सौ साल बाद अनोखे फूलों से महकी अरूणाचल प्रदेश की वादी, लिपस्टिक फूल को देखने पहुंचने लगे सैलानी

सौ साल बाद खिले लिपस्टिक फूल सौ साल बाद अनोखे फूलों से महकी अरूणाचल प्रदेश की वादी, लिपस्टिक फूल को देखने पहुंचने लगे सैलानी

Raja Verma
Update: 2022-06-08 12:52 GMT
हाईलाइट
  • इस पौधे को आखिरी बार 1912 में देखा गया था। 

डिजिटल डेस्क नई दिल्ली। कुदरत भी हमें गजब-गजब नजारे दिखाते ही रहती हैं। कभी भयानक नजारे तो कभी सुंदर नजारे । हाल ही में रिसर्चस ने एक ऐसा पौधा ढूंढा है जो लगभग 100 साल के बाद मिला है। इस पौधे को पिछली बार 1912 में देखा गया था। पौधे को एक समय "भारतीय लिपस्टिक पौधा" भी कहा जाता था। यह एक दुर्लभ प्रजाति का पौधा है जिसकी पहचान  ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री स्टीफन ट्रॉयट डन ने 1912 में  की थी। जिसके बाद से इसे  ढूंढने का प्रयास किया गया लेकिन हमेशा निराशा ही मिली। पौधे को वैज्ञानिक भाषा में एस्किनैन्थस मोनेटेरिया डन (Aeschynanthus monetaria Dunn) नाम से जाना जाता हैं।

क्या होता है लिपिस्टिक वाला फूल?
बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के वनस्पतिशास्त्री ने अपने एक आर्टिकल में बताया है कि "पौधे में ट्यूबलर रेड कोरोला के होने की वजह से वे जीननस एशिनैंथस के तहत कुछ प्रजातियों में आ जाते है और इन प्रजातियों वाले पौधों को लिपस्टिक प्लांट कहा जाता है। यह पौधा अरूणाचल प्रदेश के जंगलों में 543 से 1134 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। इसके फूल अक्टूबर से लेकर जनवरी के बीच फूलते हैं। एस्किनैन्थस मोनेटेरिया डन यानि लिपिस्टिक वाला फूल की पहचान 1912 में एक ब्रिटिश वनस्पतिशास्त्री स्टीफन ट्रॉयट डन ने की थी। इन अनोखे फूलों को देखने अब सैलानी अरूणाचल प्रदेश का रूख कर रहे हैं।

100 साल बाद मिला लिपिस्टिक वाला फूल
लिपिस्टिक वाला फूल अरुणाचल प्रदेश के भरे जंगलों में पाए जाते हैं। हाल ही में भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण (Botanical Survey of India) की फूलों पर रिसर्च  के दौरान वनस्पतिशास्त्री कृष्णा चौलू ने अरूणाचल प्रदेश के जंगलो से अंजॉ जिले के ह्युलियांग और चिपरू से एशिन्थस के कुछ नमूने इकठ्ठे किए थे जिनकी स्टडी करने के बाद पता चला कि ये एशिन्थस मोनेटेरिया के नमूने 1912 के बाद भारत में कभी नही मिले है। इस पौधे को आखिरी बार 1912 में देखा गया था। 

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