मप्र में नदियों पर करोड़ों बहे, फिर भी लोग प्यासे

Crores flowed on rivers in MP, yet people thirst
मप्र में नदियों पर करोड़ों बहे, फिर भी लोग प्यासे
मप्र में नदियों पर करोड़ों बहे, फिर भी लोग प्यासे

डिजिटल डेस्क,भोपाल। मध्य प्रदेश में साल दर साल पानी की समस्या गंभीर रूप लेती जा रही है। जल संरचनाओं का आंकड़ा कम हो रहा है, वहीं सरकार के खर्च का आंकड़ा बढ़ रहा है। सवाल उठ रहा है कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी न तो नई जल संरचनाएं आकार ले पा रही हैं और न ही नदियां प्रवाहमान हो पा रही हैं, तो फिर इस रकम से कौन लोग जीवन पा रहे हैं? प्रमुख नदियों को जीवन देने के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च हुए मगर हालत साल दर साल बद से बदतर होती गई।

मध्य प्रदेश की पवित्र नगरी उज्जैन में प्रवाहित होने वाली क्षिप्रा नदी को मोक्षदायनी नदी माना जाता है। इस नदी की दुर्दशा की अपनी कहानी है। साल में कुछ माह या यूं कहें कि बारिश के बाद के कुछ समय में इस नदी में पानी स्नान के लायक होता है। इस नदी के पानी से आचमन तो शायद कुछ दिन भी नहीं किया जा सकता। इन दिनों तो इस नदी का पानी कीचड़ का रूप लिए हुए है।

इस नदी को ही प्रवाहमान बनाने के लिए नर्मदा नदी के पानी को 571 करोड़ रुपये खर्च करके लाया गया। उसके बाद भी यह नदी सदानीरा नहीं बन पाई। इस साल दिसंबर में नदी का पानी कीचड़मय है तो पिछले साल जनवरी में शनिश्चरी अमावस्या के समय नदी के कीचड़मय पानी में श्रद्घालुओं के स्नान करने के मामले को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गंभीरता से लेते हुए तत्कालीन संभागायुक्त और कलेक्टर को हटा दिया था।

इसी तरह राज्य की दूसरी सबसे प्रमुख नदी नर्मदा को नया स्वरुप देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नर्मदा समग्र अभियान चलाया। अभियान जोरशोर से चला, तमाम बड़े लोग इसका हिस्सा बने, मगर नदी की दशा पहले से बुरी होती गई।

बीते ढ़ाई दशक के अभियानों पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि दिग्विजय सिंह के शासन काल में पानी बचाओ अभियान चला, भाजपा के 15 साल के शासनकाल में जलाभिषेक अभियान और नर्मदा समग्र अभियान ने गति पकड़ी। इन अभियानों पर सैकड़ों करोड़ रुपये बहा दिए गए, मगर हालात नहीं सुधरे। तस्वीर नहीं बदली, पानी की समस्या और गंभीर होती चली गई। प्रदेश के सबसे सूखा ग्रस्त इलाके में पानी के लिए बुंदेलखंड को पानीदार बनाने के लिए विशेष पैकेज के 1,600 करोड़ रुपये दिए गए, मगर यह राशि पानी की तरह बहा दी गई। इस इलाके की प्यास अब भी बरकरार है।

भाजपा के शासनकाल में जन अभियान परिषद ने जल स्त्रोतों को जीवित करने, नदियों को प्रवाहमान बनाने का अभियान चला, मगर एक भी नदी पुनर्जीवित नहीं हो सकी। तब परिषद ने ही इस बात का खुलासा किया था, कि राज्य की 330 से ज्यादा नदियां गुम हो गई हैं। वहीं वर्तमान की कमलनाथ सरकार ने 31 नदियों को पुर्नजीवित करने की मुहिम छेड़ी है। यह नदियां भी पुर्नजीवित होंगी या उनका हश्र पिछले अभियान जैसा ही हेागा, यह बड़ा सवाल है।

जिंदगी बचाओ अभियान के सह संयोजक अमूल्य निधि का कहना है, राज्य में नदियों को प्रवाहमान बनाने और जलसंरचनाओं को पुनर्जीवित करने के नाम पर पिछली सरकारों ने खूब पैसा खर्च किया है। उसके बाद भी न तो नदियों में पानी आया और न ही जल संरचनाएं बचीं। वर्तमान सरकार को पूर्व की गलतियों और चुनौतियों के मद्देनजर नई रणनीति पर काम करना चाहिए, न कि फिर ऐसे लोगों को यह काम सौंपा जाना चाहिए जिनकी नीयत में खोट है। जिसे भी इस काम में लगाया जाए, उसके पूर्व के कार्यो का आंकलन भी किया जाए।

बुंदेलखंड पैकेज के दुरुपयोग के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा का कहना है, पानी के लिए सिर्फ बातों के भूत दिखाए जाते है, सरकारें राशि मंजूर करती है और अधिकारी इससे मौज कर चले जाते है और जनता पानी के लिए तरसती रहती है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पानी के नाम पर पैसा खर्च हुआ है, मगर स्थितियों यथावत है। सरकार को चाहिए कि वह पानी के नाम पर लूट करने वालों पर लगाम कसे।

राज्य की कमलनाथ सरकार हर व्यक्ति को जरूरत का पानी उपलब्ध कराने के लिए पानी का अधिकार कानून बना रही है, वहीं जल संरचनाओं और नदियों को प्रवहमान बनाने की मुहिम जारी है। पानी की पैरवी करने वाला वर्ग यही अपेक्षा कर रहा है कि पानी के नाम पर इस बार वैसा न हो जैसा पहले होता आया है। पानी के लिए मंजूर बजट पानी पर ही खर्च हो न कि जिनके हाथ में कमान आए वे अपना पेट भर लें।

-- आईएएनएस

Created On :   21 Dec 2019 4:00 AM GMT

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