रक्षा मंत्रालय को लगे 13 साल, मौसम विभाग ने 11 महीनें में खरीदा रडार
रक्षा मंत्रालय को लगे 13 साल, मौसम विभाग ने 11 महीनें में खरीदा रडार
- भारतीय वायुसेना को रडार खरीदने में लगे 13 साल।
- मौसम विभाग ने 11 महीने में खरीदे रडार।
- रक्षा सौदे में गंभीर लारपवाही आई सामने।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रक्षा सौदे में किस तरह लापरवाही बरती जा रही है, इसकी एक रिपोर्ट सामने आई है। कैग की हाल ही में एक रिपोर्ट इसका खुलासा करती है। रिपोर्ट में कैग ने जिक्र किया है कि भारतीय वायुसेना को 11 डॉप्लर वेदर रडार खरीदनी थी, लेकिन 13 साल बीत जाने के बाद भी डील पुरी नहीं हो पाई है। हैरान वाली बात ये है कि भारतीय मौसम विभाग ने भी रडार के लिए डील की थी। मौसम विभाग ने मात्र 11 महीने में रडार हासिल भी कर लिया। वहीं भारतीय वायुसेना को 11 रडार मिलने थे, जिसमें से सिर्फ 3 रडार ही मिले है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2004 में डिफेंस एक्वीजीशन काउंसिल ने 11 डॉप्लर वेदर रडार खरीदे के प्रोजेक्ट पर मंजूरी दी थी। यह डील 143 करोड़ में हुई थी। बाद में इस डील में संशोधन कर 165 करोड़ में फाइनल किया गया। इस डील में दो कंपनियों जर्मनी की Selex Sistemi और अमेरिका की Enterprise Electronics Corporation ने बोली लगाई थी। दोनों ही कंपनियां भारतीय वायुसेना की जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रही थी। जिसमें पहली जरूरत रडार 100 मीटर या उससे कम की रेंज का होना चाहिए और दूसरी रडार मिलिट्री स्टैंडर्ड का होना चाहिए। इस पर दोनों वेंडर ने कहा था कि रडार कि कम से कम रेंज 300 मीटर होती है। यह एक कर्मिशयल इक्वीपमेंट है।
इसमें सबसे बड़ी गलती एक जीरो कम लिखने के कारण सामने आई। दरअसल रडार की रेंज 1000 मीटर या उससे कम मांगी गई थी। इस गलती को ठीक करने में 3 साल लग गए। वर्ष 2011 में इस डील के लिए कॉन्ट्रैक्ट नेगोसिएशन कमेठी का गठन किया गया। भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष 2009 में दो डॉप्लर वेदर रडार के लिए डील की और 2010 में डील पूरी भी कर ली। वहीं भारतीय वायुसेना के डील में एक दिक्कत तब और आई जब रडार आपूर्ति करने वाली कंपनी Selex Sistemi के नाम एक सौदे के चलते कुछ बदलाव हो गए। कंपनी ने वर्ष 2014 में बदलाव संबंधी जानकारी रक्षा मंत्रालय को दी। डील में नाम बदलने में दो साल और लग गए। अब वर्ष 2017 में भारतीय वायुसेना को 11 में से 3 रडार की आपूर्ति हुई है।