उमरिया में मिला अतिकुपोषित बच्चा, पोषण पुर्नवास केन्द्र नहीं मिला भरपेट भोजन ,घर लौट आई मां

उमरिया में मिला अतिकुपोषित बच्चा, पोषण पुर्नवास केन्द्र नहीं मिला भरपेट भोजन ,घर लौट आई मां

Bhaskar Hindi
Update: 2021-02-21 13:53 GMT
उमरिया में मिला अतिकुपोषित बच्चा, पोषण पुर्नवास केन्द्र नहीं मिला भरपेट भोजन ,घर लौट आई मां

करकेली जनपद के कोहका बैगा बाहुल्य परिवार का मामला, बच्चे की हालत गंभीर, प्रशासन की लापरवाही उजागर
डिजिटल डेस्क उमरिया।
आदिवासी बाहुल्य उमरिया जिले में अतिकुपोषित बच्चा मिला है। जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किमी दूर कोहका-47 गांव में पिता केस लाल बैगा (40) मां रमंती बैगा के घर नौ माह पूर्व इसने जन्म लिया था। वर्तमान में इसकी उम्र नौ माह वजन तीन किग्रा. है। बच्चे को इसी सप्ताह जिला अस्पताल स्थित पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती किया गया था। तीन दिन रहने के बाद मां बच्चे को घर ले आई। उसका कहना है एनआरसी में पर्याप्त भरपेट खाना नहीं दिया जाता। बच्चे की देखरेख के लिए डॉक्टर भी नियमित नहीं आते। बस भर्ती करके चले जाते हंै। चूंकि बैगा परिवार पेशे से मजदूरी करता है। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। इसलिए घर की हालत देखते हुए मां रमंती बच्चे के साथ घर लौट गई। ईधर कुपोषित बच्चे की हालत दिन ब दिन खराब होती जा रही है। सामान्यत: नौ माह के शिशु का वजन 9.2 होना चाहिए। जबकि नरोत्तम का तीन किग्रा. है। शरीर में हाथ, पैर का मांस चिपकता जा रहा है। गांव में कुपोषण के विरुद्ध जागरूकता का काम कर रही सामाजिक संस्था को जब पता चला। तब जाकर प्रशासन की लापरवाही सामने आ पाई। संस्था की माने तो इसके पूर्व भी कई कुपोषित शिशुओं की मां एनआरसी में पर्याप्त भोजन व पोषण आहार न मिलने की शिकायत कर चुकी हैं। बहरहाल जिला अस्पताल में डॉ. संदीप सिंह आरएमओ ने पूरे मामले की जांच कर उचित इलाज की बात कही है।
नहीं मिला खाद्य सुरक्षा अधिनियम का लाभ
कोहका में केसलाल बैगा के घर की हालत अत्यंत चितनीय है। परिवार में पांच सदस्य हैं। दो बेटियों में रामप्यारी (17) बड़ी व पार्वती (12) कक्षा पांचवी में पढ़ती है। गरीबी के चलते रामप्यारी ने चौथी तक पढ़ाई कर छोड़ दिया था। घर में आजीविका का मुख्य साधन मजदूरी है। परिवार के पास खुद की जमीन नहीं। उचित मूल्य दुकान से राशन के लिए आवेदन किया। अभी तक इन्हें पीडीएस से अनाज की पात्रता नहीं मिली है। रमंती ने बताया पति ने पिछले साल ढोलिया बंधा में रोजगार गारंटी का काम किया था। 20 दिन में आधे दिन का भुगतान पंचायत ने डकार लिया। पांच नग बकरी दो वक्त खाने का सहारा थी। कोरोना काल में हालात बिगड़े तो कुछ मवेशी बेचकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम हुआ। कोरोना के चलते अस्पताल जाने से डर रही थी। यही कारण रहा कि हालात व समय की मार से बेटा नरोत्तम अतिकुपोषित हो चुका है। 

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