क्या है हरियाली अमावस्या का महत्व?
डिजिटल डेस्क । श्रावण में कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या के नाम से जाना जाता है। देश के कई भागों विशेषकर उत्तर भारत में इसे एक धार्मिक पर्व के साथ ही पर्यावरण संरक्षण के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा देश के अन्य स्थानों पर भी इसे पर्यावरण संरक्षण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व पर लोग मेले का आयोजन करते हैं और पौधारोपण करके पुण्य की प्राप्ति करते हैं। हरियाली अमावस्या के समय श्रावण मास में महादेव के पूजन का विशेष महत्व है, इसीलिए हरियाली अमावस्या पर विशेष रूप से शिवजी का पूजन-अर्चन किया जाता है। ये अमावस्या पर्यावरण के संरक्षण के महत्व और आवश्यकता को भी प्रदर्शित करती है।
हरियाली अमावस्या के मेलों का होता है आयोजन
वेदों और ऋचाओं में इनके महत्व को बताया गया है। शास्त्रों में पृथ्वी, आकाश, जल, वनस्पति एवं औषधि को शांत रखने को कहा गया है। इसका आशय ये है कि इन्हें प्रदूषण से बचाया जाए। यदि ये सब संरक्षित और सुरक्षित होंगे तभी हमारा जीवन भी सुरक्षित व सुखी रह सकेगा। इस दिन कई शहरों व गांवों में हरियाली अमावस्या के मेलों का आयोजन किया जाता है। इसमें सभी वर्ग के लोगों के साथ युवा भी सम्मिलित होते हें और उत्सव व आनंद से यह पर्व मनाते हैं। इस दिन गुड़ और गेहूं की धानी का प्रसाद दिया जाता है। जो कि कृषि की अच्छी पैदावार का प्रतीक होता है।
इस दिन गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा जैसे अनेक अनाज बोए जाते हैं कृषि उत्पादन की स्थिति क्या होगी, इसका अनुमान भी लगाया जाता है। और खेतों में हरियाली की जाती है। इसका मुख्य लक्ष्य प्रदूषण को समाप्त कर वृक्षों की संख्या में अधिक से अधिक वृद्धि करना है। यदि इस दिन कोई भी व्यक्ति एक भी पौधा रोपित करता है, तो उसे बहुत ही पुण्य की प्राप्ति होती है और वो जीवन भर सुखी और समृद्ध बना रहता है। वृक्षों में देवताओं का वास माना जाता है इसी कारण से इन्हें लगाने वाले व्यक्ति पर भगवान की असीम कृपा बनी रहती है।
पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति का उद्देश्य
हरियाली अमावस्या जैसा कि नाम से ही पता लगता है, ये पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण से मुक्ति के उद्देश्य से हर साल मनाई जाती है। इस दिन नदियों और जलाशयों के किनारे स्नान के बाद भगवान का पूजन-अर्चन करने के बाद शुभ मुहूर्त में वृक्षों को रोपा जाता है। इसके अनुसार शास्त्रों में विशेषकर आम, आंवला, पीपल, वटवृक्ष और नीम के पौधों को रोपने का विशेष महत्व बताया गया है। भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल से पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया जाता रहा है। श्रावण के दिनों में हरियाली अमावस्या को बहार के समान माना जाता है, जो धरती को हरा-भरा कर देती है।
हिन्दू संस्कृति और ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय से ही पेड़-पौधों में भगवान के अस्तित्व को मानकर उनकी पूजा करने का महत्व बताया गया है। अतः हरियाली अमावस्या के दिन पेड़-पौधों को रोपित करने और उनकी पूजा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। आज के समय में विशेष रूप से हरियाली अमावस्या का मुख्य उद्देश्य वर्तमान में बढ़ रहे प्रदूषण और गंदगी की समस्या को हल करना भी है। पर्यावरण को संरक्षित करने की दृष्टि से ही पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूप को स्थान देकर उनकी पूजा का विधान बताया गया है। जल में वरुण देवता की परिकल्पना कर नदियों व सरोवरों को स्वच्छ व पवित्र रखने की बात कही गई है। वायुमंडल की शुचिता के लिए वायु को देवता माना गया है।
Created On :   2 Aug 2018 6:57 AM GMT