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किशोर कुमार का 89 वां जन्मदिन, जिनकी आवाज ने गढ़े सुपरस्टार
डिजिटल डेस्क, मुंबई। महान गायक और संगीतकार किशोर कुमार, एक ऐसे कलाकार, जो ना केवल गायकी और अदाकारी के बादशाह थे, बल्कि उन्होंने लेखक, निर्माता और बतौर निर्देशक भी इंडस्ट्री में खूब नाम कमाया। अपने फिल्मी करियर में करीब 1500 से ज्यादा गाना गाने वाले, इस लीजेन्ड्री सिंगर का जन्म 4 अगस्त 1929 को मध्य प्रदेश के खंडवा में हुआ था। निर्देशन, अभिनय और गायन में तरह तरह के प्रयोग करने वाले चुलबुले और हरदिल अजीज गायक किशोर दा, 70 और 80 के दशक के सबसे मशहूर सिंगर हुआ करते थे। उन्होंने देवानंद, राजेश खन्ना से लेकर अमिताभ बच्चन जैसे बड़े-बड़े कलाकारों को अपनी आवाज दी। माना जाता है राजेश खन्ना को सुपरस्टार बनाने में किशोर कुमार की आवाज का बड़ा योगदान है। किशोर दा ने राजेश खन्ना की 91 फिल्मों में अपनी आवाज दी।
हर दिल अजीज 'खंडवे वाला किशोर'
तो वहीं खंडवे वाले इस किशोर ने हिंदी सिनेमा के हर एक वर्ग के दर्शकों का दिल भी जीता। ज़िंदगी का सफ़र है ये कैसा सफ़र और ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम, ये ऐसे गाने है, जो दिल की गहराई में उतर जाते है और शायद यही वजह है कि किशोर के ये गाने एवरग्रीन हैं।
जिंदगी के मायने सिखाते हैं किशोर के गीत
'सफर' और 'आपकी कसम' जैसी फिल्मों में किशोर कुमार ने अपने गानों से न केवल जिंदगी के कई पहलुओं को समझाया, बल्कि जिंदगी की नई परिभाषा को भी अपने गानों में पिरोया है। मेरे दिल में आज क्या है और पल पल दिल के पास, तुम रहती हो जैसे रोमांटिग गानों से भी उन्होंने खूब ख्याती बटोरी। कहा जाता है कि 70-80 के दशक में युवाओं की पहली पसंद बनकर उभरे किशोर कुमार के गानों को सुनने के लिए हर कोई उतावला रहता था। ये उतावलापन शायद इसलिए भी था क्योंकि, जहां उनके गाने कभी दिल के दर्द को कम कर देते थे, तो कभी भूले प्यार की यादों को करते थे ताज़ा । मेरा जीवन कोरा कागज़ और खिज़ा के फूल पे आती कभी बहार नहीं, हिंदी सिनेमा के सदाबहार गायक की इसी गायकी की निशानी थी ।
मील का पत्थर ‘चलती का नाम गाड़ी’
बात करें उनके अभिनय की, तो देश की पहली कॉमेडी फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ में किशोर कुमार ने अपने दोनों भाइयों अशोक कुमार और अनूप कुमार के साथ मिलकर हास्य अभिनय के ऐसे आयाम स्थापित किए, जो आज भी मील का पत्थर हैं ।70-80 के दशक में जितने दीवाने मोहम्मद रफी की आवाज के थे, उतना ही किशोर कुमार को भी लोग सुनना पसंद करते हैं।
शोहरत और कामयाबी के बावजूद भी मुंबई को नहीं मानते थे अपना शहर
हालांकि इन सबसे परे किशोर की जिंदगी का एक और भी पहलू था ,किशोर कुमार भले ही मुंबई में रहते थे लेकिन उनका मन हमेशा अपने जन्म स्थान खंडवा में रमा रहा। किशोर कुमार ने एक इंटरव्यू में कहा था कि 'कौन मूर्ख इस शहर में रहना चाहता है। यहां हर कोई दूसरे का इस्तेमाल करना चाहता है। मैं इन सबसे दूर चला जाऊंगा। अपने शहर खंडवा में। किशोर कुमार की इन बातों से पता चलता था, कि वो इतनी शोहरत और कामयाबी के बावजूद कभी मुंबई को अपना शहर नहीं मान सके।
मौत से पहले हो गया था मौत का आभास
साल 1986 में किशोर कुमार को दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्होंने फिल्मों में गाना कम कर दिया, इस दौरे से उन्हें अंदेशा हो गया था, कि वे अब इस दुनिया में ज्यादा दिन के मेहमान नहीं है । यही वजह है कि वे अपने शहर खंडवा लौट जाना चाहते थे, लेकिन उनकी ये ख्वाहिश अधूरी ही रह गई, उन्हें 13 अक्टूबर 1987 को एक बार फिर दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद रुक जाना नहीं तू कहीं हार के, का पाठ पढ़ाने वाले इस लीजेन्ड्री सिंगर ने हमेशा -हमेशा के लिए मौत की चादर औढ ली और दुनिया को अलविदा कह दिया । लेकिन संगीत की बिना तालीम हासिल किए, जिस तरह से उन्होंने फिल्म संगीत जगत में अपना स्थान बनाया, वो काबिले तारीफ है। आज वो बेशक हमारे बीच मौजूद नहीं है, लेकिन वे अपनी मधुर आवाज में गाए गए गीतों के जरिए आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं।
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