मौत का डर : रोहिंग्या किशोर ने प्लास्टिक ड्रम के सहारे पार किया समुद्र

मौत का डर : रोहिंग्या किशोर ने प्लास्टिक ड्रम के सहारे पार किया समुद्र

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-13 14:28 GMT
मौत का डर : रोहिंग्या किशोर ने प्लास्टिक ड्रम के सहारे पार किया समुद्र

डिजिटल डेस्क, ढाका। मौत का डर क्या होता है ये कोई रोहिंग्या मुसलमानों से पूछे तो शायद वो बेहतर बता पाएंगे। मीडिया में एक रोहिंग्या किशोर की तस्वीर सामने आई है, जो म्ंयामार में रोहिंग्या मुसलमानों पर आए संकट और अत्याचार की कहानी बयां कर रही है। म्यांमार में रह रहे रोहिंग्या मुसलमान सेना के कत्लेआम से बचते हुए भारत, बांग्लादेश, नेपाल समेत अन्य देशों में शरण लेने के लिए पलायन कर रहे हैं। पिछले 10 हफ्तों में करीब 6 लाख से अधिक रोहिंग्या मुसलमान म्ंयामार छोड़ चुके हैं। इसी दौरान मौत के डर से एक रोहिंग्या बालक ने प्लास्टिक ड्रम के सहारे समुद्र पार कर दिया।

 

नबी हुसैन नामक एक किशोर ने मौत के डर से एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे समुद्र पार करते हुए जिंदगी की जंग जीत ली। नबी की उम्र महज 13 साल है और वह तैर भी नहीं सकता। म्यामांर में अपने गांव से भागने से पहले उसने कभी करीब से समुद्र नहीं देखा था, लेकिन जिंदगी की जंग लड़ते हुए उसने कैसे समुद्र पार कर लिया, इसका उसे खुद यकीन नहीं है। नबी ने करीब ढाई मील की इस दूरी के दौरान समुद्री लहरों के थपेड़ों के बावजूद ड्रम पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी।

 

नबी हुसैन को म्यांमार में हिंसा के चलते भारत और बांग्लादेश समेत कई देशों में शरण लेने को मजबूर रोहिंग्या मुसलमानों के दर्द की बानगी कहा जा सकता है। म्यामांर में हिंसा की वजह से सहमे रोहिंग्या मुसलमान हताशा में अपना सब कुछ छोड़ कर वहां से निकलने की कोशिश में तैरकर पड़ोस के बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

नबी ने कहा, मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था। मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है। उसने कहा, हम बेहद परेशान थे, इसलिए हमें लगा कि पानी में डूब जाना कहीं बेहतर होगा। नबी इस देश में किसी को नहीं जानता और म्यामांर में उसके माता-पिता को यह नहीं पता कि वह जीवित है। उसके चेहरे पर अब पहले वाली मुस्कान नहीं रहती और वह लोगों से आंख भी कम ही मिलाता है। नबी अपने माता-पिता की नौ संतानों में से चौथे नंबर का था। म्यामांर में पहाड़ियों पर रहने वालो उसके किसान पिता पान के पत्ते उगाते थे।

 

बीते एक सप्ताह में ही तीन दर्जन से ज्यादा लड़कों ने खाने के तेल के ड्रमों का इस्तेमाल छोटी नौके के तौर पर नफ नदी को पार करने के लिए किया और शाह पुरीर द्वीप पहुंचे। कमाल हुसैन (18) भी तेल के ड्रम के सहारे ही बांग्लादेश पहुंचा था। अगस्त के बाद से करीब छह लाख रोहिंग्या बांग्लादेश के लिए पलायन कर चुके हैं।

 

म्यामांर में रोहिंग्या मुसलमान दशकों से रह रहे हैं, लेकिन वहां बहुसंख्यक बौद्ध उन्हें अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के तौर पर देखते हैं। सरकार उन्हें मूलभूत अधिकार भी नहीं देती और संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें दुनिया की सबसे पीड़ित अल्पसंख्यक आबादी कहा था। समस्या तब शुरू हुई जब एक रोहिंग्या विद्रोही संगठन ने म्यामांर के सुरक्षा बलों पर हमला किया। म्यामांर के सुरक्षा बलों ने इस पर बेहद सख्त कार्रवाई की।

 

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