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उज्जैन में देवी को लगाया मदिरा का भोग

उज्जैन, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)। शारदीय नवरात्र की महाष्टमी के मौके पर धार्मिक नगरी उज्जैन में चौबीसखंबा माता मंदिर में महामाया और महालया को परंपरा के मुताबिक जिला प्रशासन के नुमाइंदे के तौर पर जिलाधिाकरी शशांक मिश्रा ने मदिरा का भोग लगाया। इसके बाद यात्रा की शुरुआत हुई। यह यात्रा उज्जैन के 40 मंदिरों तक मदिरा की धार गिराते हुए पहुंची।
राजधानी से लगभग 175 किलोमीटर दूर स्थित उज्जैन में मान्यता है कि नगर में सुख और शांति के लिए महाष्टमी को महामाया और महालया देवी को मदिरा का भोग लगाया जाए और मदिरा की धार गिराते हुए ढोल-धमाकों के साथ अन्य मंदिरों तक जाने पर अतृप्तों को तृप्ति मिलती है, जिससे सुख, शांति और समृद्घि आती है। यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के काल में शुरू हुई थी। अब यह रस्म जिले के मुखिया अर्थात जिलाधिकारी निभाते हैं। यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है।
शारदीय नवरात्र की महाष्टमी को रविवार सुबह जिलाधिकारी शशांक मिश्रा अन्य कर्मचारियों के साथ मंदिर पहुचे, जहां उन्होंने विधि-विधान से पूजा की और मदिरा का देवी को भोग लगाया। उसके बाद 40 मंदिरों तक जाने की यात्रा शुरू हुई। इस यात्रा में अधिकारी हांडी में शराब भरकर चले और उसमें छेद होने से मदिरा की धार गिराते हुए मंदिरों तक गए। यह यात्रा लगभग 26 किलोमीटर चली। हांडी से कुल 51 लीटर मदिरा धार के रूप में शहर की सड़कों पर गिराई गई।
चौखंबामाता के मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद जहां देवी को मदिरा का भोग लगाया गया, वहीं प्रसाद के तौर पर इसे श्रद्घालुओं को भी वितरित किया गया। इनमें महिलाएं भी शामिल थीं।
बताते हैं कि नवरात्र के मौके पर यहां नगर पूजा के विधान की लंबी परंपरा रही है और यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से निरंतर चली आ रही है। महाष्टमी को विक्रमादित्य के काल में स्वयं राजा यह पूजा करते थे और मदिरा का भोग लगाते थे। महाष्टमी के मौके पर की जाने वाली इस विशेष पूजा का शहर के लोगों को इंतजार रहता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि राजा विक्रमादित्य नगर में सुख-शांति के लिए इस पूजा का आयोजन करते थे। इस विशिष्ट पूजा के दौरान वे मां दुर्गा को मदिरा प्रसाद यानी शराब का भोग लगाया करते थे।
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