चुनाव से पहले पार्टियों के मुफ्त उपहार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब

Supreme Court seeks response from Center and Election Commission on free gifts from parties before elections
चुनाव से पहले पार्टियों के मुफ्त उपहार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
गंभीर मुद्दा चुनाव से पहले पार्टियों के मुफ्त उपहार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब
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  • गंभीर मुद्दा : चुनाव से पहले पार्टियों के मुफ्त उपहार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग से मांगा जवाब (लीड-1)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव से पहले सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त उपहार देने के वादे या वितरण के खिलाफ एक जनहित याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग (ईसी) को नोटिस जारी किया।

सुप्रीम कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र और भारतीय चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया, जिसमें चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि राजनीतिक दलों को चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन फ्रीबी (मुफ्त उपहार) का वादा करने या वितरित करने की अनुमति न दें और अगर कोई राजनीतिक पार्टी ऐसा करती है तो उसके पंजीकरण को रद्द करें या पार्टियों के चुनाव चिन्ह जब्त किया जाना चाहिए।

अदालत में दलील दी गई है कि यह एक स्वतंत्र और निष्पक्षता की जड़ें हिलाता है और चुनाव और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को दूषित करता है।

न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और हिमा कोहली के साथ ही प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह से पूछा कि इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है? पीठ ने कहा, हम कानून नहीं बना सकते। हां, यह एक गंभीर मुद्दा है।

पीठ ने आगे कहा कि फ्रीबी बजट नियमित बजट से आगे जा रहा है और कभी-कभी, जैसा कि इस अदालत ने देखा है, मुफ्त उपहार सुनिश्चित करते हैं, यह एक समान खेल मैदान नहीं है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, सीमित दायरे में हमने चुनाव आयोग को दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया है। इसके बाद, मुझे लगता है कि उन्होंने केवल राजनीतिक दलों की एक बैठक बुलाई, पता नहीं उसमें क्या हुआ।

शीर्ष अदालत ने अपने पहले के फैसले की ओर भी इशारा किया, जहां यह माना गया था कि राजनीतिक दलों द्वारा अपने घोषणापत्र में दी जाने वाली मुफ्त की पेशकश लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत भ्रष्ट प्रथाओं और चुनावी अपराधों के तहत नहीं आएगी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनाव घोषणापत्र की सामग्री पर दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था।

मामले में केंद्र की प्रतिक्रिया पर जोर देते हुए, सिंह ने कहा, कृपया देखें कि किसका पैसा देने का वादा किया गया है? यह लोगों का पैसा है। उन्होंने कहा कि हर पार्टी एक ही काम कर रही है। पीठ ने पूछा, याचिकाकर्ता ने याचिका में दो राजनीतिक दलों का नाम क्यों लिया है?

पीठ ने कहा कि वह यह जानना चाहती है कि इसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है। सिंह ने सुझाव दिया कि ऐसी गतिविधियों में शामिल राजनीतिक दलों को मान्यता नहीं दी जानी चाहिए। दलीलें सुनने के बाद पीठ ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।

याचिका में शीर्ष अदालत से यह घोषित करने का निर्देश देने की मांग की गई है कि चुनाव से पहले जनता के धन से मुफ्त चीजों का वादा, जो सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन करता है।

भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के समय उपहार की घोषणा से मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता प्रभावित होती है। इस तरह के प्रलोभन ने निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख दिया है।

याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने का वादा रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है। याचिका में कहा गया है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र की प्रत्येक महिला को 1,000 रुपये प्रति माह का वादा किया और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने प्रत्येक महिला को उन्हें लुभाने के लिए 2,000 रुपये का वादा किया और कांग्रेस ने प्रति माह 2,000 रुपये और हर गृहिणी को हर साल 8 गैस सिलेंडर का भी वादा किया।

याचिका में कहा गया है कि अगर आप सत्ता में आती है तो पंजाब को राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपये, शिअद के सत्ता में आने पर 25,000 करोड़ रुपये और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। याचिकाकर्ता ने कहा कि राज्य का जीएसटी संग्रह केवल 1,400 करोड़ रुपये है।

याचिका में दावा किया गया है, वास्तव में, कर्ज चुकाने के बाद, पंजाब सरकार वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है, तो वह चीजें मुफ्त कैसे देगी? कड़वा सच यह है कि पंजाब का कर्ज हर साल बढ़ता ही जा रहा है। चालू वित्त वर्ष में ही 30,000 करोड़ रुपये जमा होने के साथ राज्य का बकाया कर्ज बढ़कर 77,000 करोड़ रुपये हो गया है।

 

आईएएनएस

Created On :   25 Jan 2022 5:30 PM IST

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