मराठा आरक्षण मामले में सरकार का दावा -  पूरी तरह वैज्ञानिक है पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट

 मराठा आरक्षण मामले में सरकार का दावा -  पूरी तरह वैज्ञानिक है पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट

Tejinder Singh
Update: 2019-03-05 10:05 GMT
 मराठा आरक्षण मामले में सरकार का दावा -  पूरी तरह वैज्ञानिक है पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में दावा किया है कि मराठा आरक्षण को लेकर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की ओर से तैयार की गई रिपोर्ट वैज्ञानिक है और इसमें किसी प्रकार की कोई खामी नहीं है। राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने मराठा समुदाय के सामाजिक व आर्थिक रुप से पिछड़े होने के विषय में सरकार को रिपोर्ट सौपी थी जिसके आधार पर सरकार ने मराठाओं को शिक्षा व नौकरी में 16 प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है। हाईकोर्ट में आरक्षण के विरोध में दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे की खंडपीठ के सामने राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल साखरे ने कहा कि याचिकाकर्ता का वह दावा आधारहीन है जिसमे कहा गया है कि आयोग की रिपोर्ट में दिए गए आकड़े प्रमाणिक व विश्वसनीय नहीं है। उन्होंने दावा किया कि रिपोर्ट वैज्ञानिक तरीके से तैयार की गई है इसमे कोई खामी नहीं है। विशेषज्ञों ने मराठा समुदाय को लेकर गहन अध्ययन करने के बाद अपनी जानकारी आयोग को सौपी है। 

तो बगैर सीसीटीवी वाले कमरों में पूछताछ नहीं कर पाएगी पुलिस

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि वह पुलिस हिरासत में आरोपियों को हिंसा से कैसे बचाएगी। हाईकोर्ट ने सरकार को इस संबंध में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। इससे पहले हाईकोर्ट को बताया गया कि पुलिस हिरासत में एग्नैलो वल्डारेस नामक युवक की पुलिस हिरासत में मौत के मामले में पुलिस स्टेशनों को सीसीटीवी से लैस करने का निर्देश दिया गया था लेकिन अब तक यह काम पूरा नहीं हो पाया है। इस बात को जानने के बाद न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी की खंडपीठ ने कहा कि सरकार हमे बताए कि वह आरोपियों को पुलिस हिरासत में हिंसा से कैसे बचाएगी। अन्यथा हम पुलिस को एेसे कमरों में आरोपी से पूछताछ करने पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करेंगे जहां सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे है। खंडपीठ को बताया गया कि मुंबई के सिर्फ 25 व उपनगर के 46 पुलिस स्टेशनों मे सीसीटीवी लगाए गए हैं। राज्य भर में करीब 11 सौ पुलिस स्टेशन है। इस लिहाज से देखा जाए तो पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरे लगाने की रफ्तार काफी धीमी है। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सरकार हमे बताए कि वह पुलिस हिरासत में आरोपियों को हिंसा से कैसे बचाएगी? 
 

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