वैदिक मंत्रों से अभिमंत्रित कर एक रक्षा पोटली बांधी। रक्षा बंधन कर इंद्र ऐरावत पर चढ़ कर युद्ध के मैदान में गए तो दानवों की सेना उन्हें देखकर ऐसे डरी जैसे मृत्यु से मनुष्य डरता है। इन्द्र ने फिर तीनों लोकों को जीत कर पुनः अपना खोया वैभव प्राप्त किया। उसी दिन से रक्षाबंधन  के पर्व की शुरुआत हुई। 

यह दिन इसलिये भी विशेष है क्योंकि भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक हय्रग्रीव ने इसी दिन अवतार लिया था और दैत्यों से वेदों को पुनः प्राप्त कर ब्रम्हाजी को समर्पित किया था। सीख -इस व्रत से जीवन में परिवार की अहमियत का अहसास व्यक्ति को होता है। भाई बहन ननद भाभी आदि संबंध और प्रगाढ़ होते हैं, जिम्मेदारी का भाव जागृत होता है। साथ ही यह पर्व व्यक्ति को सकारात्मक सोच देता है। मेरा कुछ बुरा नहीं हो सकता मैंने रक्षा पहनी है, राखी पहन रखी है। इस प्रकार विचारों में सक्रियता भी आती है।

साभार: पं. सुदर्शन शर्मा शास्त्री, अकोला
 

Created On :   6 Aug 2019 9:09 AM GMT

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