कब तक बोरवेल में गिरकर बेमौत मरते रहेंगे मासूम? बीते 4 साल में 281 पहुंचा आंकड़ा, सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भी हुई अनदेखी!

तत्कालीन सीजेआई की बैंच ने दिए थे निर्देश

Anchal Shridhar
Update: 2023-06-09 12:03 GMT

 डिजिटल डेस्क,भोपाल। मध्यप्रदेश के सीहोर जिले में 8 जून की शाम को 6 साल की मासूम सृष्टि की बोरवेल में गिरने से मौत हो गई। सृष्टि 6 जून को खेत में खेल रही थी तभी वह 300 फीट गहरे बोरवेल में जा गिरी। बच्ची को सकुशल बाहर निकालने के लिए प्रशासन ,एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम ने 50 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। इस दौरान रोबोटिक टीम की भी मदद ली गई थी। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद भी मासूम सृष्टि जिंदगी की जंग हार गई। डॉक्टरों ने बताया कि बच्ची की मौत दम घुटने की वजह से हुई है।

वहीं इससे पहले गुजरात में भी इसी तरह की घटना घटी थी। जहां 2 जून को जामनगर शहर में दो साल की बच्ची 20 फीट गहरे बोरवेल में गिर गई थी। जिसके बाद प्रशासन और अन्य एजेंसी ने 19 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया और बच्ची को बाहर निकाला लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। पिछले साल दिसंबर में मध्यप्रदेश के बैतूल में 8 साल के तन्मय की भी बोरवेल में गिरने से मौत हो गई थी। 84 घंटे तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में तन्मय को बाहर तो निकाल लिया गया लेकिन तब तक उसकी मौत चुकी थी।

आखिर कब तक बोरवेल में गिरते रहेंगे मासूम?

पिछले कुछ सालों के आंकड़ों पर नजर डालें तो उनमें ये साफ नजर आता है कि बोरवेल में गिरे बच्चों की उसके भीतर ही दम घुट जाने से जान जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक बोरवेल में गिरकर मासूम बेमौत मरते रहेंगे? कब तक ट्यूबवेल और बोरवेल के गड्ढे इसी तरह बच्चों की कब्र बनते रहेंगे? क्यों प्रशासन पूर्व की घटनाओं से सबक नही लेता? एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक बीते 4 साल में 281 लोगों की मौत ट्यूबवेल या वोरबेल के गड्ढे में गिरकर हुई है। 

सुप्रीम कोर्ट ले चुका संज्ञान

2010 में वोरबेल में गिरकर होने वाली मौतों के मामलों में दायर याचिका पर स्वत: संज्ञान लेते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बालकृष्णन की बेंच द्वारा जरूरी निर्देश जारी किए गए थे। इन निर्देशों के मुताबिक, वोरबेल खोदने से पहले जमीन के मालिक को इसकी सूचना सरपंज या डीसी को देना जरूरी होगी, अधिकारियों की निगरानी में खुदाई करवानी होगी, बोरवेल खोदते समय सूचना बोर्ड लगाना जरुरी होगा, बोरवेल के आसपास कंटीली तारों से घेराव बनाना जरुरी होगा, चारों तरफ कंक्रीट की दीवार बनानी आवाश्यक होंगी, बोरवेल या कुएं को ढकने के लिए मजबूत स्टील का ढक्कन लगाना होगा, बोरवेल का काम पूरा होने के बाद आस-पास के गड्ढों को पूरी तरह भरना आवाश्यक होगा और इस गाइडलाइंस को पूरा कराने की जिम्मेदारी डीसी और सरपंच की होगी । कोर्ट ने सरकार को इन निर्देशों का प्रचार-प्रसार करने का आदेश भी दिया था। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा था कि, " कोर्ट के संज्ञान में लाया गया है कि बोरवेल या नलकूप में बच्चे गिर के फंस जाते है। ये खबरें अलग अलग राज्यों से आ रही हैं। ऐसे में हमने स्वत: पहल की और इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए तत्काल उपाय करने के लिए विभिन्न राज्यों को नोटिस जारी किया।"

कोर्ट के इन निर्देशों का पालन नहीं होने की वजह से ही आज हालात ज्यों के त्यों बने हुए हैं। अक्सर देखा गया है कि इन मामलों की जांच में प्रशासन शुरुआती दौर में तो सख्ती दिखाता है लेकिन बाद में सुस्त पड़ जाता है। जिसके परिणामस्वरूप इस तरह के मामलों में कोई कमी नहीं आई है।

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