महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल होगा सिकलसेल
चंद्रकांत चावरे , नागपुर। अनुवांशिक बीमारी सिकलसेल की रोकथाम के लिए बरसों से प्रयास किए जा रहे हैं। सरकारी अभियान व विविध संस्थाओं के माध्यम से इस बीमारी की रोकथाम का हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। नागपुर विभाग अंतर्गत 6 जिलों में 2008 से 2021 तक सिकलसेल प्रभावितों की संख्या 1.35 लाख से अधिक थी। इसके बाद सर्वेक्षण नहीं हुआ है। पुराने आंकड़ों के आधार पर दो सालों में यह संख्या अनुमानित 20 हजार से बढ़कर 1.55 लाख हो चुकी है। सिकलसेल को केवल जागरुकता और औषधोपचार से रोका नहीं जा सकता, बल्कि इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने की आवश्यकता है। इस संकल्पना को साकार करने के लिए पिछले 10 साल से डॉ. रमेश कटरे प्रयास कर रहे हैं। अंतत: इस प्रयास को सफलता मिली है। इसी 20 मार्च को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने एक पत्र निकालकर सिकलसेल ग्रस्त राज्यों के विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों व शिक्षा संस्थानाें को पाठ्यक्रम में सिकलसेल विषय शामिल करने पर विचार करने को कहा है।
30 साल से कर रहे सिकलसेल नियंत्रण कार्य : कुरखेड़ा में आरोग्यधाम नामक संस्था चलाने वाले डॉ. रमेश कटरे पिछले 30 साल से सिकलसेल रोकथाम के लिए विविध अभियान चला रहे हैं। 10 साल से वे सिकलसेल की रोकथाम के लिए इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए सरकार से मांग कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि देश के 15 राज्यों में सिकलसेल प्रभावित मरीज हैं। कहीं कम तो कहीं ज्यादा प्रमाण है। अकेले महाराष्ट्र के 21 जिले में ही सर्वेक्षण कालावधि का आंकड़ा 2.75 लाख और विदर्भ के 11 जिलों में 1.75 लाख से अधिक हैं। उन्होंने 15 राज्यों के सांसदों, वहां के स्वास्थ्य मंत्री, मुख्यमंत्री आदि को कुल 340 पत्र लिखकर सिकलसेल की रोकथाम के लिए आग्रह कर इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की थी, लेकिन उनका प्रयास विफल हुआ।
कुरखेड़ा से नागपुर पहुंचे तब मिली सफलता, मंत्रियों तक पहुंची बात : उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। 26 दिसंबर 2021 को डॉ. कटरे नागपुर में केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी से मिले। उनके साथ ग्लोबल एलायंस ऑफ सिकलसेल डिजीज आर्गनाइजेशन के सदस्य गौतम डोंगरे भी थे। उन्होंने गडकरी को सिकलसेल बीमारी और मरीज की हालत के बारे में बताया। उन्हें एक निवेदन सौंपकर इस विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की गई थी। गडकरी ने इसकी दखल लेते हुए केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान व केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया समेत आईसीएमआर को पत्र लिखकर इस विषय का संज्ञान लेने को कहा था। इसके साथ ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी सिकलसेल को पाठ्यक्रम में विषय के रुप में समावेश करने की आवश्यकता, इस बीमारी से पीड़ित होनेवाला वर्ग आदि के बारे में बताया गया। अंतत: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने इस पहल पर सकारात्मक कदम उठाया है।
15 महीने के बाद हुई सकारात्मक पहल : डॉ. कटरे ने बताया कि पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनेगी। उनके द्वारा बताए गए 5 प्रमुख मुद्दों पर पाठ्यक्रम तैयार होगा। इसमें पहला मुद्दा सिकलसेल क्या है, उसके कारण व विविध प्रकार, दूसरा मुद्दा लाल पेशी का शरीर के हीमोग्लोबिन का संतुलन बनाने के लिए कैसा परिणाम होता है, तीसरा मुद्दा उपचार न करने पर होनेवाले परिणाम व पेचीदगी, चौथा मुद्दा नियंत्रण के उपाय, विवाह पूर्व जांच व स्क्रीनिंग और पांचवां मुद्दा उनके प्रति भेदभाव की धारणाएं बदलना और प्रतिबंधक नीति का परिणाम आदि शामिल है। 15 महीने तक विविध विभागों से पत्राचार के के बाद 20 मार्च को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के सचिव द्वारा पत्र जारी किया गया है, जिसमें विश्वविद्यालय, महाविद्यालय और शिक्षा संस्थानों को पत्र जारी कर सिकलसेल विषय को पाठ्यक्रम में शामिल करने को कहा गया है। डॉ. कटरे ने बताया कि यह विषय पाठ्यक्रम में शामिल होने पर आनेवाले 10-15 सालों में नई पीढ़ी जागरुक होकर इस बीमारी का शिकार होने से बचेगी और बीमारी पर नियंत्रण पा सकेंगे।
Created On :   24 March 2023 2:56 PM IST