बदलाव: सूडान में महिलाओं को मिली खतने से आजादी, गैर-मुस्लिमों को शराब पीने की इजाजत

बदलाव: सूडान में महिलाओं को मिली खतने से आजादी, गैर-मुस्लिमों को शराब पीने की इजाजत

Bhaskar Hindi
Update: 2020-07-13 20:39 GMT
बदलाव: सूडान में महिलाओं को मिली खतने से आजादी, गैर-मुस्लिमों को शराब पीने की इजाजत
हाईलाइट
  • रूढ़िवादी परंपराओं के तहत महिलाओं की यौन इच्छा को कम करने के तौर पर देखा जाता है
  • हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाए और बच्चियां होती हैं शिकार
  • हर साल दुनियाभर में एफजीएम के बाद इलाज में 1.4 अरब डॉलर खर्च होते हैं

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सूडान के कानून में सदियों बाद बदलाव हुआ है। सूडान में कट्टर इस्लामिक शासन अब खत्म हो चुका है। अप्रैल माह में महिलाओं के खतने (female genital mutilation) को अपराध करार देने के बाद अब इसे कानून बना लिया गया है, इतना ही नहीं सरकार इसके साथ दूसरे नए कानून भी लाई है। अब गैर-मुस्लिमों को देश के अंदर निजी तौर पर शराब पीने की अनुमति भी मिलेगी।

इन नए कानूनों में गैर-मुस्लिमों को शराब पीने का अधिकार, इस्लाम त्यागने का अधिकार, महिलाओं को बिना पुरुष रिश्तेदारों के सफर करने का अधिकार भी अब मिल गए हैं। इस बारे में बताते हुए देश के न्याय मंत्री नसरुद्दीन अब्दुलबरी ने कहा कि ऐसे सभी कानून खत्म कर दिए गए हैं, जिनसे मानवाधिकार का उल्लंघन होता है।

यहां ये बता दें कि सूडान में महिलाओं के खतने की दर काफी ज्यादा दर्ज की जाती रही है। सूडान के पूर्व राष्ट्रपति जाफर निमीरी ने 1983 में इस्लामिक कानून लागू करने के बाद देश में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। 30 साल सत्ता में रहने वाले उमर अल-बशीर को पिछले साल सरकार से बेदखल कर दिया गया था। अब नए कानून में न सिर्फ महिलाओं के लिए अच्छा है, बल्कि सूडान की लगभग 3 प्रतिशत गैर-मुस्लिम आबादी के लिए भी यह सुखद खबर है।

महिलाओं की यौन इच्छा को कम करने के लिए किया जाता है FGM
सूडान समेत कई अन्य देशों, एशिया और पश्चिम एशिया में महिलाओं के FGM कराने की काफी पुरानी प्रथा रही है, जहां इसे रूढ़िवादी परंपराओं के तहत महिलाओं की यौन इच्छा को कम करने के तौर पर देखा जाता है। संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार सूडान में 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग 87 प्रतिशत महिलाओं और बच्चियों को खतना कराना पड़ा है।

हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाएं और बच्चियां होती हैं शिकार
एक अनुमान के मुताबिक हर साल 20 करोड़ से अधिक महिलाओं और बच्चियों को सांस्कृतिक और गैर-चिकित्सकीय कारणों से खतने का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर ऐसा जन्म से 15 वर्ष के बीच किया जाता है और इसका उनके स्वास्थ्य पर गहरा असर होता है, जिसमें संक्रमण, रक्तस्राव या सदमा शामिल है। इससे ऐसी असाध्य बीमारी हो सकती है, जिसका बोझ जिंदगी भर उठाना पड़ता है।

हर साल दुनियाभर में FGM के बाद इलाज में 1.4 अरब डॉलर खर्च होते हैं
संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर साल FGM से सेहत पर होने वाले दुष्प्रभावों के इलाज की कुल लागत 1.4 अरब डॉलर होती है। आंकड़ों के अनुसार कई देश अपने कुल स्वास्थ्य व्यय का करीब 10 प्रतिशत हर साल खतना के इलाज पर खर्च करते हैं। कुछ देशों में तो ये आंकड़ा 30 प्रतिशत तक है।

5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती
WHO के यौन और प्रजनन स्वास्थ्य तथा अनुसंधान विभाग के निदेशक इयान आस्क्यू ने एक बयान में कहा था कि FGM न सिर्फ मानवाधिकारों का भयानक दुरुपयोग है, बल्कि इससे लाखों लड़कियों और महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को उल्लेखनीय नुकसान पहुंच रहा है। इससे देशों के कीमती आर्थिक संसाधन भी नष्ट हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि FGM को रोकने और इसके होने वाली तकलीफ को खत्म करने के लिए अधिक प्रयास करने की जरूरत है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ने बताया है कि एफजीएम के करीब एक चौथाई पीड़ितों या करीब 5.2 करोड़ महिलाओं और बच्चियों को स्वास्थ्य देखभाल नहीं मिल पाती है। 

 

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