चुनावी समर में बिजली बनी सियासत का जरिया

Electricity became the means of politics in the election season
चुनावी समर में बिजली बनी सियासत का जरिया
उत्तर प्रदेश चुनावी समर में बिजली बनी सियासत का जरिया
हाईलाइट
  • विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार ने किसानों को बड़ा उपहार दिया है।

 डिजिटलडेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बिजली सियासत का जरिया बन गई है। राजनीतिक दल इसे अपने हिसाब से भुनाने में लगे हैं। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले विभिन्न दल प्रदेशवासियों को मुफ्त व सस्ती बिजली देने के वादे से रिझा रहे हैं।

विधानसभा चुनाव से पहले योगी सरकार ने किसानों को बड़ा उपहार दिया है। सिंचाई के लिए निजी नलकूप की मौजूदा बिजली दरों में 50 प्रतिशत की कटौती करने की घोषणा की है, जिसका राज्य के 13 लाख किसानों को सीधा फायदा होगा। सरकार को लगभग एक हजार करोड़ रुपये उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड को बतौर अनुदान देना होगा।

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा का कहना है कि आंध्र प्रदेा, कर्नाटक, पंजाब, तमिलनाडु, तेलंगना जैसे राज्यों ने किसानों के बिजली बिल को पूरी तरह माफ कर रखा है, यूपी में भी लंबे समय से किसानों की बिजली दरें कम करने की मांग उठ रही थी और वे पहले ही सरकार को सिंचाई के लिए बिजली मुफ्त करने का सुझाव दे चुके थे।

ज्ञात हो कि यूपी में सबसे पहले आम आदमी पार्टी ने घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया था। इसके बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी भी यह वादा कर चुकी हैंै। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि प्रदेष में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने परे सभी घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट और किसानों को सिंचाई के लिए, पूरी तरह मुफ्त बिजली दी जाएगी। उपभोक्ता परिषद मानें तो अगर इन घोषणाओं को लागू किया गया तो सरकार को लगभग 34 हजार की सब्सिडी देने पड़ेगी।

उपभोक्ता परिषद की मानें तो यूपी में बीते 10 वर्षों में बिजली की दरों में भारी बढ़ोतरी हुई है। सिंचाई के लिए बिजली की दर 2012 में 75 रुपये प्रति बीएचपी थी, जो 2021 तक 176 प्रतिशत बढ़कर 170 रुपये प्रति बीएचपी हो गई। इसी तरह ग्रामीण अनमीटर्ड कनेक्शन की दर 125 रुपये प्रति कनेक्शन से 300 प्रतिशत बढ़कर 500 रुपये प्रति कनेक्शन हो गई।

वहीं, ग्रामीण मीटर्ड कनेक्शन के लिए बिजली की दर 2012 में एक रुपये प्रति यूनिट थी, जो 500 प्रतिशत बढ़कर 2021 में 6 रुपये प्रति यूनिट हो गई। शहरी घरेलू कनेक्शन के लिए बिजली की दरों में 84 प्रतिशत (अधिकतम 3.80 रुपये प्रति यूनिट से बढ़कर 7 रुपये प्रति यूनिट अंतिम स्लैब) और फिक्स्ड चार्ज में 69 प्रतिशत (65 रुपये प्रति किलोवाट से 110 रुपये प्रति किलोवाट) की बढ़ोतरी हो चुकी है।

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का कहना है कि नलकूपों के लिए बिजली की दरों में 50 प्रतिशत कटौती के योगी सरकार के फैसले से इसके दाम में अब तक हुई 126 प्रतिशत की बढ़ोतरी अब घटकर 63 प्रतिशत हो जाएगी। हालांकि, मुफ्त बिजली के वादों के बीच सबसे बड़ी चुनौती विद्युत विभाग के लगातार बढ़ रहे घाटे की है।

उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा कहते हैं कि वर्तमान में यूपी का विद्युत विभाग 95 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा घाटे में चल रहा है। यह घाटा मौजूदा सरकार में नहीं हुआ है, बल्कि पूर्ववर्ती सरकारें भी बराबर शामिल हैं।

उधर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे कहते हैं कि राजनीतिक दल भले मुफ्त बिजली बांटे, लेकिन विभाग को समय से पैसे मिलने चाहिए। यह पैसे चाहे सरकार दे या उपभोक्ता।

उन्होंने आगे कहा कि देश के कई प्रांतों में किसानों को मुफ्त बिजली मिलती है, लेकिन वहां भी सबसे बड़ी परेशानी है कि सब्सिडी की धनराशि या तो मिलती नहीं है, या फिर समय से नहीं मिलती है। उन्होंने बताया कि यूपी में बिजली की लागत 7.42 रुपये प्रति यूनिट है और औसत टैरिफ करीब साढ़े छह रुपये का है तो बिजली विभाग को पहले ही प्रति यूनिट 90.92 पैसे का नुकसान हो रहा है।

शैलेंद्र दुबे के मुताबिक, यूपी में बिजली की लागत दो कारणों से ज्यादा है। यूपी में 25 हजार मेगवाट की मांग है। यहां पर 5 हजार का उत्पादन है। 20 हजार मेगवाट बाहर से बिजली खरीद रहे है। 10 मेगावाट बिजली बहुत महंगे दामों पर निजी घरानों से खरीद रहे हैं। उन्होंने विद्युत विभाग के घाटे के लिए बिजली चोरी को भी एक कारण बताया। उनके मुताबिक 10 प्रतिषत बिजली चोरी हो रही है। इतना ही नहीं, करीब डेढ़ करोड़ उपभोक्ताओं को अनमिटर्ड की बिजली सप्लाई हो रही है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   8 Jan 2022 6:30 AM GMT

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