मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए 28 दिन में राज्य सरकारें लागू करें गाइडलाइन: सुप्रीम कोर्ट
- 2012 में 85 घटनाएं आई थी सामने।
- गौ-रक्षा और बच्चा चोरी के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला।
- मॉब लिचिंग को रोकने के लिए संसद बनाए कानून।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। गौ-रक्षा और बच्चा चोरी के नाम पर की जा रही मॉब लिंचिंग को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी अपने आप में कानून नहीं हो सकता है। राज्य सरकारें भीड़ की इजाजत नहीं दे सकती हैं। देश के सभी राज्यों की सरकारों को संविधान के हिसाब से काम करना होगा। कोर्ट ने राज्य सरकारों को 28 दिन का समय देते हुए लिंचिंग रोकने के लिए गाइडलाइंस लागू करने का आदेश दिया है। मामले में फैसले से पहले टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा था कि ये सिर्फ कानून व्यवस्था का सवाल नहीं है, बल्कि गौ-रक्षा के नाम पर भीड़ की हिंसा अपराध है।
अदालत इस बात को स्वीकार नहीं कर सकती कि कोई भी कानून को अपने हाथ में ले। देश में भीड़ की इजाजत नहीं दी जा सकती। लिहाजा इसको रोकने के लिए संसद जल्द कानून बनाए। गौ-रक्षा के नाम पर हुई हिंसा संबंधित याचिका पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन एस पूनावाला और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी समेत कई अन्य ने याचिका दाखिल की है। अब तक इस तरह के मामलों में 33 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। इससे पहले तीन जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों से कहा था कि वह स्वयंभू रक्षकों के अपराधों पर लगाम लगाए। अदालत को पिछली सुनवाई के दौरान बच्चा चोर के नाम पर की गई हत्या की तरफ भी ध्यान दिलाया गया था। अगर बात गौरक्षा की जाए तो 2012 में 85 ऐसी घटनाएं सामने आई है जिसमें गौ-रक्षा के नाम पर लोगों के साथ हिंसा की गई है।
ऐसे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि किसी भी स्वयंभू रक्षकों के समूह की हिंसा को कुचला जाना चाहिए। याचिकाकर्ता तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत के इस मामले के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कुछ राज्यों के खिलाफ मानहानि याचिका भी दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज्यों ने शीर्ष अदालत के छह सितंबर, 2017 के आदेशों का पालन नहीं किया है। जिस पर अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पीएस नरसिम्हा ने कहा कि केन्द्र इस समस्या के प्रति सचेत है और इससे निपटने का प्रयास कर रही है।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह सितंबर को सभी राज्यों से कहा था कि गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा की रोकथाम के लिये सख्त कदम उठाये जाए। इसमें प्रत्येक जिले में एक सप्ताह के भीतर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाये और उन तत्वों के खिलाफ तत्परता से अंकुश लगाया जाये खुद के ही कानून होने जैसा व्यवहार करते हैं। इसके साथ शीर्ष अदालत ने राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिये दायर याचिका पर इन राज्यों से जवाब भी मांगा था।
Created On :   17 July 2018 10:56 AM IST