तराई के जंगल में खास नस्ल के टाइगर की उपस्थिति से वन अमला खुश

 तराई के जंगल में खास नस्ल के टाइगर की उपस्थिति से वन अमला खुश

Bhaskar Hindi
Update: 2020-01-25 09:25 GMT
 तराई के जंगल में खास नस्ल के टाइगर की उपस्थिति से वन अमला खुश

डिजिटल डेस्क समना। मझगवां और चित्रकूट जंगल में इन दिनों जानवरों में अलग तरह की दहशत का माहौल समझ में आता है। कुछ दिन पहले यहां एक विशेष नस्ल का टाइगर आ पहुुंचा, जिसके यहां आने से अन्य बाघ तो इधर-उधर हो रहे हैं, लेकिन जो शाकाहारी जानवर हैं, उनमें भी अलग तरह की स्थिति देखी जा रही है। यह पूर्ण वयस्क बाघ पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाले पी-3 की प्रजाति का है। जानकार बताते हैं कि इस टाइगर की प्रजाति पेंच टाइगर रिजर्व के बाद पन्ना राइगर रिजर्व में ही देखी जाती है। यह अन्य जंगलों में पाए जाने वाले बाघों से कहीं अधिक लम्बा और ऊंचा होता है। कद-काठी के अनुरूप इसकी फुर्ती और ताकत भी अन्य बाघों से अलग होती है। एमपी-यूपी के सरहदी जंगल में इस टाइगर के आ जाने से यह माना जा रहा है कि यहां बाघों का कुनबा बहुत तेजी के साथ बढ़ेगा। जिस तरह से पन्ना टाइगर रिजर्व में 9 सालों के भीतर 0 से 50 तक बाघ पहुंच चुके हैं। उसी रफ्तार से यहां भी उनकी वंशवृद्धि हो सकती है, बशर्ते उनकी समुचित निगरानी और सुरक्षा का पुख्ता बंदोबस्त कर दिया जाए। 
एक बार में 5 शावक
देश के अन्य जंगलों में बाघों की जो भी नस्ल पाई जाती है वह एक बार में दो-तीन बच्चे ही देती है। लेकिन पेंच टाइगर रिजर्व और पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूद बाघों की नस्ल ऐसी है कि यहां टाइग्रेस 5 शावकों को एक बार में जन्म देती हैं। यही वजह है कि इन दोनों जगहों पर बहुत तेजी के साथ बाघों की वंशवृद्धि हो रही है। अन्य जंगलों में दो या तीन शावक ही एक बाघिन एक बार में पैदा करती है। इनमें से भी जो बाद में पैदा होते हैं वह अपेक्षाकृत कमजोर होते हैं और कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती है। इसी वजह से बाघों की संख्या बहुत धीरे-धीरे बढ़ती है। 
सेंचुरी अब बहुत जरूरी
पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या लगभग 10 साल पहले शून्य पर पहुंच गई थी। यहां टाइगर रिजर्व के तत्कालीन डायरेक्टर एस श्रीनिवास मूर्ति के उल्लेखनीय प्रयासों से बाघों के पुनस्र्थापन का काम प्रारंभ हुआ और मौजूदा समय में यहां 50 के करीब बाघ हैं। यहीं के बाघों की ब्रीड मझगवां के जंगलों में फल-फूल रही है। इन दिनों तराई के जंगल में 10 से भी अधिक छोटे-बड़े टाइगर मौजूद हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ पुनस्र्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले विशेषज्ञ एमपी ताम्रकार ने जब नए नस्ल के बाघ को यहां विचरण करते हुए देखा तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा और बोले अब यहां सेंचुरी बनाया जाना बहुत जरूरी है। इसके पहले जो भी टाइग्रेस ब्रीडिंग के लिए तैयार हैं उन्हें कॉलर आईडी लगाना आवश्यक है। सही मॉनीटरिंग के लिए सरकार को समुचित बंदोबस्त करना चाहिए। 
बढ़ाया जाए एरिया
जानकारों का कहना है कि बाघों की बढ़ती संख्या को देखते हुए सिंहपुर, मझगवां, चित्रकूट के साथ ही रीवा जिले के ककड़ेरी जंगल को टाइगर सेंचुरी के रूप में घोषित किया जाना चाहिए, ताकि कम से कम आधा सैकड़ा टाइगर अपनी टेरीट्री बनाकर यहां रह सकें। जिस नस्ल के बाघ यहां आ चुके हैं, उनकी संख्या बढऩे में बहुत अधिक समय नहीं लगना है। इसके लिए सभी को प्रयास करना चाहिए। नए नस्ल के बाघ ने बीते दिनों एक भारी-भरकम सांड़ और नर नीलगाय का शिकार कर सभी को चौका दिया है। आमतौर पर बाघ इतने बड़े जीवों का शिकार नहीं कर पाते। 
इनका कहना है
तराई के जंगल में एक नए नस्ल के वयस्क बाघ की मौजूदगी कुछ दिनों पहले से देखी जा रही है। यह टाइगर यहां पहले से मौजूद नर बाघों से कुछ अलग है। इनकी सुरक्षा के लिए जो भी संसाधन मौजूद हैं, उनका उपयोग करते हुए कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही।
राजीव मिश्र वन संरक्षक
 

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