26/11 हमला : झूठी कहानियां बनाकर कोर्ट को गुमराह करता रहा कसाब
- (26/11) का इकलौता जिंदा पकड़ा गया अपराधी था कसाब
- कसाब ने पुलिस
- अदालत और आम जनता तीनों को गुमराह किया
डिजिटल डेस्क,मुंबई। मुंबई में वर्ष 2008 में हुए आतंकी हमले (26/11) के एकमात्र जीवित पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकी अजमल आमिर कसाब ने पुलिस, अदालत और आम जनता तीनों को गुमराह करने की कोशिश की थी। उसे इसकी खास ट्रेनिंग दी गई थी। लेकिन 81 दिन तक चली पूछताछ में आखिरकार उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और अंतत: उसे फांसी दी गई। यह कहना है हमले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी रमेश महाले का। हमले की 10वीं बरसी पर उन्होंने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में बताया कि खुद को निर्दोश बताने के लिए कसाब किस तरह झूठी कहानियां गढ़ता रहा।
खुद को गरीब परिवार से बताया
महाले के मुताबिक, कसाब ने दावा किया था कि वह गरीब परिवार से है। उसके पिता उसे लश्करे तैयबा के ऑपरेशन कमांडर जकीउर रहमान लखवी के पास ले गए और कहा कि चाचा जो कहें वही करो। बदले में परिवार को दो लाख रुपए मिलेंगे, जिससे बहन की शादी होगी। कसाब ने कहा था कि लखवी ने उसे लोगों को मारने को कहा, लेकिन मुंबई में आने के बाद उसने किसी पर गोली नहीं चलाई। महाले ने बताया कि शुरुआत में कसाब ने हमें झूठ बोलकर धोखा देने की कोशिश की, लेकिन जल्द ही वह सच्चाई उगलने लगा। इसकी पुष्टि तब हुई जब दूसरे आतंकियों और कराची में बैठे उनके हैंडलरों की बातचीत की रिकॉर्डिंग से बयान का मिलान किया गया।
पुलिस पर ही लगा दिए आरोप
महाले ने बताया कि कसाब ने मजिस्ट्रेट कोर्ट के सामने अपना अपराध स्वीकार किया फिर ट्रायल कोर्ट में दावा किया कि उसने यह बयान दिया ही नहीं। बाद में उसने अपराध कबूल किया और कहा कि मैं खुदा के सामने साफ दिल से जाना चाहता हूं। लेकिन फिर पुलिस पर धमकी देकर बयान दिलाने और खुद के नाबालिग होने के दावा करने लगा। महाले के मुताबिक, कसाब ने लोगों से सहानुभूति पाने की कोशिश के तहत कहा था कि कोई मुझे राखी बांधेंगा क्या। इसके अलावा उसने पुलिस पर खाने में जहर देकर मारने की साजिश का आरोप लगाया। कसाब ने अपने किए पर कभी अफसोस नहीं जताया।
पुलिस के लिए थी बड़ी चुनौती
81 दिन तक कसाब से पूछताछ के अपने अनुभवों और दूसरे पहलुओं को उजागर करने के लिए महाले ने ‘26/11 कसाब आणी मी’ (26/11 कसाब और मैं) नाम की किताब लिखी है। महाले ने बताया कि उनकी किताब में एक अध्याय है कि ‘यह मुंबई पुलिस का काम नहीं था।’ इसमें उन्होंने विस्तार से बताया है कि कैसे 10 साल पहले मुंबई पुलिस ऐसे आतंकी हमलों से निपटने के लिए तैयार ही नहीं थी। उन्होंने बताया कि सात-आठ तथ्यों के आधार पर मैंने इसका पूरा विश्लेषण किया है
इसलिए लिखी किताब
महाले ने कहा कि 26/11 आतंकी हमले पर साल 2014 में दो ब्रिटिश लेखकों ने ‘द सीज’ नाम की अंग्रेजी किताब लिखी थी। इसके लोकार्पण समारोह में उन्हें मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया था। महाले ने कहा कि किताब पढ़ने के बाद अहसास हुआ कि इसमें मुंबई पुलिस की भूमिका को सही ढंग से पेश नहीं किया गया था। हमें बिना वजह आलोचना का शिकार बनाया गया था। इसके बाद उन्होंने इस घटना पर किताब लिखने की ठानी।
पाक की ये साजिश भी हुई थी नाकाम
महाले ने बताया कि पाकिस्तान ने इस हमले के तार भारत के अलगाववादी आंदोलनों से जोड़ने की साजिश रची थी। सभी 10 आतंकियों के फर्जी पहचान पत्र बनाए गए थे। महाले इसकी सच्चाई जानने के लिए उस कॉलेज के प्रिंसिपल से मिले थे, जहां का पहचान पत्र आतंकियों ने बनाया था। प्रिंसिपल ने इस बात की पुष्टि की कि आरोपी उनके कॉलेज के छात्र नहीं हैं और पहचान पत्र फर्जी है। इसके अलावा पहचान पत्रों में दर्ज अन्य पतों पर भी पुलिस की टीम गई थी। वहां रहने वालों के बयान दर्ज किए गए, जिससे पता चला कि आतंकी वहां कभी नहीं गए।
Created On :   26 Nov 2018 12:04 PM IST