भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक पर्व है भाई दूज, भाई के लिए प्रार्थना करती हैं बहनें
डिजिटल डेस्क, भोपाल। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व भाई दूज इस वर्ष 9 नवम्बर 2018 को है। इसे दूज, भाई दूज या यम द्वितीया भी कहा जाता है। भाई दूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को सूर्य पुत्री यमुना ने अपने भाई यमराज को अपने घर पर सत्कारपूर्वक भोजन कराया था। इस दिन नरक यातना भोगने वालों को मुक्ति दे कर उन्हें तृप्त किया गया। वे सभी पाप-मुक्त होकर सब बंधनों से छुटकारा पा गए और सब के सब यहां अपनी इच्छा के अनुसार संतोष पूर्वक रहे। उन सब ने मिलकर एक महान उत्सव मनाया जो यमलोक के राज्य को सुख पहुंचाने वाला था। इसीलिए यह तिथि तीनों लोकों में यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
जिस दिन यमुना ने अपने भाई यम को अपने घर भोजन कराया था, उस तिथि के दिन जो मनुष्य अपनी बहन के हाथ का उत्तम भोजन करता है उसे उत्तम भोजन सहित धन की प्राप्ति भी होती रहती है। पद्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया को पूर्वाह्न में यम की पूजा करके यमुना में स्नान करने वाला जातक यमलोक को नहीं जाता अर्थात उसे मुक्ति मिल जाती है।
कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को अपने घर मुख्य भोजन नहीं करना चाहिए। इस तिथि का भोजन अपनी बहन के घर जाकर उन्हीं के हाथ से बने हुए पुष्टिवर्धक भोजन को स्नेह पूर्वक ग्रहण करना चाहिए तथा जितनी बहनें हों उन सबको पूजा और सत्कार के साथ विधिपूर्वक वस्त्र, आभूषण आदि देना चाहिए।
इस दिन सगी बहन के हाथ का भोजन उत्तम माना गया है। सगी बहन के अभाव में किसी भी बहन के हाथ का भोजन करना चाहिए। यदि अपनी बहन न हो तो अपने चाचा या मामा की पुत्री को या माता पिता की बहन को या मौसी की पुत्री या मित्र की बहन को भी बहन मानकर ऐसा करना चाहिए। बहन को भी चाहिए कि वह भाई को शुभासन पर विराजमान कर गंधादि से उसका सम्मान करे और दाल-भात, फुलके, कढ़ी, सीरा, पूरी, चूरमा अथवा लड्डू, जलेबी, घेवर आदि जो भी उपलब्ध हो यथा सामर्थ्य उत्तम पदार्थों का भोजन कराए और फिर भाई बहन को अन्न, वस्त्र, आभूषण आदि भेंट देकर उससे शुभाशीष प्राप्त करें।
लोकप्रचलित विधि के अनुसार बहन द्वारा एक उच्चासन पर चावल के घोल से पांच शंखकार आकृति बनाई जाती है। उसके बीच में सिंदूर लगा दिया जाता है। अग्रभाग में स्वच्छ जल, 6 कनेर के फूल, सिंदूर, 6 पान के पत्ते, 6 सुपारी, बड़ी इलाइची, छोटी इलाइची, हर्रे, जायफल इत्यादि रहते हैं। कनेर का फूल नहीं होने पर गेंदा का फूल भी रख सकते हैं।
फिर बहन भाई के पैर धुलाती है। इसके बाद उच्चासन पर बैठाती है और अंजलि-बद्ध होकर भाई के दोनों हाथों में चावल का घोल एवं सिंदूर लगा देती है। हाथ में मधु, गाय का घी, चंदन लगा देती है। इसके बाद भाई की अंजलि में पान का पत्ता, सुपारी, कनेर के फूल, जायफल इत्यादि देकर कहती है कि "जिस प्रकार यमुना ने निमंत्रण दिया यम को, मैं निमंत्रण दे रही हूं अपने भाई को, जितनी बड़ी यमुना जी की धारा, उतनी बड़ी मेरे भाई की आयु रहे।" यह कहकर अंजलि में जल डाल देती है। यह कर्म तीन बार किया जाता है। इसके बाद हाथ-पैर धोकर कपड़े से पोंछती है। भाई को तिलक लगाती है। इसके बाद भुना हुआ मखाना खिलाती है।
भाई बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार भेंट स्वरुप देता है। इसके बाद उत्तम पदार्थों का भोजन कराया जाता है। यह स्पष्ट रूप से है कि इस व्रत में बहन को अन्न-वस्त्र, आभूषण आदि इच्छानुसार भेंट देना तथा बहन के द्वारा भाई को उत्तम भोजन कराना ही मुख्य क्रिया है। यह मुख्य रूप से भाई-बहन के पवित्र स्नेह को अधिकाधिक सुदृढ़ रखने के उद्देश्य से परिचालित किया जाता है।
भ्रातृ या यम द्वितीया का उत्सव एक स्वतंत्र कृत्य है, किंतु यह दिवाली के तीन दिनों में इसीलिए मिला लिया गया कि इसमें बड़ी प्रसन्नता का अवसर मिलता है जो दिवाली की ख़ुशी को और बढ़ा देता है। भाई दरिद्र हो सकता है, बहिन अपने पति के घर में संपत्ति वाली हो सकती है। वर्षों से भेंट नहीं हो सकी है आदि-आदि कारणों से द्रवीभूत होकर हमारे पुराणिक ग्रंथों में इस उत्सव की परिकल्पना डाली है।
भाई-बहन एक-दूसरे से मिलते हैं, बचपन के सुख-दुख की याद करते हैं। इस प्रेम में धार्मिकता और आस्था का रंग भी जोड़ दिया गया है। इसके अतिरिक्त कायस्थ समाज में इसी दिन अपने आराध्य देव चित्रगुप्त की पूजा की जाती है। कायस्थ समाज के लोग स्वर्ग में धर्मराज का लेखा-जोखा रखने वाले चित्रगुप्त का पूजन सामूहिक रूप से करते हैं। और इस दिन व्यापारी लोग बही-खातों की पूजा भी करते हैं।
Created On :   7 Nov 2018 7:44 AM GMT