मैं दुनिया के लिए एक खुला ट्रायल चाहता था : 26/11 मामले में उज्जवल निकम

I wanted an open trial for the world: Ujjwal Nikam in 26/11 case
मैं दुनिया के लिए एक खुला ट्रायल चाहता था : 26/11 मामले में उज्जवल निकम
मैं दुनिया के लिए एक खुला ट्रायल चाहता था : 26/11 मामले में उज्जवल निकम
हाईलाइट
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मुंबई, 25 नवंबर (आईएएनएस)। देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई में 26 नवंबर, 2008 (26/11) को हुए दहला देने वाले आतंकी हमले की 12 वीं वर्षगांठ पर वकील पद्मश्री उज्‍जवल निकम ने बताया कि 2009 में कैसे उन्होंने इस मामले का सार्वजनिक तौर पर ट्रायल कराने के लिए जोर दिया था।

इस मामले के स्पेशल पब्लिक प्रोसेक्यूटर रहे निकम ने आईएएनएस को बताया, सरकार ने इस मामले पर इन-कैमरा ट्रायल रखने पर विचार किया था। ये निर्णय बड़े पैमाने पर सुरक्षा चिंताओं के अलावा, मामले को लेकर घरेलू, क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीतिक प्रभाव की संवेदनशील प्रकृति को देखते हुए लिया गया था। मैंने ²ढ़ता से आग्रह किया कि दुनिया के लिए मामले की पूरी सुनवाई खुली और पारदर्शी होनी चाहिए।

सभी की मामले में गहरी दिलचस्पी को देखते हुए सरकार ने मंजूरी दे दी और फिर घरेलू-अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने आर्थर रोड सेंट्रल जेल के अंदर बनाई गई एक उच्च-सुरक्षा वाली विशेष अदालत में सबसे बड़ा कानूनी युद्ध शुरू हुआ।

वकीलों और जांचकर्ताओं की पूरी टीम के साथ निकम ने एकमात्र जीवित आतंकवादी अजमल अमीर कसाब के खिलाफ आरोप लगाए, जिसे जिंदा पकड़ लिया गया था। हालांकि उसे जिंदा पकड़ने के लिए 29 नवंबर 2008 की सुबह साहसी पुलिसकर्मी तुकाराम गोपाल ओम्बले को अपनी जान की बाजी लगानी पड़ी थी।

संभवत: दुनिया में ऐसा पहली बार हुआ था जब एक बर्बर बंदूकधारी आतंकी को रंगे हाथों पकड़ा गया था जिसने अपने 9 सहयोगियों के साथ मिलकर मौत का तांडव रच दिया था। कसाब को छोड़कर उन सभी को सुरक्षाबलों ने दक्षिण मुंबई में चली लड़ाई के बीच 60 घंटे के भीतर अलग-अलग जगहों पर गोलियों से उड़ा दिया था।

26 नवंबर, 2008 की देर रात से शुरू हुए इस हमले में 166 लोग मारे गए थे और 300 लोग घायल हुए थे।

67 वर्षीय निकम कहते हैं, भारत गर्व से घोषणा कर सकता है कि यह एक क्रूर आतंकवादी का एक अभूतपूर्व ओपन-ट्रायल था, जैसा दुनिया ने पहले कभी नहीं देखा था। जब 21 नवंबर 2012 को कसाब को फांसी की सजा सुनाई गई तो यह कई मामलों के लिए मिसाल बन गया।

निकम के मुताबिक इस ट्रायल का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसकी धर्मनिरपेक्ष प्रकृति थी। जिसमें अलग-अलग स्तरों पर अलग-अलग धर्म के लोग शामिल रहे। मुकदमे के विशेष न्यायाधीश एमएल तिलियियानी, एसपीपी निकम, अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट रामा वी.सावंत-वागुले (वागुले ने 29 नवंबर, 2008 की सुबह कसाब का बयान दर्ज किया था), अलग-अलग स्तरों पर कसाब का बचाव करने सरकार द्वारा नियुक्त किए गए वकील अब्बास काजमी, केपी पवार, अमीन सोलकर और फरहाना शाह आदि सभी अलग-अलग धार्मिक पृष्ठभूमि से हैं। फिर भी सभी ने न्याय के एक समान उद्देश्य को लेकर पूरी तरह से पेशेवर तरीके से काम किया।

मिसाल के तौर पर जब कसाब के नाबालिग होने का दावा किया गया, तो इसने अभियोजन पक्ष को अनजान साबित कर दिया। फिर अभियोजन पक्ष ने बचाव पक्ष पर देरी का का आरोप लगाते हुए कहा कि कसाब जेल में मटन बिरयानी की दावत कर रहा है। हालांकि बाद में ये दोनों घोषणाएं झूठी साबित हुईं।

निकम ने आगे कहा, इतने सालों में कभी किसी ने इस ट्रायल को सांप्रदायिक नजर से नहीं देखा, ना ही भारत या पाकिस्तान में किसी भी पक्ष के धार्मिक कट्टरपंथी द्वारा इस कार्यवाही को लेकर कुछ कहा गया।

निकम इसे घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्तर पर भारतीय न्याय प्रणाली के लिए असीम सम्मान और विश्वसनीयता की एक मिसाल मानते हैं, क्योंकि इस ट्रायल पर कोई सवाल नहीं उठाया गया और कसाब को भारत के राष्ट्रपति से दया याचिका करने का पूरा मौका दिया गया।

उन्होंने उम्मीद की कि पाकिस्तान भी ऐसी निष्पक्ष, विश्वसनीय और पारदर्शी कार्यवाहियां करे क्योंकि 26/11 मामले के अभियुक्तों में से 7 कंगारू कोर्ट (ऐसा कोर्ट जो जानबूझकर कानून और आरोपों की अनदेखी करता है) में शर्मनाक मुकदमे का सामना कर रहे हैं।

एसडीजे-एसकेपी

Created On :   25 Nov 2020 8:00 AM GMT

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