हाईकोर्ट : करंट लगाने से विकलांग हुए शख्स को मुआवजा देने का निर्देश

हाईकोर्ट : करंट लगाने से विकलांग हुए शख्स को मुआवजा देने का निर्देश

Tejinder Singh
Update: 2019-08-23 12:08 GMT
हाईकोर्ट : करंट लगाने से विकलांग हुए शख्स को मुआवजा देने का निर्देश

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महाराष्ट्र स्टेट इलेक्ट्रिसिटी डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (महावितरण) का कर्मचारी न होने के बवाजूद बिजली के खंभे में चढने के चलते लगे करंट के कारण विकलांग हुए एक शख्स को बांबे हाईकोर्ट ने मुआवजे के लिए पात्र माना है। हाईकोर्ट ने पाया कि सदाशिव कटके नाम का शख्स महावितरण के कर्मचारी के निर्देश पर बाधित बिजली की अपूर्ति को ठीक करने के लिए बिजली के खंभे में एक स्क्रू लगाने के लिए चढा था। लेकिन इस दौरान उसे बिजली का बड़ा करंटा लगा और वह नीचे गिर गया। इस दौरान उसे गंभीर चोट लगी जिससे वह विकलांग हो गया और अपनी जीविका अर्जित करने के योग्य भी नहीं बचा। इस घटना के बाद कटके ने महावितरण से मुआवजे की मांग की। पर महावितरण ने उसकी इस मांग पर विचार नहीं किया लिहाजा उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

न्यायमूर्ति अकिल कुरेशी व न्यायमूर्ति एसजे काथावाला की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान महावितरण ने हलफनामा दायर कर साफ किया कि कटके महावितरण का कर्मचारी नहीं था। वह महावितरण के टेक्निशियन व आपरेटर पद पर कार्यरत कर्मचारियों के निर्देश पर चढा था। बिजली के खंभे की खारबी को दूर करने का काम इन कर्मचारियों का था। इसके अलावा इन कर्मचारियों को काम के लिए बाहरी व निजी व्यक्ति को  नियुक्ति करने का अधिकार नहीं है। इसलिए दुर्घटना का शिकार हुए, याचिकाकर्ता को मुआवजा देना महावितरण की जिम्मेदारी नहीं है। याचिकाकर्ता ने मुआवजा के लिए हमारे पास आवेदन किया था लेकिन कुछ दस्तावेज न देने के कारण उसके आवेदन पर विचार नहीं किया गया  

याचिका में उल्लेखित तथ्यों व महावितरण के मुआवजे को लेकर मार्च 2011 में जारी किए परिपत्र पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को महावितरण की नीति के तहत मुआवजे के लिए पात्र माना। खंडपीठ ने कहा कि महावितरण के कर्मचारियों के निर्देश पर याचिकाकर्ता बिजली के खंभे में स्क्रू लगाने के लिए चढा था। ऐसे में वह मुआवजा देने की अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकता है। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को नए सिरे से मुआवजे के लिए आवेदन करने को कहा और चार सप्ताह के भीतर महावितरण को अपने परिपत्र के हिसाब से मुआवजे देने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने साफ किया कि याचिकार्ता सिविल कोर्ट में भी मुआवजे की मांग को लेकर दावा दायर करने के लिए स्वतंत्र है। 


एक हजार रुपए की रिश्वत लेनेवाले मनपा अधिकारी के कारावास की सजा को हाईकोर्ट ने रखा बरकरार

उधर बांबे हाईकोर्ट ने एक हजार रुपए रिश्वत लेनेवाले मुंबई महानगरपालिका  के अधिकारी को सुनवाई गई एक साल के कारावास सजा को बरकरार रखा है। सुनवाई के दौरान जमानत पर रहनेवाले मनपा अधिकारी संजय जंगम की जमानत को रद्द करते हुए अदालत ने उसे भ्रष्टाचार प्रतिबंधक कानून से जुड़े मामले की सुनवाई करनेवाले विशेष न्यायाधीश के सामने  7 सितंबर 2019 से पहले आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया है। जंगम ने एक निजी सिक्योरिटी एजेंसी रायल सिक्योरिटी फोर्स के अधिकारी से उसकी इमारत में जल निकासी को बंद करने के लिए लगाए गए ढक्कन में नियमों का पालन न होने के लिए शुरुआत में 10 हजार रुपए के घूस की मांग की थी। पर बाद में वह पहले एक हजार और बाद में नियमित अंतराल पर नौ हजार रुपए लेने के लिए राजी हो गया था।  सिक्योरिटी एजेंसी ने यह रकम देने से इंकार कर दिया। और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो(एसीबी) से इसकी शिकायत कर दी।  15 दिसंबर 2011 को जंगम जब सिक्योरिटी एजेंसी के कार्यालय में पैसे लेने के लिए आया तो एसीबी के अधिकारियों ने कुछ समय बाद वहां पर पहुंचकर उसे गिरफ्तार कर लिया। यहीं नहीं एसीबी ने उसके जेब से एक हजार रुपए भी बरामद किए। जिसमें उसकी अंगुलियों के निशान पाए गए। जांच के बाद एसीबी के अधिकारियों ने एसीबी की विशेष अदालत में आरोपी के खिलाफ आरोपपत्र दायर किया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने जंगम को दो अगस्त 2013 को एक साल के कारावास की सजा सुनाई। लेकिन इस बीच उसे जमानत मिल गई और जंगम ने हाईकोर्ट में अपील की। सुनवाई के दौरान जंगम के वकील ने न्यायमूर्ति साधना जाधव के सामने दावा किया कि मेरे मुवक्किल ने स्वेच्छा से एक हजार रुपए की घूस स्वीकार की थी इसका कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा जांच में कई खामिया है। लिहाजा उसके मुवक्किल को मामले से बरी किया जाए। किंतु न्यायमूर्ति ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि आरोपी कई बार सुरक्षा एजेंसी के कार्यालय में गया था। अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे जाकर आरोपी पर लगे आरोपों को साबित किया है। लिहाजा आरोपी की अपील को खारिज किया जाता है और उसे सुनवाई गई सजा को बरकरार रखा जाता है।  
 

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