राज्यपाल की शक्तियों पर चर्चा: सीजेआई बीआर गवई ने कहा न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए

सीजेआई बीआर गवई ने कहा न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए
  • अब जनप्रतिनिधि सीधे जनता के सवालों का जवाब देते हैं- केंद्र
  • राज्यपाल के पास विधेयक को मंजूरी न देने की शक्ति -मेहता
  • राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 से मंजूरी रोकने का पूरा अधिकार-केंद्र

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई बीआर गवई ने राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए विधेयक को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने के केस में सुनवाई करते हुए गुरुवार को कहा न्यायिक सक्रियता, न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए। सीजेआई जस्टिस गवई की अध्यक्षता वाली पीठ में जस्टिस सूर्य कांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिएस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदूरकर भी शामिल हैं। । मेहता ने कहा कि निर्वाचित लोग सीधे तौर पर जनता का सामना करते हैं। अब लोग जनप्रतिनिधियों से सवाल करते हैं।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि निर्वाचित लोगों को काफी अनुभव होता है और उसे कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। निर्वाचित लोग सीधे तौर पर जनता का सामना करते हैं। अब लोग जनप्रतिनिधियों से सवाल करते हैं, 20-25 साल पहले हालात अलग थे। अब मतदाता जागरूक हैं और उन्हें हल्के में नहीं लिया जा सकता। तुषार मेहता ने अपने सबमिशन में सर्वोच्च अदालत के कई फैसलों का हवाला दिया, जिसमें राज्यपालों की शक्तियों पर बात की गई। इस केस पर सुनवाई लगातार तीसरे दिन भी जारी रही।

मेहता ने कहा कि राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद 200 से मंजूरी रोकने का पूरा अधिकार है,आपको बता दें बुधवार को सुनवाई के दौरान टॉप कोर्ट ने कहा कि अगर कोई विधेयक दूसरी बार विधानसभा से पारित होकर राज्यपाल की मंजूरी के लिए आता है तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के पास विचार करने के लिए नहीं भेज सकते।

आपको बता दें एक दिन पहले हुई सुनवाई में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि राज्यपाल एक बार मंजूरी न देकर किसी भी बिल को खत्म कर सकते हैं। इस पर पीठ ने कहा राज्यपाल यदि विधेयक को रोक ले तो क्या निर्वाचित सरकारें अब राज्यपाल की मर्जी पर चलेंगी। पांच सदस्यीय पीठ ने कहा कि ऐसी स्थिति में चुनी हुई सरकार का कामकाज राज्यपाल की मनमानी पर निर्भर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि राज्यपाल विधेयक को संशोधन या पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं। लेकिन यह कहना कि ‘नहीं’ बोलते ही बिल खत्म हो जाएगा, यह विधायी शक्ति और संविधान की भावना दोनों के ही खिलाफ है।

Created On :   21 Aug 2025 4:00 PM IST

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