अमेरिका ने UNESCO से नाता तोड़ा, ये है वजह

अमेरिका ने UNESCO से नाता तोड़ा, ये है वजह

Bhaskar Hindi
Update: 2017-10-12 18:27 GMT
अमेरिका ने UNESCO से नाता तोड़ा, ये है वजह

डिजिटल डेस्क, वाशिंगटन। अमेरिका ने इजरायल के प्रति पूर्वाग्रहपूर्ण दृष्टिकोण का आरोप लगाते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ के सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को से नाता तोड़ लिया है। अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने अपने एक बयान में बताया कि यूनेस्को की महानिदेशक इरिना बोकोवा को अमेरिका के निर्णय से अवगत करा दिया गया है। अमेरिका के इस फैसले को सामान्य ढंग से नहीं लिया जा सकता। इससे साफ हो जाता है कि अमेरिका यूनेस्को के बुनियादी ढ़ांचे और इजरायल विरोधी दृष्टिकोण में बदलाव चाहता है। संयुक्त राष्ट्र का यह संगठन 1946 से काम कर रहा है। अमेरिका के इस निर्णय का इजरायल ने भी स्वागत किया है। इजरायल ने भी अमेरिका के साथ यूनेस्को छोड़ने की बात कही है।

गैर-सदस्य के रूप में देता रहेगा सहयोग
अमेरिका ने यूनेस्को से गैर-सदस्य पर्यवेक्षक देश के रूप में जुड़े रहने की इच्छा जताई है। बयान में कहा गया है कि अमेरिका यूनेस्को द्वारा संचालित किए जाने वाले विश्व विरासत  संरक्षण, प्रेस की स्वतंत्रता, वैज्ञानिक सहयोग, शिक्षा से जुड़े कार्यक्रमों में अपनी विशेषज्ञता और दृष्टिकोण को संगठन से साझा करने को तैयार है। वह आगे भी इस विश्व संगठन को अपना सहयोग देता रहेगा। अमेरिका का संगठन से अलगाव सन 2018 के अंत में प्रभावी होगा। 

ओबामा के समय से बढ़ने लगीं थी दूरियां 
यूनेस्को से अलग होने का फैसला डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में आया है, लेकिन पेरिस स्थित मुख्यालय वाले इस संगठन से वाशिंगटन की दूरी का सिलसिला सन 2011 में बराक ओबामा के शासनकाल से ही शुरू हो गया था, जब यूनेस्को द्वारा फिलिस्तीन को पूर्ण सदस्य का दर्जा देने के बाद अमेरिका ने संगठन को दी जा रही आर्थिक सहायता रोक दी थी। जिसके फलस्वरूप अमेरिका ने 2013 में संगठन में अपना मत खो दिया था। स्थिति इस साल जुलाई में तब ज्यादा जटिल हो गई जब यूनेस्को ने इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में स्थित प्राचीन शहर हेबरान को फिलिस्तीनी वर्ल्ड हैरिटेज साइट घोषित कर दिया। इजरायल ने भी इस पर नाराजगी जताई थी। 

प्राचीन स्मारकों के संरक्षण की जिम्मेदारी
यद्यपि यूनेस्को का कार्यक्षेत्र शिक्षा और विज्ञान पर ही मुख्यरूप से केंद्रित है, लेकिन इसे विश्व विरासत संरक्षण के लिए ही मुख्यरूप से जाना जाता है। जिसके तहत यूनेस्को सांस्कृतिक महत्व के प्राचीन स्मारकों के संरक्षण की जिम्मेदारी निभाता है। यूनेस्को ने दुनिया की 1073 स्थलों को विश्व विरासत का दर्जा दे रखा है, जिनके संरक्षण के लिए आर्थिक सहायता से लेकर तकनीकी विशेषज्ञता तक सभी कुछ उपलब्ध कराता है। भारत इसकी सूची में छठे स्थान पर है। भारत के 36 प्राचीन स्थलों को विश्व विरासत का दर्जा दिया गया है।

यूनेस्को ने अफसोस जताया
पुरातात्विक महत्व की विरासतों के संरक्षण में अमेरिका की विशेषज्ञता है। इसलिए उसके संगठन से नाता तोड़ने से सभी देश हैरान हैं। हालांकि अमेरिकी गृहमंत्रालय ने कहा है कि सदस्य नहीं रह कर भी वह संगठन का सहयोग करता रहेगा। यूनेस्को की महानिदेशक बोकोवा ने कहा अमेरिका के संगठन से नाता तोड़ने के फैसले पर अफसोस जताया। ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को अनेक लोगों ने संकुचित दृष्टिकोण बताया, जबकि ट्रंप समर्थकों ने इस मुद्दे पर ट्रंप का बचाव किया है। 

अमेरिका देता है आठ करोड़ डालर
अमेरिका में ऐसी प्राचीन विरासतों की संख्या 23 है और यूनेस्स्को की सूची में इसका स्थान दसवां है। अमेरिकी प्राचीन विरासतों में लगभग एक दर्जन तो नेशनल पार्क जैसी प्राकृतिक स्थल हैं। इटनी में 53, चीन में 52, स्पेन में 46, फ्रांस में 43, जर्मनी में 42 अमेरिका से ज्यादा सांस्कृतिक विरासतें हैं। 34 साइटों वाले मैक्सिको जैसे छोटे देश में भी अमेरिका की तुलना में ज्यादा साइटें हैं। अमेरिका के संगठन से नाता तोड़ने से पहले से ही धन की कमी से जूझ रहे यूनेस्को की दिक्कतें और बढ़ सकती है। यूनेस्को को अमेरिका से हर साल आठ करोड़ डॉलर (करीब 520 करोड़ रुपये) की मदद मिलती है।

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