क्वालिटी एज्युकेशन के लिए शिक्षकों का टीईटी पास होना जरुरी, अदालत ने कहा- अयोग्य हो तो छोड़ो नौकरी
क्वालिटी एज्युकेशन के लिए शिक्षकों का टीईटी पास होना जरुरी, अदालत ने कहा- अयोग्य हो तो छोड़ो नौकरी
डिजिटल डेस्क, मुंबई। प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए शिक्षकों का शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास होना जरूरी हैं। यह मत व्यक्त करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने बगैर टीईटी के नौकरी कायम रखने की मांग करने वाले शिक्षकों को राहत देने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति एस सी धर्माधिकारी व रियाज छागला की खंडपीठ ने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) के तहत राज्य सरकार ने कक्षा पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को पढानेवाले शिक्षको के लिए टीईटी के अलावा डीएड व बीएड की शैक्षणिक योग्यता तय की है। राज्य सरकार ने यह निर्णय शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए किया है। ऐसे में शिक्षा का स्तर तभी बेहतर होगा जब सक्षम व योग्य शिक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। आरटीई कानून के तहत मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान किया गया है। लेकिन यदि शिक्षा गुणवत्तापूर्ण नहीं होगी तो मुफ्त की शिक्षा का कोई मतलब नहीं होगा।
खंडपीठ ने कहा कि राज्य सरकार ने साल 2013 से ही टीईटी के बारे सूचना जाहिर करना शुरू कर दिया था। 24 नवंबर 2017 को इस संबंध में शासनादेश जारी किया गया था। जिसके अंतर्गत प्राइमरी शिक्षको को 31 मार्च 2019 तक टीईटी की परीक्षा पास करना अनिवार्य किया गया था। इस बीच कई बार टीईटी की परीक्षा ली गई। याचिका दायर करने वाले शिक्षकों ने सरकार की टीईटी से जुड़ी नीति का विरोध नहीं किया है। उन्हें टीईटी के बारे में जानकारी भी थी ऐसे में महज सहानुभूति के आधार पर टीईटी पास न करनेवाले शिक्षकों की नियुक्ति को कायम नहीं रखा जा सकता। क्योंकि प्राथमिक शिक्षा बच्चों के विवेक व व्यक्तित्व को आकार देती हैं। अनुदानित स्कूलो में पढ़ानेवाले शिक्षकों को सरकारी खजाने से वेतन का भुगतान किया जाता हैं। इस लिहाज से शिक्षको से टीईटी पास करने की अपेक्षा कोई बहुत बड़ी बात नहीं है। यदि कोई टीईटी पास करने में खुद को असमर्थ पाता है तो उससे योग्य लोगों को अवसर पाने का हक है। अयोग्य शिक्षक सरकार को अपनी नौकरी कायम रखने के लिए बाध्य नहीं कर सकते है। ऐसे में यदि शिक्षकों को कोई शिकायत है तो सरकार के सामने अपनी बात रखे। क्योंकि अदालत टीईटी से जुड़ी नीति नहीं लाई है।