जंगल में हैं कुदरत का खजाना, निगरानी के अभाव में खोता जा रहा अस्तित्व

जंगल में हैं कुदरत का खजाना, निगरानी के अभाव में खोता जा रहा अस्तित्व

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-07 08:06 GMT
जंगल में हैं कुदरत का खजाना, निगरानी के अभाव में खोता जा रहा अस्तित्व

भास्कर न्यूज उमरिया । सुरम्य विंध्य के पहाड़ों से सुसज्जित बांधवधरा उमरिया में बांधवगढ़ के अलावा भी पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। मनोरम व दार्शनीय स्थलों से लबरेज उमरिया में कलचुरी कालीन प्रतिमा से लेकर, जोझाफाल मछड़ार का वाटर फाल, उमरार व जोहिला का मंगठार डैम, डिण्डौरी की सीमा पर अमोलखोह आश्रम अपने आप में पर्यटन का केन्द्र हैं। पाण्डवकाल में निर्मित अजंता एलोरा की तर्ज पर मढ़ीबाग मंदिर, सगरा धाम ये ऐसे चिन्हित स्थल हैं, जहां फुर्सत के पल बिताना स्थानीय लोगों की पहली पसंद है। बावजूद इसके ऐतिहासिक व पुरासंपदा को संजोने में पर्यटन संवर्धन समिति व पुरातत्व विभाग विफल साबित हुआ है। जिला गठन के 18 वर्ष बीतने के बाद भी प्रशासनिक प्लान कागजों से धरा पर नहीं उतर पाया है। अब जब 6 अक्टूबर से प्रशासन ने पर्यटन संवर्धन के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया है। तब एक बार फिर पर्यावरण व पर्यटन प्रेमियों को इन प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण व विकास की अपेक्षा रहेगी।
टूट रहा मढ़ीबाग कलचुरी कालीन मंदिर
उमरिया में प्राकृति की गोद व एकांत में समय बिताने के लिए लोगों की जुबान पर पहला नाम मढ़ीबाग, सगराधाम और उमरार बांध का आता है। धार्मिक स्थल मढ़ीबाग शिव मंदिर व सागरेश्वर नाथ कलचुरी कालीन खजुराहो की तर्ज पर विकसित हैं। इसी तरह मरदरी की पहाड़ से निकलने वाली उमरार नदी में खैरा ददरी के निकट उमरार बांध बनाया गया। दशकों पहले निर्मित बांध की जल संवर्धन क्षमता 16.7 एमसीएम है। पहाड़ों से घिरे बांध में पहुंचने पर ऐसा प्रतीत होता है, जैसा मानों आबादी से दूर हम किसी दूसरे लोक  में पहुंच गये हों। पूर्व में यहां प्रशासन की तरफ से एडवेंचरस गेम भी हो चुके हैं।
पथरीगढ़ की नगरी थी पथरहठा !  कायम है मूर्तियों का रहस्य
पुरातत्व के लिहाज से चंदिया पथरहठा गांव का रहस्य आज भी इतिहासकारों के लिए शोध का विषय बना हुआ है। गांव में हिन्दू व बौद्ध धर्म की 3-4 फीट की सैकड़ों प्रतिमाएं अलग-अलग जगह से खुदाई में निकली हैं। सरपंच पुष्पेन्द्र सिंह बताते हैं न जाने गांव में ऐसा क्या है, कहीं भी गहरी खुदाई में आकस्मात प्रतिमा मिल ही जाती है। अंजान भाषा का एक शिलालेख भी मिला है, जिसे पढऩे दूर-दूर से जानकार आये, लेकिन सफलता नहीं मिली। बताया जाता है पूर्व में यहां पथरीगढ़ नामक रियासत का इलाका था। पुरातत्व विभाग द्वारा गांव पहुंचकर प्रतिमा संरक्षण की बात जरूर कही गई, लेकिन सुरक्षित संग्रहालय व देखरेख के अभाव में मूर्तियां लगातार गांव से गायब हो रही हैं। इनके अलावा बांधवगढ़ बफरजोन में पनपथा इलाके में खुदाई के दौरान 2-3 माह पूर्व प्रतिमाएं मिली हैं।
बीच जंगल में मछड़ार का वाटरफाल
चंदिया में ही कौडिय़ा समीप जोझा फाल नाम जलप्रपात है। जंगल के बीच मछड़ार नदी का पानी 30-40 फीट की ऊंचाई से नीचे पत्थरो में गिरता है। अक्सर यहां पिकनिक मनाने लोग देखे जा सकते हैं। इसी तरह पाली के मंगठार स्थित जोहिला बांध की सुंदरता भी किसी से छिपी नहीं है। पांच गेट व अथाह जल स्तर तथा आकर्षक पहाडिय़ों में लोग फुर्सत के पल बिताने जाते हैं।
यहां की सुंदरता भी कम नहीं
उमरिया से करकेली होते डिण्डौरी की सीमा पर गुफा व पहाड़ों के बीच अमोलखोह आश्रम भी तपोस्थली के रूप में अपनी पहचान बना चुका है। ऊंची पहाडिय़ों के बीच बच्चू बाबा महाराज के तप से यह इलाका बेहद पवित्र माना जाता है। यहां पूर्णिमासी व अमावस्या के साथ शिवरात्रि में विशाल जनसमुदाय पहुंचता है। सीएम शिवराज भी नौरोजाबाद दौरे में क्षेत्र को पर्यटन जोन के रूप में विकसित करने की घोषणा की। पतलेश्वर धाम, धौरखोह का हनुमान मंदिर भी कम प्रसिद्ध नहीं हैं। बावजूद इसके पहुंच मार्ग मार्ग से लेकर अन्य बुनियादी सुविधाएं आज भी कोसो दूर हैं।
इनका कहना है
उमरार, पथरहठा, जोझा फाल सहित अन्य संभावित क्षेत्रों में पर्यटन संवर्धन की बैठक में चर्चा हुई है। निर्णय अनुसार स्थानीय स्तर पर विकास के लिए जमीन दी जायेगी। जहां नये सिरे से संसाधन विकासित किये जायेंगे। जरूरत पडऩे पर शीर्ष स्तर से मदद ली जायेगी।
माल सिंह, कलेक्टर उमरिया।

 

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