केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, लॉकडाउन के दौरान वेतन संबंधित आदेश वैध था

Center told the Supreme Court, the order related to pay was valid during the lockdown
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, लॉकडाउन के दौरान वेतन संबंधित आदेश वैध था
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, लॉकडाउन के दौरान वेतन संबंधित आदेश वैध था

नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस)। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राष्ट्रव्यापी बंद के दौरान नियोक्ताओं द्वारा श्रमिकों को पूरा वेतन देने से संबंधित 29 मार्च की अधिसूचना असंवैधानिक नहीं थी, बल्कि यह समाज के निचले तबके, मजदूरों और वेतनभोगी कर्मचारियों के वित्तीय संकट को रोकने के लिए किया गया एक उपाय था।

केंद्र ने हलफनामे में कहा कि यह कोई स्थायी उपाय नहीं था और इसे पहले ही वापस ले लिया गया है। केंद्र सरकार ने कहा, इस बात को जोर देकर कहा गया है कि उक्त निर्देश (29 मार्च का आदेश) को अस्थायी तौर पर कर्मचारियों और श्रमिकों की वित्तीय कठिनाई को कम करने के लिए एक अस्थायी उपाय के रूप में जारी किया गया था।

हलफनामे में इस बात पर जोर दिया गया कि समाज के निचले तबके, मजदूरों और वेतनभोगी कर्मचारियों के वित्तीय संकट को रोकने के लिए इस कदम को सक्रिय रूप से उठाया गया। गृह मंत्रालय ने कहा कि मजदूरी के भुगतान की दिशा सार्वजनिक हित में थी और इसे राष्ट्रीय प्रबंधन समिति ने आपदा प्रबंधन अधिनियम के उचित प्रावधानों के तहत संज्ञान में लिया था। यही कारण है कि राष्ट्रीय कार्यकारी समिति के पास आदेश जारी करने की पूरी क्षमता थी।

केंद्र ने इस विवाद के बारे में कहा कि नियोक्ता अपने कर्मचारियों को भुगतान करने के लिए बेहतर वित्तीय स्थिति में नहीं हैं और इस तथ्य को स्थापित करने के लिए कोई सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई है। केंद्र ने कहा कि याचिकाकर्ताओं-नियोक्ताओं को 29 मार्च के आदेश के अनुसार वेतन का भुगतान करने के लिए उनकी अक्षमता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए निर्देशित किया जाना चाहिए।

गृह मंत्रालय द्वारा दायर किए गए हलफनामे में कहा गया है कर्मचारियों और श्रमिकों के लिए भुगतान किए गए 54 दिनों के वेतन की वसूली की मांग करना जनहित में नहीं होगा।

29 मार्च के आदेश को चुनौती देने राज्यों की विभिन्न कंपनियों ने शीर्ष अदालत का रुख किया था। इस आदेश में नियोक्ताओं को राष्ट्रव्यापी बंद की अवधि के दौरान अपने श्रमिकों को पूरी मजदूरी देने के लिए बाध्य किया गया था। उद्योगों ने ऐसे दिशा-निर्देशों को पारित करने के लिए सोर्स ऑफ पावर पर एमएचए को चुनौती दी है और इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वित्तीय बोझ निजी फर्मों पर नहीं डाला जा सकता है, जब कंपनियां लॉकडाउन के दौरान बंद रहती हैं।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से याचिकाओं पर अपनी प्रतिक्रिया दाखिल करने को कहा था।

पिछले महीने एक अंतरिम आदेश के माध्यम से शीर्ष अदालत ने कहा कि जब तक कि अंतिम निर्णय अदालत द्वारा नहीं लिया जाता है तब तक मजदूरी के भुगतान के लिए नियोक्ताओं के खिलाफ कोई भी कठोर कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

Created On :   4 Jun 2020 6:02 PM IST

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