श्रीलंका : अपदस्थ पीएम विक्रमसिंघे ने संसद भंग के फैसले को बताया संविधान की अवहेलना

श्रीलंका : अपदस्थ पीएम विक्रमसिंघे ने संसद भंग के फैसले को बताया संविधान की अवहेलना

Bhaskar Hindi
Update: 2018-11-11 12:17 GMT
श्रीलंका : अपदस्थ पीएम विक्रमसिंघे ने संसद भंग के फैसले को बताया संविधान की अवहेलना
हाईलाइट
  • विक्रमसिंघे ने इसे "निराशा" में लिया गया फैसला बताया है।
  • श्रीलंका में संसद भंग करने के फैसले को विक्रमसिंघे ने संविधान की अवहेलना और 19वें संशोधन का उल्लंघन करार दिया है।
  • हालांकि उन्होंने दावा किया है कि दोबारा उनकी पार्टी सत्ता में आएगी।

डिजिटल डेस्क, कोलंबो। श्रीलंका में संसद भंग करने के फैसले को अपदस्थ प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने संविधान की अवहेलना और 19वें संशोधन का उल्लंघन करार दिया है। विक्रमसिंघे ने इसे "निराशा" में लिया गया फैसला बताया है। हालांकि उन्होंने दावा किया है कि दोबारा उनकी पार्टी सत्ता में आएगी। बता दें कि राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरीसेना ने 225 सदस्यीय संसद को भंग कर दिया है। श्रीलंका में अब तयशुदा कार्यक्रम से दो साल पहले 5 जनवरी को चुनाव होंगे। इसके लिए 19 नवंबर से 26 नवंबर के बीच नामांकन किए जाएंगे। 17 जनवरी को नई संसद आयोजित होगी।

विक्रमसिंघे ने कहा, उनकी पार्टी कुछ अन्य राजनीतिक दलों के साथ मिलकर इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने पर चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने कहा, अगर आवश्यकता पड़ी तो वो कोर्ट भी जाएंगे। चुनावों की तैयारी को लेकर विक्रमसिंघे ने कहा, उनकी पार्टी ने तैयारियां शुरू कर दी है। शुरूआती बैठकें भी की जा रही है। उन्होंने कहा कि जनता नई संसद वैधता को चुनौती देगी। अगर चुनाव में जाना ही है तो वैध तरीके से जाना चाहिए। हम भी इसके लिए तैयार है और इसका समर्थन करेंगे। विक्रमसिंघे का मानना है कि "संवैधानिक गतिरोध" लंबे समय तक नहीं चल सकता और "सामान्य स्थिति" वापस आएगी।

बता दें कि श्रीलंका में नाटकीय घटनाक्रम के बाद पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। राजपक्षे के शपथ ग्रहण समारोह में प्रेसिडेंट मैत्रिपाला सिरीसेना और कई अन्य विपक्षी नेता मौजूद रहे थे। श्रीलंका की राजनीति में अचानक इस तरह का बदलाव इसलिए आया था क्योंकि सिरीसेना की पार्टी यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम (UPFA) ने पूर्व प्रधानमंत्री रणिल विक्रमेसिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी (UNP) के साथ गठबंधन तोड़ लिया था।

विक्रमेसिंघे सरकार का गठन 2015 में हुआ था जब सिरीसेना के समर्थन के साथ वह प्रधानमंत्री बने थे। विक्रमेसिंघे के पीएम बनते ही महिंद्र राजपक्षे का लगभग एक दशक से चला आ रहा शासन समाप्त हुआ था।

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